दहलीज़-गृहलक्ष्मी की कविता
Dehleej

Hindi Poem: मायका एक लड़की के लिए वह दहलीज़ है,
जहाँ छूट जाते हैं, उसके कुछ सपने, कुछ अपने।
मायका मन से बंधी एक डोर है, हर एक लड़की के लिए,
जहाँ जिया होता है,उसने अपना बचपन, खेलें गुड्डे गुड़ियों के खेल।
और वही गुड़ियां जब बड़ी हो जाती हैं तो छूट जाती है,
माँ की आंचल से बंधी हुई वह देहरी,पर नहीं छूट पाता उसका मन।
 छूट जाता है अपनों के संग रहने का घर
 जहाँ भाई बहन खिलखिला कर हंसा करते थे,
बात -बात पर लड़ा भी करते थे।
पापा आने वाले हैं, का डर दिखाकर मम्मी झगड़े हमारे सुलझाया करती थी।
आंखें तरस जाती हैं, कभी भी बरस जाती हैं।
एक लड़की ही कहाँ से इतना धैर्य ला पाती है?
इस आंगन में पलकर, यूं ही विदा हो जाती हैं।
पर मन में मायके की हुड़क सदैव आती हैं।
सावन के घुमड़ते हुए बादल, कुछ संदेशा लाते हैं।
मायके से सिंदारा आएगा, मन में खुशियों के भाव लाते हैं।
हर लड़की की बनी रहे आस, बना रहे मायका, बना रहे उसका सम्मान।

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