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हमारे लिए बेशक नहीं खरीदा गया-गृहलक्ष्मी की कविता

Hindi Poem: गुड्डा/गुड़िया या खेल खिलौनापर हमें याद रखना होगाके हमें तैयार किया गया ऐसे कि हम हर माहौल में खुशव एडजस्ट हो सके,,, हमें सिखाते सिखातेवो खुद को ही भूल गईकि अब कहती हूँअम्मा अब तुम अपने लिए जिओअपने पसन्द की चीजें खरीदोमां अब तुम छोटी हो जाओकि तुम्हारी बेटी बड़ी हो गई है!!!

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जिंदगी के बीच खेवटहार होती चूडियां

Hindi Poem: मांग में सिंदुर है तो प्यार होती चूडियां।फिर पति के सफर में इकरार होती चूडियां।जिस तरह अम्बर में तारे चमक के प्रतीक हैं,लड़की की पहचान सभ्याचार होती चूडियां।चुप की अंगीठी में जैसे कोयले तपते नहीं,गर नहीं छन छन समझ ले इकरार होती चूडियां।गेंद गीटे या छटापू खेल की मुद्रा में हों,फिर उम्र की […]

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उलझनें-गृहलक्ष्मी की कविता

Grehlakshmi Kavita: चलते चलते क्यों रुक सी गई हैं जिंदगी परेशान हर लम्हा क्यों हो रही हैं जिंदगी जीने का मज़ा क्यों छीन रही है जिंदगी खामोश थे लम्हें क्यों बुलवा रही हैं जिंदगी रुके से कदमों को क्यों खींच रही हैं जिंदगी अनजाने थे ये रास्तेंं क्यों बहका रही हैं जिंदगी शमा से खामोश […]

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छुअन तेरे की सुख अनुभूति-गृहलक्ष्मी की कविता

Hindi Poem: दे दे मुझको स्पर्श कोई मां तेरे जैसायाद में तेरी तरस रही हूं, प्यार हो ऐसा इस धरती पे आने से पहलेमैंने तेरा ही स्पर्श जानाअंश तेरा बना मेरा जीवनतेरा उदर था मेरा ठिकानामैं ना जानूं इस दुनिया को कौन करें कैसादे दे मुझको स्पर्श कोई मां तेरे जैसा। मृत्यु तुल्य प्रसव पीड़ा […]

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क्रेडिट कार्ड-गृहलक्ष्मी की कविता

Hindi Poem: हो जाओ हर खुशी के लिए तैयारले लो हमारे बैंक का क्रेडिट कार्डफ्री है यह जादू की चिप्पीले आओ जीवन मे सुविधा की मस्तीएक लाख का सामान लो उधारअपने सपने के घर को दो आकारछोटी सी ज़िन्दगी क्यो घुट घुट के जीनापरिचितो के सामने शर्म का घूंट क्यो पीनाकम तनख्वाह मे अमीरी अपनी […]

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गुनहगार बहू!!-गृहलक्ष्मी की कविता

Gunhgar Bahu: बहू हर बात की गुनहगार होती है।चाहे गुनाह किसी ने भी किया हो।गलती सिर्फ बहू की होती है। बेटा धन बर्बाद करें तो बहू गुनहगारबचत करना ही नहीं जानती है।बेटा शराब पिए तो बहू गुनहगारपति को टेंशन देती है।बेटा नाजायज रिश्ते रखे तो बहू गुनहगारउसकी जरूरत को पूरा नहीं करती है। सास ससुर […]

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प्रेम का रंग-गृहलक्ष्मी की कविता

Hindi Kavita: जो वादे किए थे तुमने कभी मुझसेउन वादों का ज़िक्र करु या न करूंवो हरबार आदतन तुम्हे सोचा करनादुआओं में हरपल तुम्हारी फिक्र करनामैं आज वो सब कुछ, करूँ या न करूं हमेशा की तरहतू कुछ बताता क्यों नहीआकर बस एकबारयह जताता क्यों नहीक्यों नही कह देता किमनु , कोई रिश्ता नही अब […]

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यह दर्द कहां मैं छुपाऊं-गृहलक्ष्मी की कविता

गृहलक्ष्मी की कविता-चाहूं जो रोना खुलकर मैं,तो कभी रो न पाऊंतुम ही बताओ, मैं हृदय में उठता दर्द कहां छुपाऊं बेहिसाब दर्द दिया माना तूने,यूं बहुत दूर मुझसे जाकरमैं सोचूं भी जो तुझसे दूर होना,तो कभी हो न पाऊं तुम हो गए हो शामिल,मेरे वजूद में कुछ इस तरह सेकि चाहूं भी तुम्हें गर भुलाना,तो […]

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शीर्षक: ए चंदा सुन- गृहलक्ष्मी की कविता

गृहलक्ष्मी की कविता- ए चंदा,आज तुझसेकुछ बातें करनी हैंकुछ अपनी कहनी हैकुछ तेरी सुननी हैक्यों सदा निहारता है तूयूं टकटकी लगा धरा कोक्या तुझे भी किसी नेछला है बेहिसाबक्या तेरा भी मेरी तरहखिन्न है मन आजतू क्यों है इतना शांतक्यों सियें हैं तेरे अधरकुछ तो हाल ए दिल खोलचल मान लिया मैंनेतू है गमगीन बहुतनहीं […]

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रक्षक भक्षक-गृहलक्ष्मी की कहानियां

हम मंदिर के प्रांगण में प्रवेश कर चुके थे । चढ़ावे का सामान बेचने वालों की नजर हम पर पड़ चुकी थी । वे बाकड़ों से लगभग लटक-लटककर पूजा की सामग्री अपनी-अपनी दुकान से खरीदने को हमें आमंत्रित कर रहे थे । मैंने पाया कि उनकी हांकों और आमंत्रणों से बेखबर मम्मी की दृष्टि प्रांगण […]

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