सिविल सर्जन ने शेरवानी से कहा‒“ मृतक की मौत गला घोंटने से हुई है। उससे पहले इसे काफी यातना भी दी गई है और मौत को लगभग पांच दिन गुजर चुके हैं।”
शेरवानी ने धीरे से कहा‒“हूं…लेकिन आप मेरी एक दरख्वास्त मानेंगे ?”
गुनाहों का सौदागर नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1
“फरमाइए…?”
“पोस्टमार्टम की रिपोर्ट डिक्लेयर मत कीजिए। कोई पूछे तो बताइए कि देसी शराब ज्यादा पी जाने से यह मौत हुई है।”
लेकिन क्यों…?”
“मैं आपको गोपनीयता की मुंहमाँगी कीमत दूंगा।”
“बेहतर है। यह रिपोर्ट फाड़कर फेंक दीजिए।”
शेरवानी ने रिपोर्ट फाड़कर फेंक दी।
बाहर आया तो कप्पाउंड शहर के और सिविल लाइन के हजारों उन लोगों से भरा पड़ा था, जो शेरवानी के प्रशंसक थे।
वे सब जोश-खरोश से चिल्लाने लगे‒
“शौकत मियां को किसने मारा ?”
“हमें उसका नाम बताओ।”
“हम उसके टुकड़े-टुकड़े कर देंगे।”
शेरवानी ने हाथ उठाकर सबको खामोश किया और फिर ऊंची आवाज में बोला‒“मैं आप लोगों के इस प्यार और खुलूस का शुक्रगुजार हूं। शौकत मियां की मौत देसी ठर्रा पी जाने से हुई है। मुझे नहीं मालूम, उसे यह लत कैसे लग गई थी ?”
किसी ने जोर से पूछा‒“लेकिन पिछले छह दिन से शौकत मियां कहां थे ?”
शेरवानी ने कहा‒“मुझे नहीं मालूम।”
“सुना है, कोई उनकी लाश कोठी के बरामदे में छोड़ गया था !”
“वह कोई दुश्मन नहीं हमदर्द था। उसने लाश को कफन पहना दिया था। पांच दिन तक डरके मारे छुपाकर रखा होगा फिर कल रात को वह लाश मेरी कोठी में छोड़ गया था, ताकि मैं दफन कर सकूं।”
“आपको किसी पर सन्देह तो नहीं है ?”
“नहीं, किसी पर सन्देह नहीं है ?”
शेरवानी ने दाएं-बाएं चौहान और जगताप खड़े थे। वे लोग शेरवानी को धीरज बंधाते हुए गाड़ी की तरफ लाने लगे।
शेरवानी ने कहा‒“मैं एम्बूलैंस में जाऊंगा।”
चौहान ने कहा‒“नहीं, शेरवानी साहब। मैं आपका दर्द समझ सकता हूं क्योंकि मैंने भी यही घाव खाया है। आप लाश के साथ मत बैठिए।”
शेरवानी चुपचाप जगताप और चौहान के साथ गाड़ी में बैठ गया।
नासिर रात को लगभग बारह बजे दीवार फांदकर अंदर आया और पिछले बरामदे में पहुंचा तो शेरवानी की कानाफूसी सुनाई दी‒“नासिर…?”
नासिर ने धीरे से जवाब दिया‒“मैं ही हूं चचा मियां।”
“किसी को मालूम तो नहीं कि तुम कहां गये हो ?”
“नहीं, मैंने सबको धोखे में रखा है।”
“शाबाश ! मेरे साथ आओ…।”
शेरवानी नासिर को अपने कमरे में लाया और दो गिलासों में शराब उड़ेलता हुआ नासिर से संबोधित होकर बोला‒
“तुम जानते हो, मेरे ऊपर इस वक्त क्या बीत रही है ?”
“मैं समझ रहा हूं, चचा मियां। आपने शौकत मियां को बेटे की तरह परवरिश किया था।”
शेरवानी ने उसकी तरफ गिलास बढ़ाया तो उसने गिलास लेकर कहा‒“आपको किस पर शक है ?”
शेरवानी ने अपना गिलास उठाकर कहा‒“शक नहीं, मुझे कातिल का नाम मालूम हो चुका है।”
नासिर ने एक लंबा घूंट भरकर कहा‒“मुझे बताइये, मैं उसकी गर्दन धड़ से अलग कर दूंगा।”
उसने फिर एक और लंबा घूंट लिया और शेरवानी ने अपने गिलास से घूंट लेकर जहरीली मुस्कान के साथ कहा‒“तुम उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते।”
नासिर ने हैरत से पूछा‒“क्यों…?”
शेरवानी ने कठोर स्वर में कहा‒“क्योंकि उससे मुझे बदला लेना है।”
“आप…कैसे ?” फिर उसने अपनी छाती जोर से मसलकर कहा‒“म…म…मुझे क्या हो रहा है ?”
शेरवानी जहरीले स्वर में बोला‒“तुम मर रहे हो।”
नासिर हड़बड़ाकर खड़ा होता हुआ बोला‒“क…क…क्या मतलब ?”
“मैंने शराब में जहर मिला दिया था।”
नासिर ने हताश होकर चीखने की कोशिश की, “जहर…!”
लेकिन उसकी आवाज ऊंची न हो सकी।
शेरवानी ने पहले ही जैसे जहरीले स्वर में कहा‒“हां, मैंने तुम्हें इसलिए जहर दिया है कि मेरे बेटे के कातिल तुम हो।”
नासिर छाती मसलता हुआ बोला‒“मैं तुम्हारे बेटे का कातिल…यह क्या बक रहा है, कमीने ?”
“तमीज से बात करो।”
“तमीज…के बच्चे…तू…असली हरामी है…तूने अपनी विधवा बहन का बेटा…छीन लिया था…उसे…एय्याशी के रास्ते पर डालकर…तूने…मेरा संरक्षक बनकर…इतना बड़ा गुंडा…बनाया…और अब…अब…”
बड़ी मुश्किल से नासिर ने जेब से हाथ निकालकर चाकू निकाला। कंपकंपाते हाथों से उसे खोलकर उसका फल सीधा करता और हांफता हुआ बोला‒“अब…तुझे…तुझे…भी मर जाना चाहिए…”
उसने चाकू वाला हाथ इस प्रकार ऊंचा किया, जैसे वह चाकू का फल शेरवानी की छाती में ही उतार देगा। मगर उसका उठा हुआ हाथ उठा ही रह गया…आंखें और मुंह फैले, शरीर तना हुआ। फिर वह धड़ाम से गिर पड़ा।
उसकी आंखें फटी रह गईं थीं। मुंह खुला रह गया था।
शेरवानी ने अपने बूढ़े नौकर रहीम को बुलाया और पूछा‒“क्या हुआ ?”
रहीम ने नासिर की लाश की तरफ कुछ भय से देखा और बोला‒“मालिक ! गड्ढा तैयार है।”
शेरवानी ने कहा‒“चलो, उठवाओ।”
रहीम भयभीत स्वर में बोला‒“यह…स…स…सचमुच मर चुका है ?”
शेरवानी ने खीझकर कहा‒“झूठ-मूठ मरता तो क्या इस तरह पड़ा होता ?”
फिर उसने झुककर नासिर का चाकू उठाया। रहीम के साथ मिलकर नासिर की लाश पकड़वाई। फिर दोनों कोठी के पिछले हिस्से में आए, जहां एक लम्बी-सी क्यारी में कब्र के बराबर गड्ढा खुदा हुआ था।”
दोनों ने मिलकर नासिर को उसी गड्ढे में डाला और शेरवानी ने नासिर का चाकू भी गड्ढे में डाल दिया। फिर हांफता हुआ रहीम से बोला‒“बन्द कर दो गड्ढा।”
रहीम गड्ढे में फावड़े से मिट्टी भरने लगा। उसके हाथ बुरी तरह कांप रहे थे। उसे ऐसा लगता, जैसे अभी नासिर उठकर खड़ा हो जाएगा।
जैसे ही अमर ने पार्क में प्रवेश किया, अमृत ने उसे पुकारकर कहा‒“मैं इधर हूं।”
अमर इत्मीनान से चलता हुआ अमृत के निकट गया और उसके पास बैठता हुआ बोला‒“तुम कब से आए हुए हो ?”
अमृत ने जवाब दिया‒“आज तो रोशनी होने से पहले निकल पड़ा था। बापू ने कह दिया है कि अब मैं सबेरे-सबेरे टहलने जाया करूंगा। मेरा हाजमा खराब रहने लगा है।”
“गुड…!”
“रात को क्या हुआ ?”
“तीर निशाने पर बैठा।”
“यानी…!”
“नासिर का गिरोह अब अपने सरगना से वंचित हो चुका है।”
“ओहो…”
“मैं दो दिन से नासिर की निगरानी कर रहा था। कल रात ग्यारह बजे के बाद नासिर ने अपने साथियों से कहा कि वह बाथरूम जा रहा है। वे लोग एक रेस्तरां में बैठे नशा कर रहे थे। नासिर सीधा शेरवानी की कोठी गया। पिछली दीवार फलांगकर अन्दर गया।
“मैं कुछ देर बाद अन्दर था। फिर मैंने नासिर को शराब के दो घूंट पीकर मरते देखा। लाश को शेरवानी और उसके नौकर रहीम ने अपनी कोठी की एक क्यारी में दफन कर दिया है। वह लाश कभी-भी बरामद कराई जा सकती है, क्योंकि लाश गल भी जाए तो उसके साथ सबसे बड़ी पहचान नासिर का रामपुरी चाकू है, जिसे उसके साथी पहचानते होंगे।”
“खूब ! यानी तुमने शहर में आतंक फैलाने वालों के सरदार का ही खात्मा करा दिया।”
“वह भी उसके एक संरक्षक के ही हाथों।”
अच्छा, सुनो। कल मैंने तुम्हारी मां और बहन को एक हजार रुपए का मनीआर्डर भेज दिया है। वापसी की रसीद पर द्वारा पोस्ट-मास्टर लिख दिया है। मनीआर्डर तुम्हारे नाम से भेजा है।”
“यार, अमृत…!”
“नहीं, इस मामले में कुछ मत कहना। अरे, तुम जो कुछ कर रहे हो। उससे तुम्हारी मां-बहन का पेट थोड़े ही भर जाएगा। अगर तुम्हें भी खर्चे की जरूरत हो तो बता देना।”
“जरूरत होगी तो तुमसे ही कहूंगा, दोस्त।”
“हां, तुमने जिस आदमी का हाथ तोड़कर प्रेमप्रताप को बचाया था, उसका कुछ पता नहीं चला कि उसने नासिर तक और नासिर ने चौहान तक ब्लैक टाइगर को खबर पहुंचाई थी या नहीं ?”
“मैंने कल रात नासिर को उसके बारे में भी साथियों से बातें करते सुना था।”
‘अच्छा, क्या कह रहा था ?”
“उसने डर के मारे मुझसे तो ‘हां’ कर ली थी। लेकिन वापस नासिर तक पहुंचा ही नहीं। शायद होश आते ही यहां से कही और खिसक गया।”
“ओहो…”
“नासिर उसके लिए बुरा था कि उस हरामजादे के कारण प्रेमप्रताप हाथ से निकल गया और जिस समय नजर आ गया, वह उसे मारकर जमीन में गाड़ देगा।”
“इसका मतलब है, अभी चौहान इस बात से अनभिज्ञ है कि प्रेमप्रताप को किसने बचाया ?”
“परवाह नहीं। हमारा उद्देश्य जो कुछ प्राप्त करना है, वह हम प्राप्त कर रहे हैं।”
फिर वे दोनों कुछ और बातें करने के बाद उठ गए।
जैसे ही गाड़ी सेठ जगताप के बंगले के फाटक पर रुकी‒चौकीदार ने सादर मुद्रा में प्रणाम किया और फाटक खोल दिया।
गाड़ी ने भीतर प्रवेश किया और पोर्च की तरफ बढ़ गई। ड्राइवर ने उतरकर दरवाजा खोला और चौहान को देखकर उसने बड़ी गर्मजोशी से उससे हाथ मिलाया।
चौहान उसके साथ अन्दर आता हुआ बोला‒“कहां है अपना प्रेमप्रताप ?”
जगताप ने कुछ चौंककर पूछा‒“क्यों…?”
“अरे, आपने इतनी बड़ी खबर मुझसे छिपाई ?”
“कैसी खबर…?”
चौहान ने एक स्थानीय अखबार उसे देकर कहा‒“पहले पृष्ठ का पहला शीर्षक पढ़ाः
नगर के सुप्रसिद्ध पूंजीपति, ज्योति ऑयल मिल के मालिक के इकलौते बेटे प्रेमप्रताप पर कातिलाना हमला‒प्रेमप्रताप बाल-बाल बचे।”
जगताप भौंचक्का-सा रह गया। उसने आंखें फाड़कर चौहान की तरफ देखा तो चौहान ने बेचैनी से पहलू बदलकर कहा‒“आप जानते हैं, यह खबर सुनकर मेरा क्या हाल हुआ है ? जब से मेरा बेटा चेतन रहीं रहा, मैं आपके बेटे प्रेमप्रताप में ही उसकी झलक देखता हूं। कल शाम को मैं ही उसकी झलक देखता हूं। कल शाम को मैंने यह खबर पढ़ी थी तो मेरे पैरों तले से जमीन खिसक गई थी।”
जगताप ने होंठों पर जुबान फेरकर कहा‒“मगर यह खबर गलत है।”
चौहान ने चौंककर कहा‒“क्या मतलब ?”
“प्रेमप्रताप तो दो दिन से बीमार है। उसने बंगले से बाहर कदम भी नहीं निकाला।”
“यह आप क्या कह रहे हैं ?”
अरे, प्रेमप्रताप पर हमला होता तो क्या वह अपने बाप से यह बात छिपाता ?”
“लेकिन ऐसी झूठी खबर छापने का दुस्साहस कोई अखबार कैसे कर सकता है ?”
“संभव है, यह कोई स्कैंडल हो। पता नहीं, क्या चक्कर है ? अचानक हम तीनों दोस्तों के बेटों पर ही विपदा आई है। उधर शेरवानी साहब के भानजे की मौत। एक तरफ चेतन की इतनी जबरदस्त दुर्घटना और अब यह झूठी खबर।”
एकाएक अन्दर के दरवाजे के पास से प्रेमप्रताप की आवाज आई‒“यह खबर झूठी नहीं है, डैडी।”
वे दोनों चौंक कर मुड़े और चौहान ने जल्दी से उठते हुए कहा‒“आओ…आओ…प्रेम बेटे !”
प्रेम समीप आया तो चौहान ने उसे छाती से लगाकर माथे पर प्यार किया और उसे देखता हुआ भर्राई हुई आवाज में बोला‒“भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि तुम सकुशल हो।”
जगताप ने हैरान हैरान बैठते हुए कहा‒“लेकिन तुमने यह बात मुझसे क्यों छिपाई ?”
प्रेम ने कहा‒“मैं आपको ख्वामख्वाह परेशान नहीं करना चाहता था।”
“लेकिन घटना क्या थी ?”
प्रेमप्रताप ने पूरी घटना बताई और बोला‒“पता नहीं, वह कौन था ? आकाश से उतरा हुआ देवता या परीकथाओं का कोई चरित्र। अगर वह मुझे न बचाता तो इस समय शायद…”
“नहीं…नहीं, भगवान न करे…।”
चौहान ने प्रेम को ध्यान से देखकर पूछा‒“कौन था वह ?”
मैं तो उसकी सूरत भी नहीं देख-सका। लेकिन उसने मेरे पूछने पर बस इतना ही कहा था कि तुम मुझे ब्लैक टाइगर के नाम से याद रख सकते हो।”
“ब्लैक टाइगर ?”
“जी, हां। उसने अपना चेहरा फिल्मी नकाबपोशों की तरह छिपा रखा था।”
चौहान ने उसे ध्यान से देखकर कहा‒“बेटे ! यह कोई स्कैंडल तो नहीं था?”
“मैं समझा नहीं अंकल ?”
“मुमकिन है, उसने अपने आदमियों से हमला करा दिया हो। फिर खुद ही ब्लैक टाइगर बनकर कूद पड़ा हो।”
प्रेमप्रताप ने गम्भीरतापूर्वक कहा‒“क्षमा कीजिए, अंकल। वह ब्लैक टाइगर था। कोई लीडर नहीं था।”
“क्या मतलब ?”
“अमर उसने नाटक रचाया होता तो अपने ही आदमी का हाथ न तोड़ देता, उसकी एक आंख न फोड़ देता। आज भी उसके चेहरे पर ब्लैक टाइगर के पंजे के पांचों नाखूनों के निशान खरोंचों के रूप में मौजूद होंगे।”
“किसके चेहरे पर ?”
“जिसने बहाने से मेरी गाड़ी रुकवाई थी।”
“ओह…!”
“उन लोगों की यही प्लानिंग थी। वह अजनबी चिल्लाता हुआ भागकर आया। मेरी गाड़ी से टकराकर गिड़गिड़ाने लगा कि मुझे बचा लो। उसके पीछे दस-बारह गुंडे थे। जैसे ही मैं कार से उतरा, वे गुंडे ऊपर लाठियां, हाकियां और चाकू लेकर टूट पड़े।”
“ओहो…!”
“लेकिन नियम से वह ब्लैक टाइगर सामने आ गया। क्या बला की फुर्ती थी उसमें। बिल्कुल बिजली की तरह एक की हॉकी छीनकर उन पर टूट पड़ा। पलक झपकने में सबको भगा दिया। सिर्फ उस आदमी को पकड़ लिया, जिसने फरियादी बनकर मेरी गाड़ी रुकवाई थी।”
जगताप उसे ध्यान से देखकर बोला‒“यह आदमी कौन था ?”
“ब्लैक टाइगर उसे नहर पर ले गया था। जान से मारने की धमकी सुनकर उसने भयभीत होते हुए सारी असलियत बता दी।”
चौहान ने पूछा‒“वह आदमी कौन था ?”
“शहर की तरफ का कोई पॉकेटमार। मुझे उसका नाम याद नहीं।”
और वे आक्रामक गुंडे ?”
“वे सब नासिर के आदमी थे।”
जगताप ने चौंककर कहा‒“नासिर…पुराने शहर का गुंडा ?”
“हां, डैडी !”
“लेकिन उसने तुम्हारे ऊपर क्यों आक्रमण कराया था ?”
“मुझे मरवाने के लिए !”

“भगवान न करे ! मगर उसने ऐसा किसके इशारे पर किया ?”
प्रेमप्रताप ने अर्थपूर्ण मुस्कान के साथ चौहान को देखा और बोला‒“अंकल ! आप ही बताइए। किसने मुझे खत्म कराने की कोशिश की होगी ?”
चौहान बड़ा शांत नजर आ रहा था।
उसने कहा‒“शायद उसने, जिसने मेरे बेटे चेतन का खात्मा कराया है।”
जगताप फिर चौंककर बोला‒“लेकिन आपको तो बताया था कि चेतन ने आत्महत्या की थी।”
“सेठजी ! मैं अपने जानी दुश्मनों को भी क्षमा कर देता हूं।”
“मगर मैं अपने जानी दुश्मनों को क्षमा नहीं करूंगा।”
उसने प्रेमप्रताप से कहा‒“बेटे ! बताते क्यों नहीं, किसने तुम पर आक्रमण कराया था ?”
प्रेमप्रताप ने ठंडी सांस ली और बोला‒“आपके एक गहरे दोस्त ने।”
“मेरे गहरे दोस्त ने ?”
“हां, डैडी…”
“कौन दोस्त है वह ?”
चौहान ने प्रेम को ध्यान से देखकर पूछा‒“कहीं वह दोस्त मैं तो नहीं हूं ?”
प्रेम ने कहा‒“चोर की दाढ़ी में तिनका। भला, आपने यह संदेह अपने ऊपर क्यों ले लिया ?”
“इसलिए कि हम सिर्फ दोस्त हैं‒सेठ साहब, शेरवानी और मैं !”
“तो क्या यह आक्रमण शेरवानी की तरफ से नहीं हो सकता।”
“और उसका कोई आदमी पकड़ा जाएगा तो वह मेरा ही नाम लेगा। शेरवानी सेठजी को अपना दुश्मन कैसे बना सकता है ?”
“ठीक कह रहे हैं आप !”
“यानी उसने मेरा ही नाम लिया था ?”
“हां, लेकिन जब ब्लैक टाइगर ने उसके दो दांत तोड़ दिए तो वह सच बोलने पर मजबूर हो गया।”
“और सच क्या बोला ?”
“मुझे शेरवानी अंकल खत्म कराना चाहते थे।”
चौहान के चेहरे पर असन्तोष था। लेकिन जगताप ने बेचैनी से कहा‒“शेरवानी ? भला, उसे मेरे बेटे से दुश्मनी क्यों हो गई ?”
“उस पॉकेटमार के अनुसार, शेरवानी अंकल को संदेह है कि उनके बेटे शौकत को आपने गायब कराके खत्म करा दिया है।”
“क्या…?” जगताप उछल पड़ा‒“भला, मुझे उससे क्या दुश्मनी थी ?”
“यह तो शेरवानी अंकल ही जानें ?”
जगताप गुस्से से फोन की तरफ हाथ बढ़ाता हुआ बोला‒“मैं अभी शेरवानी से बात करता हूं।”
चौहान ने उसका हाथ रोककर कहा‒“यह क्या बचपना कर रहे हैं, सेठ साहब ?”
“क्यों…?”
“आप क्या समझते हैं ? शेरवानी खुशी-खुशी स्वीकार कर लेगा कि हां, उसने नासिर के द्वारा प्रेम पर आक्रमण करा दिया था ?”
“फिर क्या उसे यूं ही छोड़ दूं ?”
“नहीं, समय का इन्तजार कीजिए।”
“कैसा समय ?”
“ऐसा समय, जैसा समय का इन्तजार हम नेता लोग करते हैं। कब अपने किस दुश्मन को चित करना है, इसके लिए सुअवसर देखा जाता है। यूं भावुक होकर झपट पड़ने से चूहा भी हाथ नहीं आता और अक्ल के दांव-पेंच इस्तेमाल करने से शेर भी जाल में फंस जाता है।”
प्रेमप्रताप ने कहा‒“चौहान अंकल ठीक कह रहे हैं, डैडी।”

जगताप ने फोन करने का इरादा त्याग दिया। लेकिन उसका चेहरा जरूर गुस्से से लाल था।
उसने होंठ भींचकर कहा‒“शेरवानी को जब तक शिक्षा नहीं दी जाएगी, तब तक मुझे शांति नहीं मिलेगी।”
“डैडी ! शेरवानी अंकल को शिक्षा देने का एक और भी तरीका है।”
“वह क्या…?”
“नासिर…!”
जगताप चौंककर बोला‒“क्या मतलब ?”
“शेरवानी अंकल ने नासिर के ही द्वारा मुझ पर हमला कराया था न ?”
“फिर…?”
“उन्होंने नासिर को कुछ रकम भी दी होगी।”
“बेशक…!”
“आप नासिर को उससे दुगनी रकम देकर अपने फेवर में ले लीजिए।”
“उससे क्या होगा ?”
“शेरवानी अंकल के विरुद्ध नासिर से कुछ भी काम ले सकते हैं।”
“तुम ठीक कहते हो।” फिर उसने चौहान से कहा‒“क्यों, चौहान जी ?”
चौहान ने सिर हिलाकर कहा‒“लड़का समझदारी की बात कर रहा है।”
“मैं अभी उसे नाराज कराता हूं।”
जगताप ने रिसीवर उठाकर डायल घुमाया और रिसीवर कान से लगा लिया।
कुछ देर के बाद दूसरी तरफ से आवाज आई‒“यस, पुलिस चौकी….?”
जगताप ने कहा‒“इंस्पेक्टर ठाकुर ?”
दूसरी तरफ से आवाज आई‒“मैं ही हूं।”
“मैं…सेठ जगताप…!”
चौंककर कहा‒“ओहो, हुक्म कीजिए सेठ साहब।”
“आपके इलाके में या किसी आसपास के इलाके में कहीं भी नासिर नजर आए, उसे फौरन मेरे पास भेज दीजिए।”
“नासिर…क्या काम है, श्रीमान ?”
“निजी काम है !”
“श्रीमान ! नासिर तो कल रात ग्यारह बजे से गायब है।”
जगताप ने चौंककर कहा‒“नासिर गायब है ?”
इस वाक्य पर चौहान भी चौंक पड़ा।
आवाज आई‒“जी, हां। दिन में मुझे उससे काम पड़ा था। घर मालूम कराया तो पता चला कि वह रात से ही घर नहीं आया। उसके साथियों से मालूम कराया तो उन्होंने कहा कि वे खुद परेशान हैं।
“रात के ग्यारह बजे तक नासिर उनके साथ था। फिर कल्लन के रेस्टोरेंट में से यह कहकर उठा था कि वह निबटने के लिए घर जा रहा है। फिर लौटा ही नहीं।”
“और घर भी नहीं पहुंचा ?”
“जी, नहीं।”
“तो फिर कहां गया ?”
“भगवान जाने ? मुझे खुद उससे जरूरी काम था।”
“खैर, जब भी कहीं नजर आए…तुरन्त यहां भिजवा दीजिए।”
“बेहतर है।”
उसने रिसीवर रख दिया।
तब चौहान ने हैरत से पूछा‒“नासिर गायब है।”
“हां, कल रात से।”
“कहां गया ?”
“मैं समझता हूं, कहां गया ?”
“क्या मतलब ?”
“यह अखबार कल शाम का ही है न ?”
“जी, हां…!”
“शायद यह खबर शेरवानी तक भी पहुंची होगी।”
“ओहो, आपका मतलब है…शेरवानी ने नासिर को हटा दिया ?”
“सेंट-परसेंट। शेरवानी समझता है कि प्रेम बच गया है और वह पॉकेटमार गायब है तो उसने सच्चाई जरूर बताई होगी।”
“हूं…आप बिल्कुल दुरुस्त अन्दाजा लगा रहे हैं।”
“लेकिन नासिर आखिर कब तक शहर से गायब रहेगा। कभी-न-कभी व अपने घर तो लौटकर आएगा ही, क्योंकि उसका परिवार यहीं है।”
चौहान ने कहा‒“जाने दीजिए। क्यों टेंस होते हैं ? ईश्वर की दया से प्रेम सही-सलामत है। चलिए इस खुशी में एक-एक जाम हो जाए।”
“आइए…!”
जगताप और चौहान उठकर बॉर-रूम में चले गए।
