क्रेडिट कार्ड-गृहलक्ष्मी की कविता: Hindi Poem
Credit Card Hindi Poem

Hindi Poem: हो जाओ हर खुशी के लिए तैयार
ले लो हमारे बैंक का क्रेडिट कार्ड
फ्री है यह जादू की चिप्पी
ले आओ जीवन मे सुविधा की मस्ती
एक लाख का सामान लो उधार
अपने सपने के घर को दो आकार
छोटी सी ज़िन्दगी क्यो घुट घुट के जीना
परिचितो के सामने शर्म का घूंट क्यो पीना
कम तनख्वाह मे अमीरी अपनी दिखलाओ
56 इंच का स्मार्ट टी वी फौरन घर ले आओ
आत्मविश्वास अपने भीतर भरोगे
सबके सामने सीना तान के चलोगे
किश्तो मे पैसे चुकते जाएगें
घरवाले भी अपना पूरा प्यार लुटाएगें

फोन पर मीठी बोली ने कर दिया कोई जादू
हामी भर झट पूरा किया कार्ड अपने काबू
तीन दिन मे कार्ड अपने हाथ था
लंबा छोटे अक्षरो मे लिखा पर्चा साथ था
चिट्ठी सहित पर्चे को बेग मे संभाला
नए नवेले कार्ड को एहतियात से खीसे मे डाला
जेब मे लाख रूपए होने के भाव से सीना कुछ फूल गया
घरवाली को प्रसन्न करने का अवसर मन मे घूम गया
साडी , जेवर, ओवन, या अलमारी ले आऊ
जो भी हो फर्माइश मै पूरा करते जाऊ
पत्नी ने पूछा एक सवाल ,
कैसे और कब चुकेगा यह उधार का पहाड
क्या शर्ते पढ़ ली है श्रीमान
कागज को फिर से निकाला गया
लैंस लगा छोटे अक्षरो को बांचा गया
पढ़ने के साथ उत्साह ठंडा पडने लगा
भारी शर्तो से शरीर का ज्वार चढ़ने लगा
पुनर्भरण और पेनल्टी देख सर चकरा गया
अब तक आशा से चमकती आंखो के सामने
अंधेरा छा गया
थोडी देर के लिए मुट्ठी मे कैद दुनिया फिसल गई
मन की इच्छा टूटे स्वप्न सी बिखर गई
कार्ड को भरे मन से बटुए से आजाद किया
उधार लेकर घी ना पीने का प्रण कई बार किया

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