Dada dadi ki kahani : एक किसान था। उसका नाम था जनक।
जनक को पेड़-पौधे बहुत प्यारे लगते थे। वह एक गरीब किसान था, लेकिन बहुत खुश रहता था। अपने आसपास की चीज़ों में ही उसे खुशी मिल जाती थी। खुले आकाश के नीचे सो जाता था। सुबह चिड़ियों की मीठी चहचहाहट से जाग जाता था। आस-पास रहने वाले सभी पशु-पक्षी उसके दोस्त थे।
वह सबसे कहता था, ‘खुश रहो, देखो ये संसार कितना सुंदर है। हरे-भरे पेड़-पौधे कितनी ताज़गी देते हैं। काश मैं इन पौधों में कुछ और रंग भर सकता तो ये और भी प्यारे लगते।’
उसकी बात सुनकर लोग कहते-पौधे तो हरे ही रहेंगे न! उनमें कोई रंग कैसे भर सकता है?’
एक दिन जनक चिड़ियों को दाना डाल रहा था। सुबह का समय था। सब अपने-अपने कामों में व्यस्त थे। जनक ने महसूस किया कि एक बहुत ही मीठी खुशबू जंगल की ओर से आ रही थी। वह खुशबू की दिशा में चल दिया।
चलते-चलते वह जंगल के बीचोंबीच पहुँच गया। उसने देखा कि यह मीठी सुगंध एक पेड़ के ऊपर से आ रही थी। उसने ऊपर की ओर देखा तो पाया कि एक बहुत सुंदर कपड़ा पेड़ की शाखाओं में अटका हुआ था। उस कपड़े पर रंग-बिरंगी आकृतियाँ बनी हुई थीं। जनक पेड़ पर चढ़ गया। उसने बड़ी ही सावधानी से कपड़े को बाहर निकाला और नीचे उतर आया।
तभी वहाँ एक सुंदर लड़की प्रकट हुई। वह बोली, ‘यह कपड़ा मेरा है। इसे ऊपर से उतारने के लिए धन्यवाद।’
‘लेकिन आप कौन हैं?’ जनक ने पूछा।
‘मैं बसंत ऋतु हूँ। फूलों से भरा हुआ मेरा यह दुपट्टा इस पेड़ में फँस गया था। मैं धरती से होकर दूसरे गृहों की ओर जा रही थी। लेकिन मेरा दुपट्टा फँस जाने के कारण मुझे रुकना पड़ा।’ वह लड़की बोली।
जनक ध्यान से उसकी बातें सुन रहा था। उसने पूछा, ‘फूल? वह क्या होता है?’
बसंत ऋतु को आश्चर्य हुआ कि यह व्यक्ति फूल नहीं जानता। उसने चारों ओर देखा। वहाँ बहुत हरियाली थी, सुंदर पक्षी थे, ताज़ा हवा थी, लेकिन फूल नहीं थे। तब वह बोली, ‘आपने मेरी सहायता की है, इसलिए मैं आपको कुछ उपहार देना चाहती हूँ।’
यह कहकर उसने मीठी सुगंध से भरा हुआ अपना दुपट्टा चारों ओर घुमाया।
देखते-ही-देखते चारों ओर के पौधों पर फूल उग आए। पौधे रंग-बिरंगे फूलों के साथ और भी सुंदर लगने लगे। मीठी खुशबू से पूरी धरती महक उठी।
जनक बहुत खुश था। उसने आख़िर पौधों में रंग भर ही दिए थे। उसने बसंत ऋतु से कहा, ‘आप यहीं रुक क्यों नहीं जातीं? आप यहाँ रहेंगी तो हमारी धरती हमेशा सुंदर लगती रहेगी।’
बसंत ऋतु बोली, ‘मैं हमेशा के लिए यहाँ नहीं रह सकती। लेकिन मैं वादा करती हूँ कि हर वर्ष कुछ दिनों के लिए धरती पर आकर ज़रूर रहूँगी। और ये फूल धरती पर सदा खिलते रहेंगे। जिस धरती पर आप जैसे अच्छे लोग रहते हैं, मैं वहाँ ज़रूर आऊँगी।’ ऐसा कहकर वह चली गई। जनक खुशी-खुशी अपने घर लौट आया।
जनक जैसे अच्छे व्यक्ति के कारण आज भी हर वर्ष बसंत ऋतु धरती पर आती है। हज़ारों-लाखों फूल खिल उठते हैं और पूरी धरती सुंदर हो जाती है।
आओ बरसो मेघा प्यारे-पंचतंत्र की कहानी
Story for Kids: भीषण गर्मी पड़ रही थी, जंगल में चारो तरफ पानी के लिए हा- हा कार मचा हुआ…
Top 10 Panchantantra Stories in Hindi-पंचतंत्र की कहानियां
पंचतंत्र की कहानियां:नीति, ज्ञान और मनोरंजन का अनमोल खजाना हैं पंचतंत्र एक प्राचीन भारतीय साहित्यिक कृति है जो जानवरों की…
मेरा कलेजा तो पेड़ पर है! -पंचतंत्र की कहानी
समुद्र के किनारे जामुन का एक खूब बड़ा सा पेड़ था । उस पर एक बंदर रहता था । जिसका…
अकबर की शादी: अकबर बीरबल की कहानियाँ
एक दिन रानी ने राजा अकबर से कहा कि वे बीरबल को उसके पद से हटा कर, रानी के भाई…
व्यापारी और सोने का सिक्का: अकबर बीरबल की कहानियाँ
इंसाफ करने के लिए प्रसिद्ध बीरबल के पास एक बार एक व्यापारी पहुँचा। उसने कहा, श्रीमान! बहुत समय पहले, मेरे…
बीरबल की स्वर्ग यात्रा: अकबर बीरबल की कहानियाँ
बीरबल से जलने वाले दरबारियों ने उसे मारने की साजिश रची। उन्होंने बादशाह के नाई को कुछ सोने के सिक्के…
दीपावली पर लक्ष्मी- गणेश की पूजा क्यों होती है ?
Diwali Lakshmi Puja: अधिकतर घरों में बच्चे यह दो प्रश्न अवश्य पूछते हैं कि जब दीपावली भगवान राम के 14…
Top 30 Dada Dadi Ki Kahani in Hindi : 30 सर्वश्रेष्ठ दादा दादी की कहानी
दादा दादी की कहानी: “शीर्ष 30 दादा-दादी की कहानियों का संग्रह: इस पृष्ठ पर हमने लाए हैं वो कहानियाँ जो…
दूरदर्शी सुमन – दादा दादी की कहानी
Dada dadi ki kahani : प्रिया एक अमीर और सुंदर लड़की थी, उसके पास पहनने के लिए ढेर सारे सुंदर…
