dadi ki abhilasha
dadi ki abhilasha

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

अरे ..अरे…भागो मत। सावधानी आवश्यक है। सुबह की पूजा होने के कारण ईंट और रेत की आवश्यकता है। ईंटों को एक-एक करके बोरे में भर दो, फिर उस पर रेत डाल दो। यदि तुम इसे यहां ऐसे ही छोड़ दोगे तो कोई इसे उठा ले जाएगा। लक्ष्मी दादी की मनुहार ने भरत को गाँव में रुकने पर विवश कर दिया था।

परिचित शहर के हलचल भरे जीवन से उस युवा में बदलाव आया जो अपनी प्यारी दादी के साथ गांव के मंदिर गया था। इस गाँव में शहर की अपेक्षा बहुत कम जनसंख्या होने के कारण वाहनों की अधिक आवाजाही ना होने के कारण सड़क पर सरपट दौड़ा जा सकता है। वह दादी के उस पर अपार स्नेह को भली-भांति महसूस कर रहा था, भले ही दादी ने उसे अपने हाथों से संभाल कर कस कर पकड़ रखा था, पर उसे कोई दर्द नहीं हो रहा था।

भरत ने बड़ी उत्सकुता से दादी से पूछा- “यह पूजा क्यों? दादी ने बड़ी विनम्रता से कहा- “तेरे दादाजी सत्तर साल के हो गए हैं। मैं पैंसठ साल की हूँ, इसलिए आज इस गाँव के सभी प्रबुद्धजन ‘भीमराठा शांति’ का उत्सव मना कर हमारे जीवन की खुशहाली की कामना कर रहे हैं” दादी यह कह धीरे से मुस्कुरा दी यह उनकी इच्छा थी और यह सब भरत को नया-नया सा लग रहा था!

मंदिर के अहाते में यज्ञ स्थल पर गाँव के लोग बड़ी तल्लीनता से काम कर रहे थे और एक प्रबुद्ध जन ने कहा-“इन ईंटों को चारों तरफ से बिछाएं और इसके बीचो-बीच रेत को फैला दें और ईटों और मोर्टार को बीच में डाले दें। ताकि उष्मा फर्श तक नहीं जा सकेगी, जिससे फर्श को कोई हानि न पहुंचेगी” उसके बाद वे मंत्रों का जाप करके अग्नि प्रज्जवलित करेंगे।

भरत ने अपनी दादी की इच्छा का आदर करते हुए, उस सवाल का जवाब दिया जो उसके दिमाग में हिलोरे ले रहा था, क्योंकि उसने प्रश्न तो उठाये थे, पर वह इस नए तथ्य को जानकर बड़ी हैरत में था कि वह स्वयं को भाग्यशाली समझ रहा था।

उसने अपनी आँखें अच्छी तरह खोली और इस गाँव के बारे में जो पर्व में सुन रखा था, वह सच साबित हुआ। मंदिर के खुले परिसर के चारों तरफ घूमने और टहलने के दौरान उसने देखा यहां कितनी शांति, अमन-चैन था।

भरत ने मंदिर में स्थित शिव लिंगम के त्रिनेत्रों के बारे में पूछा? वह कैसे जलता है? और सच्चाई जानकर आश्चर्यचकित होता है। अगर हम इसे समझे भी तो इसका क्या जवाब देगें?

मैंने सुना था कि दादी अनपढ थी, परंतु वही हमें सारी जानकारी देती थी। घर पर देखने को टी.वी. भी नहीं था, बिना टी.वी. देखे, वे यह सब बातें कैसे जान सकती है? यह संदेह बार-बार उसके मन में पनपता और उबाल ले रहा था।

गाँव में अपने कुछ दिनों के प्रवास के दौरान, भरत ने दादी को कभी थका-सा महसूस नहीं किया। इसके अतरिक्त वह पूजा कक्ष में कपास की माला बनाने में लगी हुई थी, वह अपने फटे हुए कपड़ों की स्वयं ही सिलाई कर रही थी, रसोईघर में सभी के लिए भोजन बना रही थी और उसके बाद भोजन सभी को परोस भी रही थी।

यहां तक माँ भी दादी से यह कहते हुए ऊब गयी थी कि “आपने खाना ठीक से खा लिया?” दादी भी न जाने किस मिट्टी की बनी है, कि जो कुछ लच्छेदार कहानियाँ सुनाकर मुँह में केवल कुछ चावल के दाने डाल कर अपनी भूख मिटा लेती है। साधारण-सी सूती की साड़ी पहन कर अपने समय को काट रही है। समय भी इनसान की कितनी परीक्षा लेता है? सरकता… जाता है..क्या दादी की कोई इच्छाएं या आवश्यकताएं नहीं हैं? यह सब भरत के लिए बडी आश्चर्य की बात थी। भरत ने सोचा कि दादी के दिमाग में कोई दिव्य शक्ति है, जो उसे अंतर्ज्ञान देती है।

भरत ने चार-पांच दिन इस गाँव में बिताकर इस गाँव में दादी को छोड़कर अपने माता-पिता के साथ अपने शहर को लौट जाने की सोची। भरत को इस गाँव से घृणा-सी हो रही थी। भरत यह सोचकर रात भर सो नहीं पाया कि वह अगले दिन दादी से मिलने जा रहा है। उसने अपनी माँ से कहा कि मुझे सुबह जल्दी उठने के लिए अभी सोने जाना होगा।

तड़के भोर में उस चमत्कारी आवाज ने भाव-विभोर कर भीतर तक हिला दिया और वह चौंक गया। वह शास्त्र मन को लयबद्ध करने वाला है। दादी ने बताया कि मंत्र की ध्वनि कितनी मोहक लगती थी जब वह मंदिर के चारों ओर परिक्रमा करती थी। उस स्थिति में उसने एक पल के लिए अपना संतुलन खो दिया और वह स्नानादि के बाद उस स्थान की ओर निकल पड़ा, जहां यह पूजा हो रही थी।

दादी के शब्दों में जलती हुई समिधाओं से उठने वाला धुंआ उसकी आंखों के लिए लाभदायक है और अभी वह मंत्र उसके कानों में स्पष्ट सुनाई दे रहा है। और उसने दादी के पास जाकर बैठने की कोशिश की।

दादी ने पोते को बताया- “अभी अग्नि भड़केगी, तुम थोड़ा दूर जाकर बैठ जाओ”

अपने पोते को देखकर दादी ने पुजारी को जानकारी देते हुए कहा कि वो अभी नींद से जागकर वहां बैठा है। नमस्ते, पुजारी ने देखा और उसने उस बच्चे को नमस्ते कहा। विदेश में पला-बढ़ा बच्चा कैसे भारतीय संस्कृति का पालन करते हुए अभिवादन कर रहा है। दादी ने अपने पोते भरत का बड़े अच्छे ढंग से वहां उपस्थित सभी लोगों से परिचय कराया। पुजारी ने भरत को देखकर उसकी प्रंशसा की और उसे खूब सराहा।

भरत चुपचाप बैठकर अपनी दादी के हाव-भाव और उनकी वृद्धावस्था में हृष्ट-पुष्ट शरीर को देखकर चकित था. लाल रंग की साडी में, कान में कुण्डल, नाक (मुक्ककूति) की आभा और चमक के कारण दादी एक सुंदर युवती के समान प्रतीत हो रही थी, सिर पर घने सफेद केश ऐसे दिख रहे थे मानो चाँदी बिखरी पड़ी हो। इस भेष में भी दादी बहुत ही सुंदर लग रही थी। उनके चेहरे पर कहीं बुढापे की झुर्रियां दिखाई नहीं दे रही थी और यौवन का श्रृंगार भी नहीं था।

मस्तक पर बड़ा कुकम का टीका, शरीर में हलके से हल्दी पुसा हुआ जिसे देखकर ऐसा प्रतीत होता था मानो कोई दिव्य देवी जमीन पर उतर आई हो। दादी के दोनों हाथ, नमस्कार की मुद्रा में सभी का अभिवादन करते हुए और गले में माला पहने हुए और दादाजी के साथ सटकर बैठी हुई थी, मैं इस सभी को बिना पलक झपकाए एकटक देखता ही रहा।

दादी ने पूजा समाप्त होने पर अन्य बच्चों के साथ हवनकुंड की अग्नि की परिक्रमा कर प्रणाम किया। उसी प्रकार बड़ी तेजी से उस परिक्रमा को पूरी करने पर दादी ने भरत को अपनी तरफ खींच लिया। दादी ने भरत से पूछा- “अच्छी तरह भगवान से दुआ माँगी है क्या?” भरत ने भी हाँ कहकर सिर हिलाया और कहा- “दादी आपने जैसा कहा यह चाहिए या वह चाहिए माँगे बगैर, अच्छी तरह खेलने के लिए पढ़ने के लिए मुझमें एकाग्रता आनी चाहिए, ऐसी ही दुआ मैंने अपने लिए माँगी है।”

कर्पूर की तरह एक बार कहने पर उसी प्रकार उसे ठीक से ग्रहण करने वाले अपने पोते को दादी ने, “बहुत बढिया” कहकर भरत को गले से लगा लिया।

थोड़ी देर चुप रहने के बाद भरत ने थोड़ा झिझककर दादी से अपना पूरा हक मानकर सवाल पूछा- “दादी, परिक्रमा करने के बाद, आपने भी अपने मन में कोई दुआ माँगी है? ऐसा लगता है” दादी थोड़ा हिचकिचाई “ऐसा कुछ नहीं है, इस उम्र में मुझे और क्या चाहिए!”

“नहीं! भरत ने कहा। कुछ तो आपने भगवान से माँगा ही होगा? मुझे यह समझ में आ रहा है। क्या माँगा, केवल मुझे ही बताएं? झूठ मत बोलना, यह मुझे आपने ही सिखाया है” दादी से सीख कर पोते ने दादी से ही कहा। दादी का चेहरा देखने लायक था, उनका चेहरा थोड़ा फीका पड़ गया। दादी के लिए पोते को बताने की नौबत आ गई। उधर भरत की आँखों में चमक और जानने की उत्सुकता थी कि, दादी क्या बताने जा रही है?

दादी ने भरत को बताया- “तुम्हारे दादाजी को अपने पास बुलाने से पहले मुझे अपने पास बुला लें। ऐसा मैंने भगवान से दुआ माँगी” यह सुनकर भरत की आँखें नम हो गई, उसे एक प्रकार का भय हो गया। भरत ने कहायह चाहिए वह चाहिए मुझे माँगना नहीं चाहिए, ऐसा आपने ही कहा था”

दादी ने भरत की बात का जवाब देते हुए कहा- “हाँ! तेरी उम्र में हमको माँगने के लिए कई चीजें हैं। पर अब मुझे बस यही चाहिए था, यह मेरी मन की अभिलाषा की पूर्ति करेगा, इसलिए मैंने वही अपनी अंतिम अभिलाषा पूरी करने की माँग की”

यह यज्ञ और पूजा दीर्घ आयु के लिए किया जाता है, यह भरत ने पहले सुन रखा था। परन्तु दादी की अभिलाषा उसके लिए बिलकुल नयी थी। उसके मन में एक प्रकार की कशमकश थी, वह भी सोते हुए जाग रहा था, उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। शायद थोड़ा बड़ा होने पर समझ सकेगा। दादी ने बडे लाड़-प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा। दादी की अनोखी अभिलाषा उसकी समझ में आ गई। अब भरत के लिए ये सभी आश्चर्य की चीजें सम्मान में परिवर्तित हो गई।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’