Hindi Kahaniya: रुचिरा आज बहुत खुश थी,वो सबके लिए कोई न कोई छोटा मोटा उपहार लाई थी,किसी को कुछ,किसी को कुछ दे रही थी।
लो मीना!तुम्हारे लिए ये किताब चेतन भगत की लेटेस्ट है..
उफ्फ भाभी,उससे किताब लेते हुए मीना,रुचिरा से लिपट गई।आपको याद था अभी भी?
कैसे भूल सकती हूं,तुम सब मेरे सुख दुख के साथी जो हो..रुचिरा मुस्कराई।
लो अम्मा!आपके लिए ये शॉल लाई हूं.. बूढ़ी काकी को गरम शॉल ढकते वो बोली।
जुग जुग जियो बेटी!खूब खुश रहो!उन्होंने आशीर्वाद दिया उसे।
रुचिरा की आंखें बेचैनी से किसी को ढूंढ रही थीं..।
मीना से रहा न गया,भाभी!आप किसको ढूंढ रही हो?देख रही हूं,आप शरीर से यहां हो पर मन से कहीं और..।
झेंपती हुई रुचिरा बोली,दरअसल, मैं अर्ची दीदी को ढूंढ रही हूं,आज सबसे पहला धन्यवाद तो उन्हीं का बनता है,अगर वो न होती तो मै क्या ही कर पाती!!
पर हुआ क्या है,ये गिफ्ट्स ,मिठाई क्यों बांट रही हो,एक बर्फी का टुकड़ा मुंह में डालते हुए रश्मि ने पूछा जो उसकी अच्छी सहेली भी थी।
रश्मि! तू जानती है कि मैंने कितने बुरा वक्त देखा है,जब मेरे ससुराल वालों ने मुझे मेरी बेटी पैदा होने पर चरित्रहीन कहकर आरोप लगाए थे और मुझे घर से निकाल दिया था,तुझे ध्यान है तब मैं सुसाइड करने वाली थी।
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हां…दुखी होते रश्मि बोली,कोई भी भावुक हृदय लड़की ये ही करेगी,मायके में कोई साथ न दे,ससुराल वाले जलील कर पल्ला झाड़ लें तो बेचारी अकेली लड़की पर क्या ऑप्शन रह जाते हैं?
ऐसे में तुम सब मुझे यहां मिले,और सबसे ज्यादा मुझे संभाला अर्चि दीदी ने…कितना विश्वास था उन्हें मेरे टेलेंट में…जब मै खुद को खत्म कर लेना चाहती थी,उनके विश्वास ने मुझे फिर मेरे पैरों पर खड़ा होना सिखाया…उन्होंने मुझे इतनी हिम्मत दी,मुझे मेरे मां बनने के सुखद एहसास हो महसूस कराया।
बताओ!!जो मेरे अपने थे,जिनके लिए मैंने अपना सर्वस्व दांव पर लगाया,उनको,उनके कुल की लक्ष्मी दी,उन्होंने मेरे ऊपर आरोप लगाकर मुझे घर से बेदखल कर दिया और आप सबने मुझ बेसहारा को आश्रय दिया।
तभी अर्चना वहां आ जाती हैं।
क्या हुआ रुचिरा?क्यों मेरे गुणगान किए जा रहे हैं?जरा मै भी तो सुनूं कि मैंने क्या किया है?वो हंसते हुए बोलीं।
दीदी!दीदी!रुचिरा भावुक होकर उनके गले लिपट गई।
अब बोल भी…रुलाएगी मुझे भी पगली!
दीदी,आपको ध्यान है आपने मुझसे एक फॉर्म भरवाया था?
कब?कहां के लिए?अर्चना याद करने की कोशिश करते बोली।
दो साल पहले,बी पी एस सी की कुछ वेकेंसीज निकली थीं,वो ही।रुचिरा याद दिलाती बोली।
हां…जिसके लिए तू तैयार नहीं थी,वो असिस्टेंट प्रोफेसर वाली…अर्चना को याद आ गया था।
वो ही ..फिर आपने ही मुझे जबरदस्ती उसका लिखित एग्जाम दिलवाया था,और तीन महीने पहले, मैं इंटरव्यू भी देने गई थी वहां।रुचिरा शरमाते हुए बोली।
तूने बताया नहीं कभी?मुझे लगा तेरा लिखित ही क्लियर नहीं हुआ होगा,इसलिए मै चुप थी,कहीं तेरा हौसला न कमजोर पड़ जाए।
मै जानती हूं कि आप हर बात का कितना ध्यान रखती हैं दीदी,तभी तो मै आपका इतना सम्मान करती हूं,रुचिरा की आंखें नम हो गई थीं अति भावुकता से।
तो तू क्या ये तो नहीं कह रही कि तेरा सिलेक्शन हो गया वहां??अर्चना खुशी के अतिरेक से चीखती हुई बोली।
जी दीदी,मुझे पंद्रह दिन में ज्वाइन करना है।रुचिरा की आवाज धीमी पड़ गई।
तो इतनी रुआंसी होके क्यों कह रही है,आज तो घी के दीपक जलाने वाली खुशी है रुचि!आजा मेरे गले लग जा मेरी बहन!
दीदी, मै आप सबसे दूर हो जाऊंगी,मुझे बस यही गम खाए जा रहा है,वहां मेरा और मेरी बेटी का ख्याल कौन रखेगा?
धत पगली!ये इतनी खुशी की खबर है और इतना मुंह बिसूर के बता रही है..
और हां,सबको उपहार दिए तूने,पर मेरा उपहार कहां है?अर्चना दी तमकती हुई बोली।
दीदी!आपको मै क्या उपहार दूंगी,उपहार तो आपने मुझे दिया है जो मै पूरे जीवन भर नहीं भूलूंगी…आपके उपहार ने मेरे जीवन की दिशा और दशा दोनो ही बदल दी।रुचिरा की हिचकी बंध गई।
अरे पगली!ऐसे रोते नहीं,इतनी भावुकता अच्छी नहीं होती,तुझे जो कुछ भी मिला है,वो तेरे अपने टेलेंट से मिला है,शुरू में,दुर्भाग्य से तू गलत लोगों से जुड़ गई थी जिन्होंने तेरा आत्मविश्वास ही छीन लिया था लेकिन कोई भी किसी की प्रतिभा को कुछ समय के लिए दबा सकता है,नष्ट नहीं कर सकता।मैंने तो सिर्फ उस के ऊपर जमी धूल ही हटाई थी बाकी सब करिश्मा तेरा खुद का है। तू डिजर्व करती है एक सुखी,संतुष्ट और खुशहाल जिंदगी।तेरे साथ तेरी बेटी है,इसको अच्छे से पाल पोस कर एक अच्छा नागरिक बनाना।
पर अर्ची दी,आज मैं सोचती हूं तो मुझे लगता है, आपने जो मेरे लिए किया वो कोई सगे भी नहीं करते, उस हताशा के वक्त आपका सहारा मेरे लिए वरदान बन गया, आपने मेरी सोई हुई प्रतिभा को तराशा,मुझे विश्वास दिलाया कि मै अपने दम पर कुछ कर सकती हूं,आपका उपकार मै इस जन्म क्या, सात जन्मों भी नहीं चुका पाऊंगी।आपका दिया ये अनमोल उपहार है जिसने मेरा समूचा जीवन ही बदल दिया।
देखो रुचिरा!किसी का उपहार रखते नहीं,उसे लौटा देते हैं.. अर्ची मुस्कराते हुए बोली।
पर कैसे दीदी?थोड़ा परेशान होते रुचिरा बोली।
अरे मेरी बुद्धु बहन!जब कभी भी जिंदगी के कोई ऐसा मिले जिसे तेरी मदद की जरूरत हो तो उससे मुंह मत मोड़ना,अगर तुम्हारे जरा से साथ और सहयोग से किसी की जिंदगी बदलती है तो ये बहुत सुकूनियत की बात होती है।
सही कह रही हैं आप..
रुचिरा सिर हिलाती बोली।
उस समय, मै समझ जाऊंगी कि मेरा उपहार रुचिरा ने लौटा दिया है,ये चेन कभी टूटनी नहीं चाहिए रुचिरा बहन..अगर हरेक व्यक्ति ऐसा कुछ वायदा खुद से कर ले तो इस दुनिया में व्याप्त दुख,परेशानी खुदगर्जी काफी हद तक खत्म हो जाएगी।सही कह रही हूं ना मै?
पहली बार रुचिरा के होंठों पर मुस्कराहट आई,बिलकुल ठीक कहा आपने, मै भी किसी को ऐसा उपहार दूंगी जो उसकी जिंदगी बदल दे।
पर ध्यान रखना,वो तुम्हारा जानकार न ही हो तो अच्छा है क्योंकि उससे फिर रिटर्न की भावना रहती है मन में,किसी को दो कुछ तो ऐसे दो कि बाएं हाथ को न पता चले, दाएं ने क्या दिया।
ओके दी!रुचिरा समझ गई थी अर्ची दी की बात,वो मुस्कराते हुए सामान पैक करने चल दी।
