रुई के फाहे से गिरते हिम के टुकड़े, मेरे मन को करते विह्वल
आंखो से बहते निर्झर, बन के पानी ये पिघल-पिघल
बिसरी यादों की कुछ कड़ियां, जो लिपटी हुई मेरे कल से
वापस उनको फिर मैं पाता, गर साथ तुम्हारा मिल जाता
उगते सूरज की स्वर्ण किरण सी, यादें तेरी मन में छा जातीं
आसमान के कैनवास पर, नाम तेरा ही लिख जातीं
आते चादर काले बादल के, है नाम तुम्हारा छिप जाता
चादर बादल का छंट जाता, गर साथ तुम्हारा मिल जाता
बहते झरने करते कल,कल, नि:शब्द नहीं उनका कोई पल
निश्छल, निर्मल, उज्जवल, चंचल, है प्यास बुझाता सारा जंगल
शब्द है सारे साथ मेरे, पर सूनापन फिर भी है सताता
मैं इतना तन्हा ना होता, गर साथ तुम्हारा मिल जाता
दिखती राहें ही राहें, ना दिखती मुझको अपनी मंजिल
खो गया जो सब ना दोष किसी का, मैं था ही नहीं उनके काबिल
ना शेष बचा कुछ पास मेरे, सारी छवियां पड़ गयी धूमिल
जो मेरा था वो ना खोता, गर साथ तुम्हारा मिल जाता
वादे टूटे, कस्में टूटीं, दुनिया की रस्मों के आगे
रिश्ते तोड़े नाते तोड़े, जुड़ सके न फिर भी वो धागे
हर कोशिश की मैंने फिर भी, झुक गया बदकिस्मती के आगे
टूट के इतना भी मैं, टूटा तारा ना बन जाता
गर साथ तुम्हारा मिल जाता।
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