Avoid Kadhi in Monsoon
Avoid Kadhi in Monsoon

Overview:बरसात में क्यों नहीं खानी चाहिए कढ़ी? आयुर्वेद के अनुसार जानिए वजह

बरसात के मौसम में कढ़ी खाना स्वाद में भले अच्छा लगे, लेकिन आयुर्वेद के अनुसार यह पाचन तंत्र पर बुरा असर डाल सकती है। इस मौसम में आर्द्रता और शरीर की पाचन अग्नि कमजोर हो जाती है, जिससे खट्टी और दही से बनी चीजें जैसे कढ़ी गैस, अपच और पेट दर्द जैसी समस्याएं बढ़ा सकती हैं। इसलिए सावन में कढ़ी से परहेज करना बेहतर माना जाता है।

Avoid Kadhi in Monsoon: भारत में मौसम और खाना सिर्फ स्वाद तक सीमित नहीं है, बल्कि ये परंपराओं और स्वास्थ्य से भी गहराई से जुड़े होते हैं। खासकर सावन के महीने में खानपान को लेकर कई मान्यताएं और वैज्ञानिक कारण होते हैं, जो आयुर्वेद में भी विस्तार से बताए गए हैं। सावन का समय शरीर को खास देखभाल देने का होता है, क्योंकि यह मौसम नमी, इन्फेक्शन और पाचन संबंधी समस्याएं लेकर आता है।

कढ़ी एक ऐसा व्यंजन है जो दही और बेसन से बनता है और देशभर में खूब पसंद किया जाता है। इसमें प्रोटीन, कैल्शियम और फॉस्फोरस जैसे पोषक तत्व होते हैं, जो हड्डियों और शरीर की मजबूती के लिए जरूरी हैं। फिर भी आयुर्वेद कहता है कि सावन के दौरान कढ़ी जैसे दही वाले फूड्स से दूरी बनानी चाहिए।

इसका कारण सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और शरीर की प्रकृति से जुड़ा हुआ है। दही में कूलिंग इफेक्ट्स होते हैं , जबकि इस मौसम में शरीर को गर्म चीजों की जरूरत होती है। इसके अलावा दही जल्दी खराब हो सकता है, जिससे पाचन पर असर पड़ता है। चलिए जानते हैं कि आयुर्वेद के अनुसार सावन में कढ़ी क्यों नहीं खानी चाहिए।

कढ़ी शरीर में असंतुलन पैदा कर सकती है

आयुर्वेद के अनुसार कढ़ी में तामसिक गुण होते हैं, यानी यह शरीर को भारी, सुस्त और आलसी बना सकती है। खासकर सावन में जब वायु में नमी होती है और वातावरण में संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है, तब पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। इस समय शरीर को ऐसे भोजन की जरूरत होती है जो हल्का, गर्म और जल्दी पचने वाला हो। लेकिन कढ़ी ठंडी प्रकृति की होती है और यह शरीर के वात, पित्त और कफ को असंतुलित कर सकती है। इसका सीधा असर पाचन, त्वचा और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ता है। इसलिए आयुर्वेद में इसे मानसून में खाने से मना किया गया है।

मानसून में कढ़ी कर सकती है डाइजेशन स्लो

सावन का मौसम नमी और तापमान में उतार-चढ़ाव से भरा होता है, जिससे दही जैसे फूड्स जल्दी खराब हो सकते हैं। दही एक किण्वित (fermented) पदार्थ है, जो सही तापमान पर ही सेफ रहता है। बारिश के मौसम में दही जल्दी खट्टा हो जाता है और इसमें हानिकारक बैक्टीरिया बढ़ सकते हैं। इससे पेट फूलना, गैस, बदहजमी और एसिडिटी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। खासकर अगर आप कढ़ी खाते हैं, जो दही से बनती है, तो वह आपकी पाचन क्रिया को बिगाड़ सकती है। इसलिए आयुर्वेद में ऐसे मौसम में दही और दही से बनी चीजों से परहेज की सलाह दी जाती है।

फर्मेंटेड फूड्स सावन में पित्त दोष को बढ़ाते हैं

आयुर्वेद में फर्मेंटेड फूड को सावन में न खाने की सलाह दी गई है, क्योंकि इस मौसम में पित्त दोष अधिक एक्टिव हो जाता है। जब पित्त बढ़ता है तो शरीर में सूजन, गर्मी, सिरदर्द और स्किन रिलेटेड प्रॉब्लम्स हो सकती हैं । कढ़ी, जो दही से बनती है, पित्त को और एक्टिव कर सकती है। खासतौर पर अगर किसी को पहले से पित्त से जुड़ी तकलीफ हो, तो यह और भी नुकसानदेह हो सकता है। ऐसे में बेहतर है कि आप मानसून में ऐसे भोजन से दूर रहें, जो पित्त दोष को बढ़ाए और शरीर में असंतुलन लाए।

नमी के कारण दही जल्दी खराब हो जाता है

बरसात के मौसम में वातावरण में ज्यादा नमी होती है, जिससे खाद्य पदार्थ जल्दी खराब होने लगते हैं। दही एक जीवित बैक्टीरिया वाला फूड है, जो जल्दी संक्रमित हो सकता है। अगर इसे सही ढंग से नहीं रखा गया, तो यह हानिकारक बैक्टीरिया का घर बन सकता है। जब आप इससे बनी कढ़ी खाते हैं, तो ये बैक्टीरिया शरीर में जाकर पाचन तंत्र को बिगाड़ सकते हैं। इससे दस्त, उल्टी, पेट दर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए आयुर्वेद इस मौसम में कढ़ी और अन्य दही से बनी चीजों को खाने से मना करता है।

सावन में गर्म और हल्का भोजन लेना फायदेमंद

आयुर्वेद का मूल सिद्धांत है कि मौसम के अनुसार भोजन में बदलाव होना चाहिए। सावन के समय शरीर की पाचन शक्ति कमजोर रहती है और वात-पित्त-कफ में असंतुलन की संभावना होती है। ऐसे में गर्म, सादा और आसानी से पचने वाला भोजन लेना चाहिए। दही और बेसन से बनी कढ़ी की तासीर ठंडी होती है, जो शरीर के लिए नुकसानदेह हो सकती है। अगर आप सावन में स्वस्थ रहना चाहते हैं, तो हल्की दालें, सब्जियां और मसालेदार गरम चीजों का सेवन करें, ताकि बॉडी हेल्दी रहे I

मेरा नाम वामिका है, और मैं पिछले पाँच वर्षों से हिंदी डिजिटल मीडिया में बतौर कंटेंट राइटर सक्रिय हूं। विशेष रूप से महिला स्वास्थ्य, रिश्तों की जटिलताएं, बच्चों की परवरिश, और सामाजिक बदलाव जैसे विषयों पर लेखन का अनुभव है। मेरी लेखनी...