Love Marriage Story: ‘ये मैं क्या सुन रहा हूूॅ?’’ दद्दा की भृकुटि तनी हुयी थी।
‘‘मैं आकृति से शादी करना चाहता हॅूं।‘‘
‘‘आज तक इस घर में न प्रेम विवाह हुआ है ना होगा, ” दद्दा भडके।
‘‘ठीक है आपने मेरा लालन—पालन किया और इस लायक बनाया कि मैं आज अपने पैरों पर खडा हूं। कृतघ्न न कहाउॅ सो आपके खिलाफ नहीं जाऊँगा। पर अब से मुझपर किसी और से शादी का दबाव मत बनाइयेगा।” मैं भी उसी खून का था जिसके मेरे दद्दा थे। जब वे जिद् पर कायम रह सकते है तो मैं क्यों नही? मेरा तो नवजवानी का खून था।
‘आकृति, क्या हमसे बढकर हो गयी है, बेशर्म।’’ दद्दा हत्थे से उखडे। दद्दा की बमक सुनकर सारा घर सहम गया। सारे पुरूष उनके इर्द गिर्द मेरे बचाव की मुद्रा में खडे हो गये। महिलाएं चिलमन के ओट में खडी कान गडा दी। कोई अनिष्ट न हो जाए सो मैं चुपचाप बडों के समझाने पर दूसरे कमरे में चला गया।
एक साल गुजरे। मैं अपने वचन पर कायम रहा। आकृति का फोन आता तो मैं उससे यही कहता,’’प्रतीक्षा करो या फिर किसी और से शादी करके घर बसा लेा। मगर वह तो कोई और मिट्टी की बनी थी। मानो कसम खा रखी हो कि शादी करेगी तो सिर्फ मुझसे। पहली बार जब मैंने उसके सामने दोस्त बनने का प्रस्ताव रखा तो तनिक शर्माते हुए बेाली,‘मैं उसी को दोस्त बनाउॅगी जो मेरा पति बनने का वचन देगा।’’ गजब का आत्मसम्मान था। अपने कद काठी पर न जाने कितनी सुंदरियों को नतमस्तक किया। पहली बार किसी ने मेरी पेशकदमी को ठुकराया। मैंने इसे अन्यथा नहीं लिया बल्कि मैं उसके जबाव से खुश था। होना भी यही चाहिए। ये नहीं कि घूमा फिरा मोैज मस्ती की फिर एक दिन अलग होकर किसी और के साथ बाहों में हाथ डाले घूमने लगे। आज के संस्कार ऐसे ही हेै। मगर मेरे संस्कार रूढिवादी थे। मुझे ऐसी ही लडकी चाहिए थी। आकृति का दबाव था या समय की मांग। एक दिन उसके पिता एक नजदीकी सम्पन्न रिश्तेदार के साथ मेरे घर पधारे।
चाय पानी के बाद रिश्तेदार पांच लाख की रकम दद्दा के चरणों पर रखते हुए बोले,‘‘ अगर शादी मंजूर हो तो इसे रख लीजिएगा वर्ना मैं खुद आकर ले लूॅगा।’’ दद्दा की बांछे खिल गयी। क्या बोले। इसी की तो उन्हें दरकार थी। पूरे एक साल बाद वे इतने आह्लादित नजर आये। घर में लगा शादी से पहले ही शहनाई बजने लगी। स्त्री, पुरूष सब खुश। भाग्य हेा तो मेरे जैसा। मनपसंद लडकी भी मिली, लक्ष्मी भी मिली। और क्या चाहिए? चाचियों, भाभियों को मेरे तकदीर पर रश्क आने लगा।
‘‘वाह लल्ला जी, क्या बाजी मारी है।’’ सुनकर मेरे गाल रक्तिम हो गये। मुस्कुराभर दिया। दद्दा जोर से बोले,’’बिस्कुट से काम नहीं चलेगा। कुछ मिठाई बगैर भी ले आओ।’’ वे लडकी वाले की तरफ मुखातिब हुए,‘‘भाई, हम कौन होते है बच्चों की खुशी छीनने वाले। उन्ही की खुशी में मेरी भी खुशी है।’’ अब आकृति को सोचना था कि क्या यह प्रेम विवाह ही था?
