Hindi Poem: गीतों का मल्हारों का मौसम त्योहारों का।सावन की फुहारों का प्रकृति की श्रृंगारों का।।प्रेयसी की गुहारों का प्रियतम की मनुहारों का।विरहन की दुविधाओं का सजनी की पूकारों का।। मौसम के मिजाजों का पुरवैया की बयारों का।झूलों का आनन्दों का सखियों संग बैठारों का।।साज का श्रृंगार का हरी हरी चुड़ियों की राज का।मेहंदी का […]
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श्रावण मास में शिवाराधना-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Sawan Kavita: श्रावण मास अति पावन है,लो शिव को जल चढ़ाएंँ,हर-हर हर महादेव के जयघोष से सारी सृष्टि गुंजाएंँ।बम बम बम बम भोले शिव ,शिव का ही नाम जपाएंँ,जो शिवजी का ध्यान करें,शिव की भक्ति पाए।मन से करें जो शिवाराधना,वो ही शिव को पाए।कर लो सुमिरन शिव नाम का,जप लो ॐ नमः शिवाय,ॐ नमः शिवाय, […]
ये पानी-गृहलक्ष्मी की कविता
Hindi Poem: सब एक सी जिन्दगी जीते हैं, कुछ छुपते हैं, कुछ छुपाते हैं, कुछ हँसते हैं, कुछ हँसाते हैं , सलीका अगर रोने में भी शामिल हो तो, मुस्कुराने की वजह पूछते हैं सब……………….. तो क्या कहें?कि हम ऐसे ही हैं, जो आदतन हर कसक पर मुस्कुराते हैं, हर उस पल को जीते हैं, […]
मैं बहुत फोटो खिंचवाती हूं-गृहलक्ष्मी की कविता
Hindi Kavita: हां मैं बहुत फोटो खिंचवाती हूंक्योंकि बीता वक्त लौटकर नहीं आता! तुम्हें क्या पता वह केवल तस्वीर नहीं होती उस तस्वीर में होती हैतुम्हारी, मेरी, बच्चों की प्यारी-प्यारी मुस्कुराहट उस तस्वीर में होती है मेरे बच्चों का बचपन, उनका नटखटपन, उनकी शरारते मैं सब कुछ इन कैमरों में कैद कर लेना चाहती हूं!मैं […]
यह दर्द कहां मैं छुपाऊं-गृहलक्ष्मी की कविता
गृहलक्ष्मी की कविता-चाहूं जो रोना खुलकर मैं,तो कभी रो न पाऊंतुम ही बताओ, मैं हृदय में उठता दर्द कहां छुपाऊं बेहिसाब दर्द दिया माना तूने,यूं बहुत दूर मुझसे जाकरमैं सोचूं भी जो तुझसे दूर होना,तो कभी हो न पाऊं तुम हो गए हो शामिल,मेरे वजूद में कुछ इस तरह सेकि चाहूं भी तुम्हें गर भुलाना,तो […]
मेरे हिंदुस्तान सा न देश कोई और है -गृहलक्ष्मी की कविताएं
गृहलक्ष्मी की कविताएं-विश्व गुरु है भारत मेरा,दुनिया में सिरमौर हैमेरे हिन्दुस्तान सा न देश कोई और है ऋषि-मुनियों की तपोभूमि है,वीरांगनाओं की जननी हैराम -कृष्ण खेले यहीं पर,रहीम-रसखान की धरती हैविवेकानंद के ज्ञान की चर्चा चहुँ ओर हैमेरे हिन्दुस्तान सा न देश कोई और है वीर सिपाही जनने वाली माताओं का देश हैभाषा-वेश अलग हों चाहे ,फिर […]
‘गर साथ तुम्हारा मिल जाता’ – गृहलक्ष्मी कविता
रुई के फाहे से गिरते हिम के टुकड़े, मेरे मन को करते विह्वल आंखो से बहते निर्झर, बन के पानी ये पिघल-पिघल बिसरी यादों की कुछ कड़ियां, जो लिपटी हुई मेरे कल से वापस उनको फिर मैं पाता, गर साथ तुम्हारा मिल जाता उगते सूरज की स्वर्ण किरण सी, यादें तेरी मन में छा जातीं […]
खालीपन – गृहलक्ष्मी कविता
एक अजीब सी बात हो गई, कुछ अलग सी बात हो गई। यूं तन्हा से जब कर गए, तो जिंदगी वीरान सी हो गई। मेरे ख्यालों को कर गए खाली, और खालीपन सी बात हो गई। अब सिर्फ ख्याल बाकी हैं, और सांस खयालों में खो गई। यह खालीपन रहा होगा कहीं न कहीं तुममें […]
