Osho liberated the mind trapped in traditions.
Osho liberated the mind trapped in traditions.

Osho on Freedom: ओशो ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने कभी किसी की परवाह नहीं की। उन्हें जैसा लगता था, वैसा ही वे बोलते थे और जो वे कहते थे उसकेप्रति पूरी तरह ईमानदार नजरिया देने में लगे हुए थे।

मैं सोचता हूं, ओशो ने जो बुनियादी काम किया, वह था धर्मों पर जमी हुई धूल को पोंछ डालने का और जो-जो चीजें बेकार की थीं, जो आदमी की छाती पर हावी हो गई थीं, उन्हें काट-काटकर अलग करने में उन्होंने जरा भी दया नहीं दिखाई, पूरे साहस के साथ उन्होंने उन चीजों की आलोचना की और जो-जो सार था, फिर वह चाहे जहां भी हो, उसे उन्होंने संजोकर मनुष्य के लिए उपलब्ध करा दिया। उन्होंने सारे धर्मों का सार-सूत्र निचोड़ लिया है। उनमें जो मरी हुई चीजें थीं वे निकाल दीं। मेरी दृष्टि में यह सबसे बड़ा योगदान है। आप ईश्वर या मसीहा या मंदिर और शास्त्र, इन सब धारणाओं में न उलझकर सीधे आध्यात्मिक संतुष्टि पा सकते हैं। ये धारणाएं ही तथाकथित धर्मों के आधार स्तंभ रही हैं।
ओशो ने परंपरागत बेड़ियों में जकड़े हुए आदमी के मन को आजाद किया है। और अब उनके हृदय के साथ हमें एक नवीन धर्म उपलब्ध हुआ है, जो कि निरर्थक साज-समान से मुक्त है। जिसके पास प्रश्न करने की क्षमता है, जैसी बुद्ध में थी-कि सिर्फ मैं कहता हूं इसलिए विश्वास मत करना। अगर तुम्हें नहीं जंचती है बात, तो छोड़ दो। इसलिए मैं मानता हूं कि विचारशील जगत के लिए उनका संदेश बहुत सार्थक है।

ओशो ने जो सबसे महत्त्वपूर्ण काम किया, वह था धर्म को दुख और उदासी से मुक्त करना। उन्होंने धर्म को मुक्ति और उत्सव का रूप दिया। उनके शिष्यों की ओर देखो तो उनके चेहरों पर हमेशा एक मुस्कान बनी रहती है। बहुत कम लोग सेक्स के विषय में बोलते या लिखते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि उन्हें गलत समझा जाएगा। एक शख्स जिसमें सेक्स पर बोलने का साहस है बिना इसकी परवाह किए कि लोग उसके बारे में क्या कहते हैं, वह हैं ओशो।

वस्तुत: वे जो कर रहे थे वह बहुत गंभीर था, लेकिन मिथ्या नैतिकता से ग्रसित हमारे नेताओं ने उसे छिछला बना दिया। उनके आचरण में जो झूठ, फरेब, चोरी, धोखाधड़ी और अन्य दुराचरण है उसे मध्यवर्ग के लोग बर्दाश्त कर लेते हैं, लेकिन कोई व्यक्ति यदि आदमी के द्वारा बनाई गई सेक्स की सीमाओं को लांघता है तो उस पर अनैतिक होने का लेबल लगाया जाता है। संत होने के लिए तो भारत में यही धारणा है कि उस व्यक्ति का जीवन गरीबी को समर्पित हो, वो सदा उदास ही रहे और ओशो इस परिभाषा में फिट नहीं होते थे, क् योंकि वे और धर्म गुरुओं की तरह पांखडी नहीं थे, क् योंकि आपने देखा धर्म गुरुओं के दो चेहरे होते हैं। वे भगवा या सफेद कपड़े पहन कर त् यागी होने का दिखावा करते हैं। और भीतर ही भीतर क् या चलता है ये किसी से छिपा नहीं है। और ओशो ने ऐसी कोई छवि का कभी प्रयास नहीं किया और न किसी की परवाह की। और उनके बारे में बड़ी मजेदार बात यह है

कि वे जब भी अपना प्रवचन समाप्त करते उसके अंत में ऐसे चुटकुले सुनाते कि लोग उनके विचारों में से कोई कल्ट न बना लें, उन्हें महात्मा न समझने लगे। पर सही मायने में वे महात्मा थे। उनका यह अंदाज बहुत निराला था।

ओशो के प्रवचनों ने मुझे विस्मय विमुग्ध किया है। एक तो उनका हिंदी बोलने का लहजा मुझे अच्छा लगा। दूसरे, जब आप उनकी वाणी सुनते हो तो आपका मन यहां वहां भटकता नहीं है। वे आपको बांधकर रखते हैं। मैंने भी जपुजी का अंग्रेजी अनुवाद किया है लेकिन मैंने देखा कि ओशो नानक के हर सूत्र की कितने विभिन्न पहलुओं से व्याख्या करते हैं। उनके प्रवचन सुनकर मुझे लगा कि मैं जपुजी के संबंध में कितना कम जानता था। और हम लोग सारी जिंदगी जपुजी का पाठ करते रहते हैं। सबसे कीमती बात जो मुझे ओशो की लगी वो यह कि वे हर श्लोक को, उपनिषद को, सूफी कहानियों को न जाने कितने किस्म की पृष्ठभूमि देकर प्रस्तुत करते हैं।

मैंने तो सिर्फ शब्दाश: अनुवाद किया हुआ था। ओशो ने जपुजी को इतना नया संदर्भ दे दिया कि उसे एक नया अर्थ प्राप्त हुआ है और मेरा अपने ही गुरु के प्रति आदर कई गुना बढ़ गया। अब तक मैं नानक को अर्थ शिक्षित संत कहता था, लेकिन ओशो की व्याख्या सुनने केबाद मुझे महसूस हुआ कि गुरु नानक तो प्रतिभाशाली कवि थे। और उनके शब्दों में गहरे विचार छिपे हुए थे। ओशो के ये प्रवचन केवल सिखों के लिए ही नहीं, बल्कि उन सबके लिए उपयोगी हैं जो स्वयं को भक्ति-मार्ग की परंपरा से अवगत करना चाहते हैं।