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ये पानी-गृहलक्ष्मी की कविता: Hindi Poem
Ye Paani

Hindi Poem: सब एक सी जिन्दगी जीते हैं, कुछ छुपते हैं, कुछ छुपाते हैं, कुछ हँसते हैं, कुछ हँसाते हैं , सलीका अगर रोने में भी शामिल हो तो, मुस्कुराने की वजह पूछते हैं सब………………..

तो क्या कहें?
कि हम ऐसे ही हैं, जो आदतन हर कसक पर मुस्कुराते हैं, हर उस पल को जीते हैं, जो देता है एहसास कि कोई तो है,
जो बिना आहट के मेरी हथेली को कसकर पकड़ता है, न खुद कुछ पूछता है, न पूछने देता है।
बस साथ चलता है, खाली टिन के डिब्बे को ठोकर मार उदासियों के कंकड़
नदी में फेंक खिलखिलाता है, मूँगफलियों को तोड़कर दाने कुतरते हुए, मन की गाँठ को खोलता है,ये जानता है कि बारिश तो होनी हीं है,हिचकियों के बाँध टूटने से पहले, समेट लेता है उफनती नदी को
सीने में और चुपचाप कंधे पर हाथ रख मन हीं मन सड़क की लंबाई /चौड़ाई और नियत दूरी को मापता है।
किनारे पर उगी दूब को देख हँसता है
और एक उड़ती दृष्टि मेरी ओर डालता है
उसे मालूम है दूब से मेरा लगाव, ये मेरी सोच है कि
दूब अगर चिपकती है धरती से तो मरती नहीं, बल्कि नई ऊर्जा,जिजीविषा खींच लाती है। वह रूकता है, दोनों हथेलियों को कसकर पकड़ लेता है और कहता है,
यार! तू इतनी इमोशनल क्यूँ है……
मत जाया कर ये पानी,जरूरी है हरियाली के लिए, रिश्तों की पृष्ठभूमि में उर्वरता के लिए।
तुझे पता है कि बड़ी मुश्किल से
लहलहाती है पौध,
अब तो थम जा।

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