पहले वह कविताएं लिखते थे। खूब लिखी, अच्छी भी लिखी, कूड़ा भी लिखा। वह सोच रहा था कि अपने यहां तो सब खप जाता है। एक दिन में पच्चीस से तीस तक कविताएं घिस देते। लेकिन जल्द ही निराश हो गए। कुछ कविताएं छपी, लेकिन पेमेंट नहीं मिला।
वे कहानी के क्षेत्र में कूद गए। जो सामने दिखा, उसी पर एक कहानी रगड़ दी। हालत यह थी कि दो तीन सालों में इतनी कहानियां लिख डाली कि उन्हें टाइप कराने के पैसे नहीं थे। हाथ से लिखने लगे तो हैंड राइटिंग इतनी अच्छी थी कि संपादकों की समझ में ही नहीं आती थी। धड़ाधड़ कहानियां वापस आने लगीं। दो कहानियां छपी भी तो पेमेंट नहीं मिला।
वे कहानी छोड़ कर व्यंग्य की तरफ लपके। इन दिनों साहित्य में व्यंग्य का झंडा भी ऊंचा है। पहले लघु व्यंग्य लिखे। वे इतने लघु थे कि दो लाइन में ही समाप्त हो जाते थे। वे पोस्ट कार्ड पर सीधे लघु व्यंग्य लिख कर संपादकों को भेजने लगे। कई बैरंग पोस्टकार्ड वापस आ गए। वे पिछले रेट के पोस्टकार्डों को खपाने के चक्कर में पिट गए। कुछ लघु व्यंग छपे भी। लेकिन फिर वही दिक्कत… पेमेंट नहीं मिला। उन्हें लगा कि अपने यहां का रचनाकार पारिश्रमिक के अभाव में कुंठित हो जाएगा। लघु व्यंग्य एवं लघुकथा से भी वह निराश हो गए। कुछ बड़े व्यंग्य भी लिखे। वहां भी पेमेंट शून्य। कुछ नाटक लिखे… उधर भी जै हिन्द। लेकिन नौकरी में थे इसलिए परिवार चलाने की चिंता कम थी। उधर से जो मिलता उसे साहित्य फंड में डाल देते थे। उनके अंदर इतनी क्षमता थी कि साहित्य की सभी विधाओं को टच करते हुए उन्होंने रिटायरमेंट के बाद उसे गंभीरता से लेने का निर्णय लिया।
अपने यहां लेखकों का शोषण होने की बात वह हमेशा कहते थे और अपना उदाहरण देकर लोगों को बताते थे कि उन्होंने अपने जीवनकाल में इतना लिखा कि उसकी रद्दी तौल दी जाए तो भी उन्हें उससे कई गुने अधिक पैसे मिलते… जितने उन्हें आज तक पेमेंट के रूप में नहीं मिले। और नौकरीपेशा लोगों के साथ जो होता है वही हुआ। वे रिटायर हो गए। प्रसन्न भी थे और दुखी भी थे। इसी मिली-जुली मानसिकता के साथ वे साहित्य की कोई नई विधा तलाश रहे थे।
बहुत दिनों बाद अचानक एक दिन पोस्ट ऑफिस में उनसे मुलाकात हो गई। वे ढ़ाई सौ का मनीआर्डर लेकर पोस्ट ऑफिस से बाहर निकल रहे थे। मुझे देख कर बोले कि ‘आज ढ़ाई सौ का पेमेंट हुआ है और अब तो रोज कुछ न कुछ आएगा।मैंने पूछा, ‘व्यंग्य के लिए इतना पेमेंट बहुत है? वह बोले, ‘व्यंग्य को मारो गोली। मैंने तो भरवां बैंगन की व्यंजन विधि महिला पत्रिका में भेजी थी… उसी का पेमेंट है। अब मैं भरवां भिंडी, भरवां परवल, भरवां आलू की विधियां लिखूंगा… अपने यहां व्यंजन साहित्य की बड़ी मांग है और इसमें स्कोप भी बहुत हैं। भरवां बैंगन में किशमिश, काजू और बादाम डाल दो तो शाही भरवां बैंगन हो जाएगा, यानी कि इसी बैंगन से ढ़ाई सौ और बन जाएंगे। इसके बाद वे मुस्कुराते हुए सब्जी मार्केट की तरफ बढ़ गए।
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