Pregnancy Stress: गर्भावस्था के दौरान कई महिलाएं डिप्रेशन से गुजरती हैं जिसे प्री नेटल डिप्रेशन कहा जाता है। यह डिप्रेशन आमतौर पर गर्भावस्था के पहले और तीसरे ट्राईसेमिस्टर में ज्यादा होता है। जिंदल अस्पताल, मेरठ की स्त्री रोग विशषज्ञ डॉ अंशु जिंदल की माने तो 20 फीसदी महिलाएं इससे गुजरती हैं और अकसर इसे मूड खराब मानकर इग्नोर कर देती हैं।
गर्भावस्था में चिंता के कारण
1. प्रेगनेंसी के दौरान होने वाले शारीरिक-मानसिक और सामाजिक बदलाव, हार्मोनल बदलाव होना। इस दौरान कार्टिसोल नामक स्ट्रेस हार्मोन रिलीज होते हैं जिसकी वजह से महिलाओं में मूड स्विंग होना, चिड़चिड़ापन रहता है। अपने भीतर हो रहे बदलावों को समझ न पाने से तनावग्रस्त हो जाती हैं। कभी वो बहुत ज्यादा खुश हो जाती हैं, तो कभी बहुत दुखी और कई बार तो वे बेवजह ही रोने लगती हैं।
2. गर्भस्थ शिशु के साथ उसका अटैचमेंट होने लगता है और कई बार बच्चे के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित रहती हैं।
3. पार्टनर, परिवार या समाज का सपोर्ट न मिलना। पारिवारिक माहौल ठीक न होना जिससे महिला के मन में घुटन रहती है।
4. कम उम्र में शादी होना और मां बनने के लिए तैयार न होना।
5. परिवार में या महिला को गर्भावस्था से पहले डिप्रेशन की हिस्ट्री रही हो।
लक्षण

महिला को हर समय डर रहता है कि उसका बच्चा ठीक से विकसित हो रहा है या नहीं। डिलीवरी ठीक तरह होगी या नहीं, किसी कारणवश गर्भपात तो नहीं होगा, बिना वजह रोना, गुस्सा करना, चीखना-चिल्लाना। अच्छी मां न बनने का डर रहना। नींद न आना। स्ट्रेस ज्यादा होने पर हाइपरटेंशन का रिस्क भी रहता है जिससे कई बार गर्भपात होने की संभावना भी रहती है। किसी काम में फोकस न कर पाना, अपना और बच्चे का ध्यान न रखना।
क्या होता है असर
प्रेगनेंसी में महिलाओं का मूड जैसा भी रहेगा, उसका सीधा असर बच्चे पर पड़ता है। महिला का डिप्रेशन में जाना महिला के स्वास्थ्य पर तो बुरा असर डालता ही है, गर्भस्थ शिशु पर बहुत ज्यादा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। स्ट्रेस की वजह से लेबर पेन जल्दी होने, समय से पहले या प्री-टर्म डिलीवरी होने की संभावना रहती है। ब्लड प्रेशर होने की संभावना रहती है।
प्रेगनेंसी के दौरान मां का बच्चे के साथ शारीरिक ही नहीं, भावनात्मक जुड़ाव भी होता है। मां जिस भी मानसिक दौर से गुजरती है, बच्चा भी उसी मानसिक स्थिति से गुजरता है। अगर मां खुश रहती है, तो बच्चा तंदरुस्त और खुशमिजाज होता है, जबकि दुखी या तनावग्रस्त रहने पर बच्चा कमजोर और चिड़चिड़ा होता है।
रिसर्च से साबित भी हुआ है कि प्रेगनेंसी के दौरान तनावग्रस्त रहने वाली महिलाओं के बच्चे अपनी उम्र के बच्चों से ज्यादा रोते हेैं और चिड़चिड़े होते हैं। बच्चे के व्यवहार में भी खामियां देखने को मिलती हैं जैसे-हाइपरएक्टिव, गुस्सैल, चिड़चिड़ापन, एंटी सोशल होना। कई शारीरिक-मानसिक विकार हो सकते हैं- हृदय और मस्तिष्क पूर्ण रूप से विकसित नहीें होता। टेंशन में रहने पर बच्चे की हार्टबीट पर इसका असर पड़ता है। बड़े होने पर बच्चो में स्मरणशक्ति या लर्निेंग पॉवर कमजोर हो जाती है।
क्या करें-

- महिला को समझना चाहिए कि जब उसने मां बनने का डिसीजन ले लिया है, तो उन्हें प्रेगनेंसी पीरियड को एंजाय करना चाहिए। अपने और अपने बच्चे के हेल्थ को सर्वोपरि माने और 9 महीने की प्रेगनेंसी की जर्नी को अच्छी तरह पूरा करें।
- बच्चे को लेकर किसी तरह की चिंता न करें। पॉजीटिव सोचे कि वो हेल्दी होगा और अच्छी तरह ग्रो कर रहा होगा। गर्भ में पल रहे बच्चे से प्यार जताएं और बात करें। ऐसा करने से मां का बच्चे के साथ रिश्ता मजबूत होगा और बच्चा भावनात्मक तौर से भी उससे जुड़ेगा।
- तनावमुक्त रहने के लिए अपने पसंदीदा काम करें जैसे- म्यूजिक सुनना, पेंटिंग करना, किताबें पढ़ना।
- घर-परिवार का माहौल खुशनुमा बनाएं। किसी भी तरह का तनाव दिमाग में न रखें।