आज सुबह आप जल्दी उठी थी । आपके आफिस में जरूरी मीटिंग है । आज ही बेटे के स्कूल में पी. टी.एम. भी है । आॅफिस की मीटिंग में आप ध्यान नहीं दे पायी, क्योंकि बेटे का  प्रदर्शन स्कूल में लगातार गिर रहा था। आपको टीचर ने विशेष रूप से बुलवाया था । टीचर से मिल कर आपको संतोष हो गया ।  अगले दिन आफिस मंे पहुंचने पर आपको पता चला कि आपकी सहकर्मी रीटा मीटिंग को सफलता का सारा श्रेय ले गयी ।

योग्य तो आप भी थी पर घर व बच्चों की तरफ ज्यादा ध्यान देने के चक्कर में आफिस में पिछड़ गयी । अक्सर ऊॅचे ओहदों पर बठी कई महिलाएं इस तरह की स्थिती रोज भुगतती हैं ।
बच्चों के अच्छे पालन पोषण, एक अच्छी पत्नी बनना, अच्छी बहू होने के प्रयास में वे कार्यालय में अपनी पूर्ण क्षमता के अनुरूप कार्य नहीं कर पाती है । कई बार घर जल्दी चले जाना, बच्चों के एग्जाम होने पर या बीमार होने पर छुट्टियां ले लेना, बच्चों के स्कूल के प्रोजेक्ट आफिस में ही कम्पलीट करना, आफिस को नजरअंदाज करके कम्पीटीशन के समय उनका मनोबल बढ़ाने के लिए   उनके आस-पास रहना ……..।

एक अच्छी हाउसकीपर का कत्र्तव्य तो आप निःसन्देह निभा रही हैं पर एक अच्छी कामकाजी महिला नहीं बन पा रही है । आज के मुश्किल दौर में जब नौकरी करना लगभग जरूरत बन गयी है, काम के प्रति ऐसा रवैया उलझने ही पैदा करेगा ।

ऐसा क्यों हैं-
अधिकांश महिलाएॅ घर और दफतर के बीच बराबर सामंजस्य नहीं बिठा पाती, क्योंकि भले ही महिलाएं कार्यशील हो गई हो, हमारे पुरूष प्रधान समाज में अभी भी घर व बच्चों के समस्त कार्य महिला के ही है ।

समान रूप से कार्य करने, कमाने के बावजूद महिला घर के पारम्परिक कत्र्तव्यों से मुक्त नहीं है । विदेशों में घर के काम पुरूष-महिला मंे बटे हुए होते है और वहां दोनांे को समान रूप से योग्यता प्रदर्शित करना अपेक्षाकृत आसान होता है ।

हमारे यहां बच्चों को नहलाना, कपड़े धोना, खाना खिलाना सब महिलाओं के कार्य है । बच्चों व पति की हर तरह की फरमाईश चाहे खाने में हो या बुनाई कढ़ाई में, पूरा करना महिला का ही फर्ज समझा जाता है ।

संयुक्त परिवार में भी यदि कार्य विभाजन है तो महिला को कामकाजी होने के कारण कोई राहत नहीं मिलती है उसे अन्य सदस्यांे की भाति निर्धारित काम करने पड़ते हैं ।

बच्चों की हैल्थ खराब होने पर या श्माकर््स कम आने पर दोषी मां को ही माना जाता है ।

पति पत्नी दोनों कमाते हो, थक के घर एक ही समय आते हो, तो भी चाय महिला ही बनायेगी ।

एकल परिवार में मेहमानो के  आगमन पर अतिरिक्त देख-रेख की अपेक्षा भी महिला से की जाती है ।

सब्जी लेने, काटने, घर की सफाई साज सज्जा त्यौहारों पे अतिरिक्त पकवान, खाना पकाना अन्य मिलना जुलना सभी महिलाओं के ही कार्य समझे जाते हैं ।
क्यों पनपती है गिल्ट-
महिलाओं के आॅफिस में अच्छा करने पर अक्सर घरों में सराहा नहीं जाता ।  हमारी सामाजिक संरचना ही कुछ ऐसी है कि बहुत सफल महिलाओं को शक की दृष्टि से देखा जाता है ।
यदि वे खूबसूरत भी है तो चरित्र पे शक पक्का है ।

महिलाओं के आंकलन की कसौटी आज भी घर के कार्य व परिवार के प्रति समर्पण है ।

बहुत कम पति स्वयं से अधिक टैलेन्टेड या सुन्दर पत्नी की एप्रिशिएट कर पाते हैं ।

पत्नी के कैरियर में ज्यादा सफल होने पर पति या तो ईष्या या काम्पलैक्स का शिकार हो जाते हैं ।

महिलाएॅ भी दूसरी महिलाओं को इन्हीं मापदण्डों से तोलती है ।

अन्य कारण भी है – कई बार महिलाएॅ घर व छोटे बच्चों को बहाना बनाकर काम से पल्ला झाड़ लेती है ।

जिम्मेदारी लेने से बचती हैं और टूरिंग जाब पर नहीं जाती ।

दफतर में देर तक रूक कर काम काम करने से मना कर देती है ।

कार्यालय में लेट आती है और जल्दी चली जाती है ।

कुछ होने पर रोने लगती है या बहाने बना के कार्य करने से बचती है ।

नतीजा  ?

महिलाएं अच्छे ओहदों पर होते हुए और अच्छा पैसा कमाते हुए भी घर और दफतर के बीच पिसती रहती हैं । उ’न्हें अपने लिए समय ही नहीं मिल पाता है ।

घर दफतर व सामाजिक कार्यो के चलते या तो दफतर पे अपना 100 प्रतिशत नहीं दे पाती है या घर पर ढंग से काम नहीं कर पाती ।

अधिकाशं महिलाएं घर दफतर व बच्चों के बीच सामजस्य बिठाते बिठाते तनाव या मानसिक अवसाद या खराब सेहत की शिकार हो जाती हैं ।

दफतर में काबिल होते हुए भी पारिवारिक कारणों से टूर पर नहीं जाना, प्रमोशन फोरगो करना, अपना बेस्ट न कर पाने का मलाल महिलाओं में भी कुंठा व हीन भावना का शिकार बना देता है । उनकी यह खीज कई बार घर पर,, बच्चों पर उतरती हैं ।

परिवारों में शान्ति भंग हो जाती है और सभी दुःखी रहते हैं ।

क्या हो सकता है-

पुरूष यदि यह समझें कि कामकाजी महिलाएॅ, घरेलू महिलाओं की तरह पारंगतता से सभी कार्य कर सकती है तो उनकी भूल होगी । डाक्टर, इन्जीनियर, सी.ए. आदि उच्च पदों पर कार्यरत महिलाएॅ रोज तरह-तरह के पकवान तो नहीं बना सकती ।

उनके लिए स्वेटर बुनना, कढ़ाई करना, अचार, मुरब्बे बनाते रहना भी सम्भव नहीं ।

घर की साज-सज्जा, साफ सफाई पर भी बहुत अधिक समय वे नहीं दे सकती ।

पुरूषों को कार्यशील महिलाओं की लिमिट्स समझनी चाहिए । घरेलू कामों, बाजार की खरीददारी बच्चों की पढ़ाई में उन्हें भी समान रूप से मदद करनी चाहिए ।

कामकाजी महिला का कोई खास प्रोजैक्ट है,तो या टूर है तो बराबर मदद करनी चाहिए ।

बच्चों को भी आत्मनिर्भर होना चाहिए । खाना पुरसने जैसे छोटे कार्य स्वयं ही कर लेने चाहिए ।

कामकाजी माता-पिता के बच्चे अक्सर आत्मनिर्भर होते हैं । उन्हें मां पर अनावश्यक बोझ नहीं डालना चाहिए ।

पत्नी के काम का सम्मान कीजिए । यथासंभव उसकी मदद कीजिए तभी बन पायेगी वो सक्सेजफुल वुमैन और फिर गिल्टी फील नहीं करेगी