नाश्ते-पानी के बाद फिर से सम्मेलन शुरू हुआ तो विशाल मंच पर अपने ऊँचे सिंहासन पर मुग्ध भाव से हँसते-मुसकराते बैंगन राजा नजर आए। दोनों ओर चँवर ढुलाते सेवक और चोबदार। एक ओर महामंत्री आलूराम और अन्य प्रमुख दरबारी बैठे थे और सामने ठाठें मारती सब्जीपुर की उत्सुक प्रजा।
बैंगन राजा के आदेश पर महासम्मेलन आगे चला। उद्धोषक ने बैंगन राजा का फरमान सुनाया, “अब आप लोग सब्जीपुर की समस्याएँ प्रस्तुत करें, जिन पर यहाँ खुलकर विचार किया जाएगा और उनका समाधान तलाशा जाएगा। सब अपने-अपने मन की बात जरूर कहें, जिससे अपने सब्जीपुर को हम एक सुंदर और आदर्श राज्य बना सकें।”
सुनने के बाद एक पल के लिए शांति सी छा गई। जैसे सभी सोच रहे हों कि इतने बड़े सम्मेलन में क्या कहें और क्या न कहें? मुँह से कोई ऐसी बात न निकल जाए कि सबके सामने मजाक बने।
पर सुंदरी कुँजड़िन तो शायद पहले से ही कुछ सोचकर आई थी। वह झटपट मंच पर आई और आते ही बैंगन राजा के आगे अपना दुखड़ा रोने लगी। हालाँकि वह खाली सुंदरी कुँजड़िन का ही दुख नहीं था। उसमें बहुतों का दुख था, जो सब्जीपुर से सब्जी लेकर इनसानों की बस्ती में बेचते थे।
कुँजड़िन कह रही थी, “बैंगन राजा, आप बताइए कि यह क्या मुसीबत है कि कुछ बरसों से सब्जियों को लेकर खूब हाहाकार मचा है और यह बढ़ता ही जाता है। कुछ लोग हैं जो कि ज्यादा मुनाफे के चक्कर में माल दबाकर बैठ जाते हैं और फिर बाजार में, मंडियों में भाव बढ़ा देते हैं। मगर मार हम पर पड़ती है, हम गरीबों पर। और उलटे हमें दूसरों की सुननी पड़ती है। यहाँ तक कि कुछ गरीब-गरबा तो हमारे पास आकर रोने-धोने भी लगते हैं। देखकर जी बड़ा दुखी होता है। इसी पर कल रात को मैंने एक टूटी-फूटी कविता लिखी है। आप कहें, तो सुना दूँ?”
और फिर बैंगन राजा की इजाजत से सुंदरी कुँजड़िन ने अपनी यह कविता पढ़ी, जिसमें उनसे यह फरियाद की—
सुन लो बैंगन राजा सुन लो, सुन लो बैंगन राजा,
महँगाई ने बजा दिया है बड़े-बड़ों का बाजा?
सुन लो बैंगन राजा सुन लो, सुन लो बैंगन राजा,
किससे यह फरियाद करूँ मैं, सब कहते हैं जा-जा।
सुंदरी कुँजड़िन की कविता में ऐसा दर्द था कि सभी की निगाहें उधर घूम गईं। फिर आगे थोड़ा सुर बदलकर उसने गाया—
महँगाई से परेशान है सारी जनता।
भाव बढ़ाता कौन भला नित सब्जी के?
हम क्या जानें, हम क्या जानें बैंगन राजा?
हर गरीब को मिले निवाला सस्ता जी
जल्द निकालो इसका कोई रस्ता जी।
सुंदरी कुँजड़िन ने बहुत अच्छी तरह से अपनी बात रखी थी। बैंगन राजा ने बड़े ध्यान से उसकी बात सुनी और उस पर उसी समय कार्यवाही करने का आदेश दे दिया।
फिर हराहर भैया शाकपाती वाले आए और उन्होंने अपनी समस्या सबके सामने रखी। हराहर की समस्या भी ऐसी थी कि सबके कान खड़े हो गए। यहाँ तक कि बैंगन राजा भी एकदम चौकन्ने होकर सुन रहे थे। हराहर भैया बड़ी सुरीली धुन में गाते हुए कहे जा रहे थे अपनी बात—
सुनिए बैंगन राजा, जरा सुनिए हमारी बात…।
बेचा करते सब्जी हम, पर शक हम पर सब करते,
इसीलिए तो मैं आया हूँ, श्रीमन् डरते-डरते।
बोले जनता, लगा रहे क्या जी तुम कोई इंजेक्शन?
लगा रहे इंजेक्शन भाई, खतरनाक इंजेक्शन।
टीवी कहता, सब्जी में भी लगते अब इंजेक्शन,
लगते ही इंजेक्शन सब्जी फूले भाई तत्क्षण।
रात-रात में बढ़ जाती है अजी हाथ भर तोरी,
लौकी, कद्दू और करेला बढ़ती सबकी डोरी।
पक जाता है आम फटाफट, भीतर से बेस्वाद,
पहले कभी हुआ था ऐसा, नहीं मुझे यह याद।
कौन कर रहा भाई, यह बात समझ न आई,
बड़ी मुसीबत आई हम पर, बड़ी मुसीबत आई!
शक की सूई हमीं पर, जब कि जहर मिलाते हैं कुछ और,
कौन हैं काले चोर राजा, कौन वे काले चोर…?
आखिर में एक सुझाव आया टिंडामल की ओर से, तो सबने उस पर गौर किया। टिंडामल धीरे-धीरे अपनी बात समझाते हुए बोल रहे थे, “आगे से हमें फैसला करना होगा कि जो हममें मिलावट करेगा, उसे घेर लेंगे। यही नहीं, उसके घर हममें से कोई नहीं जाएगा। वह भी समझ ले कि बिना सब्जी के जीवन कितना फीका है।
“हो-हो…हो-हो…हा-हा!” पूरे सम्मेलन में जोरदार हँसी की एक लहर। टिंडामल का सुझाव सबको पसंद आया था और उसी समय बैंगन राजा की अनुमति से उसे स्वीकार कर लिया गया।
आखिर में बैंगन राजा की सहमति से यह प्रस्ताव पारित किया गया—
“हम सब्जियाँ हर आदमी के जीवन में खुशियों का संगीत भर देना चाहती हैं। और हम यह भी चाहती हैं कि हम सबकी पहुँच में रहें। पर बीच में जाने कौन गड़बड़ी कर रहा है, जिससे सब्जियों के दाम दिन दूने, रात चौगुने बढ़ रहे हैं। ऐसे लोगों को सरकार पकड़े, हम ये विनती करते हैं।
“और जो ज्यादा और अच्छी सब्जियाँ उगाए, सरकार अलग से उसे पुरस्कार दे और प्रोत्साहन दे। यहाँ तक कि गाँवों की तरह शहरों में सब्जियाँ उगाने पर खूब जोर दिया जाए, जिससे लोगों को बहुत महँगी सब्जियाँ न खरीदनी पड़ें। सरकार सब्जीपुर के बाशिंदों का खयाल रखे। बारिश में दलदल न हो, इसलिए सड़कें अच्छी बनें। खेतों को बढ़िया खाद मिले और लोगों का रहना-सहना ठीक-ठाक हो, किसी को कोई परेशानी न हो, इसका इंतजाम किया जाए। क्योंकि तभी सब्जीपुर खुशहाल होगा और उसकी खुशहाली से ही जुड़ी है इंसानों की खुशहाली।”
करतल-ध्वनि के साथ इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद जोर का नारा लगा, “जिंदाबाद…हमारा सब्जीपुर, जिंदाबाद!”
हजारों कंठ एक साथ सब्जीपुर का जय-जयकार कर रहे थे।
“और हम प्रतिज्ञा करते हैं कि इंसान की जिंदगी में उसी तरह हँसी-खुशी के रंग भरते रहेंगे, जैसे हम हजारों-हजार सालों से करते आ रहे हैं।”
बैंगन राजा की ओर से महामंत्री आलूराम ने घोषणा की, तो सभी ने खुश होकर तालियाँ बजाईं।
अंत में सब सब्जियों ने मिलकर मीठे सुर में यह सुंदर और सुरीला गाना गाया-
ये सब्जीपुर बड़ा निराला है,
ये भैया बड़ा निराला है।
इसमें जीवन है, मस्ती है,
इसमें मस्ती की हाला है।
यह सब्जीपुर बड़ा निराला है।
इसके बाद धनिया चाची ने विशेष अतिथि पालक रानी को आमंत्रित किया कि वे सभा को संबोधित करें। पालक रानी उठीं, तो लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट से उनका स्वागत किया। पालक रानी ने बड़े कोमल और सधे हुए अंदाज में कहा—
“भाइयो और बहनो,
“आप लोगों ने इतने प्यार और आदर से मुझे बुलाया। इसके लिए मैं कैसे शुक्रिया अदा करूँ? मैं तो अब बूढ़ी हो चुकी हूँ और इनसानों तक में, सुनते हैं, अब बड़े-बूढ़ों की इज्जत करने वाले बहुत कम लोग रह गए हैं। ऐसे में आपने गुजरे जमाने की महारानी पालक रानी को बुलाया और इज्जत बख्शी, इसे मैं कभी भूल नहीं पाऊँगी।
“हालाँकि मैं कभी सभा-सम्मेलन में दिखाई दूँ या नहीं, मेरा दिल तो हमेशा आपके लिए प्यार से लबालब रहता है। इसलिए कि आप सभी मेरी संतानें हैं। मैं ऐसी बड़भागी हूँ कि मेरे सौ नहीं, हजार नहीं, लाखों-लाख बेटे-बेटियाँ हैं। वे धरती पर हर कहीं मौजूद हैं और लोगों के जीवन में हँसी-खुशी और प्रसन्नता के रंग भर रहे हैं। यह सौभाग्य और मान तो धरती पर किसी-किसी को ही मिल पाता है।
“अपनी संतानों को इस कदर प्यार और हेलमेल से रहते देख, किस माँ का जी खुश न होगा? मैं चाहूँगी कि अगले सम्मेलन में और ज्यादा प्यार के रंग छलकें।
“आपके मन में जो बड़ों की इज्जत की भावना है, वह बहुत बड़ी चीज है। उसे कभी खो न दें, हमेशा बनाए रखें। आपस में उसी तरह हेल-मेल और प्यार से रहें, जैसे हजारों सालों से रहते आए हैं। हमारे जीवन का एक बहुत बड़ा मकसद है, इनसान की जिंदगी में खुशियों का संगीत भरना। उसे हम कभी भूलें नहीं। दुर्दिनों में भी नहीं। इसीलिए इनसान की कहानी कभी हमारे बगैर पूरी नहीं होती और हमारी उसके बगैर नहीं। और यह कहानी जैसे सदियों से चलती आई है, उसी तरह आने वाली सदियों तक चलती रहे। उसमें प्यार के रंग और ज्यादा गाढ़े होते रहें, यह मेरा आप सबको आशीर्वाद भी है और शुभकामनाएँ भी।”
कहकर पालक रानी बैठीं, तो पूरा पंडाल पालक रानी की जय-जयकार से गूँजने लगा।
अंत में बैंगन राजा उठकर आए। उनका चेहरा बहुत दिनों बाद आज खिला-खिला था और आँखों से प्रसन्नता छलक रही थी। उन्होंने बड़े प्यार से हँसते हुए कहा—
“अभी आपने हमारे कुल की सबसे पुरानी, सबसे सयानी पालक रानी का भाषण सुना, तो भला अब मेरे बोलने के लिए क्या बचा? फिर भी दो-एक बातें कहता हूँ। इनमें एक का संबंध पुदीना दीदी की आज की सुंदर संगीतमय रचना को लेकर है। इसमें मिर्ची रानी ने लिखने में खूब मेहनत की और संगीत से सजाने में पुदीना दीदी ने कोई कसर नहीं छोड़ी। यह आपने देख लिया।
“पर मेरा इस बारे में यह कहना है कि नाटक को बस नाटक की तरह ही लेना चाहिए। न हमारे प्यारे महामंत्री आलू जी हमसे एक पल को दूर रह सकते हैं और न आलू जी के बिना मेरा काम चलता है। सच तो यह है कि आलू जी इस कदर मेरी साँस-साँस में बसे हुए हैं और होंठों पर कि कई बार महारानी बैंगनीदेवी नाराज हो जाती हैं। कुढ़कर कहती हैं कि आपने गलत विवाह कर लिया मुझसे। आपको तो बस आलू ही चाहिए। मैं तो यों ही बेकार आपके साथ बँध गई…!”
बैंगन राजा की यह हास्यपूर्ण अदा सभी को भा गई। सब ठहाके लगाकर हँस रहे थे और बैंगन राजा के मजाक का आनंद ले रहे थे। बैंगन राजा ने अपना भाषण जारी रखते हुए आगे कहा—
“यह सच्ची बात है कि थोड़े समय के लिए मुझमें विराग पैदा हो गया था। पर सब्जीपुर में इतने प्यारे-प्यारे लोग हैं कि मैं इनसे दूर कैसे रह सकता हूँ? इन्हीं में तो मेरी जान है। अब आपसे मेरी गुजारिश है कि मेरी भूल-गलतियों के लिए मुझे क्षमा कर दीजिए और आशीर्वाद दीजिए कि जब तक सामर्थ्य है, आपकी सेवा करता रहूँ। और अगर एक दिन भी ऐसा लगे कि मेरी सेवा में कोई खोट है, तो आदेश दीजिए, मैं उसी समय कुर्सी से उतरकर सड़क पर खड़ा होना पसंद करूँगा।
“इसलिए कि मेरा और आपका, हम सबका मकसद तो एक ही है, सब्जीपुर को खूब सुंदर, सुरीला और आनंदपूर्ण बनाना। और सिर्फ सब्जीपुर ही क्यों? सच तो यह है, इस दुनिया को इतना सुंदर, सुरीला और प्यारभरा बनाने में हम सबने भी बड़ा काम किया है और करते रहेंगे।
“इसीलिए सब्जीपुर में हरियाली और प्यार के इतने रंग नजर आते हैं, जितने और कहीं नहीं मिल सकते। आइए, हम एक साथ मिलकर नारा लगाएँ—सब्जीपुर जिंदाबाद!”
और फिर बैंगन राजा के साथ-साथ लाखों कंठों से एक साथ निकला, “सब्जीपुर जिंदाबाद!”
सारा आसमान सब्जीपुर की जय-जयकार के नारों से गूँजने लगा। दिशाएँ भी मानो रीझ-रीझकर कह रही थीं, “सब्जीपुर जिंदाबाद…सब्जीपुर जिंदाबाद!…सब्जीपुर जिंदाबाद!”
इसके बाद फिर से सब्जीपुर का सुरीला सहगान शुरू हो गया। पर इस बार उसमें एक अजब सी उत्साही लहर और जोश था-
हम सब्जियाँ, हम सब्जियाँ, हम सब्जियाँ,
हँसी-खुशी की फिरकियाँ, हम फिरकियाँ,
खोलतीं हर पल खुशी की खिड़कियाँ।
आओ मियाँ, देखो मियाँ ये सब्जियाँ…
हम सब्जियाँ, हम सब्जियाँ, हम सब्जियाँ!
इस गीत के साथ ही सब्जीपुर का यह महासम्मेलन संपन्न हुआ और लोग उठ-उठकर जाने लगे।
“हम सब्जियाँ, हम सब्जियाँ, हम सब्जियाँ!” गाते हुए सभी लोग विदा हुए, पर सबके मन में सम्मेलन की अनूठी छवि तैर गई। मीठी हँसी और मुसकान के साथ इस सम्मेलन के प्यार भरे लम्हों को याद करते हुए सब अपने-अपने घर जा रहे थे। उस समय नीला आसमान अनेक रंग-रूपों और छवियों को समेटे, मुसकराते हुए गा रहा था—
हम सब्जियाँ, हम सब्जियाँ, हम सब्जियाँ,
हँसी-खुशी की हैं अजी हम फिरकियाँ
खोलते हैं हम खुशी की खिड़कियाँ,
आओ मियाँ, देखो मियाँ ये सब्जियाँ…
हम सब्जियाँ, हम सब्जियाँ, हम सब्जियाँ!
और जब बैंगन राजा सम्मेलन की समाप्ति पर अपने महल की ओर चले तो लगा, सब्जीपुर की जनता का महासमुद्र एक जुलूस की शक्ल में उनके पीछे-पीछे चल रहा है। एक ऐसा जुलूस, जो खत्म होने में ही नहीं आता था। और पूरे सब्जीपुर में हर ओर उदार और नेक राजा बैंगनमल की जय-जयकार सुनाई दे रही थी।
ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Bachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)
