Maut ke Deewane by James Headley Chase hindi novel - Grehlakshmi
Maut ke Deewane by James Headley Chase

मैं जान बचाने के लिये जी तोड़ दौड़ रहा था और वे लोग भी उतनी ही तत्परता से मेरा पीछा कर रहे थे। मेरी सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि मैं इस क्षेत्र में सर्वथा अपरिचित था, जबकि मेरा पीछा करने वाले यहां के चप्पे-चप्पे से वाकिफ थे। इसके अलावा न तो मेरे कपड़े और न ही मेरे जूते इस वातावरण के अनुकूल थे। फिर भी वहां से भाग निकलने के अतिरिक्त मेरे पास और कोई चारा नहीं था। मैं दौड़ता रहा।

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दौड़ते-दौड़ते थक जाता तो, धीरे चलने लगता। सांस जरा ठीक हो तो फिर दौड़ने लगता। मैं यह चाहता था कि मेरे और उनके बीच जितना फासला बढ़ जाए उतना ही मेरे हित में होगा।

मेरी एक और समस्या थी कि मुझे यह नहीं पता था कि मैं किस दिशा में आगे बढ़ रहा हूं। मैं ईश्वर से यह प्रार्थना कर रहा था कि मुझे कोई ऐसा मकान दीख जाये जिसमें टेलीफोन लगा हो….ताकि मैं बिली को सूचित कर सकूं….फिर वह अपने आप मुझे और डेबी को बचा लेगा, पर मकान तो क्या वहां पर कोई सड़क भी नहीं दिखाई देती थी। न ही बिजली के खम्भे दिखाई पड़ रहे थे, जिससे आस-पास की आबादी का अनुमान लगाया जा सकता।

कोई आधे घंटे बाद एक जगह मैं सांस लेने के लिए रुक गया। वहां मैंने अपनी बन्दूक में गोलियां भरी और कन्धे पर लटका ली। तभी मुझे दूर से आवाजें सुनाई दीं। वे लोग मेरा पीछा करते हुए इसी दिशा में बढ़ रहे थे। मैं फिर पेड़ों के बीच छिप गया….और कभी तो धीरे और कभी दौड़ते हुए आगे बढ़ने लगा। आगे एक बहुत चौड़ा दरिया था। दरिया में पानी इतना गहरा था कि उसे पैदल पार करने का प्रश्न ही नहीं होता था और पानी का प्रवाह इतना तेज था कि उसमें तैरना खतरे से खाली नहीं था। मुझे और कुछ नहीं सूझा तो मैं नदी के किनारे एक दिशा में बढ़ने लगा। आगे कुछ फासले पर एक समतल जगह थी। मेरे पास कोई और चारा ही नहीं था। अतः मैं समतल जगह पर आगे बढ़ने लगा। तभी मुझे गोली चलने की आवाज सुनाई दी। गोली की आवाज सुनकर मैं उस घास वाली जगह की ओर बढ़ आया जहां तक मेरी कमर तक ऊंची घास खड़ी थी। मैंने पीछे मुड़कर देखा तो मुझे दो आदमी दिखाई दिए जो अलग-अलग दिशाओं से मेरी ओर बढ़ रहे थे। मैंने बन्दूक कन्धे से उतारी तथा उन दोनों पर गोली चला दी। वे दोनों चीत्कार कर लम्बी-लम्बी घास में गिर गये, किन्तु उनके चीखने की आवाज बिल्कुल बनावटी थी। मैं समझ गया कि उन्होंने गोली लगने का अभिनय किया है। मैंने अपना रुख बदला और दूसरी दिशा में दौड़ते-दौड़ते मेरा सांस इतना फूल गया था कि सीना फटने लगा था। जूते बिल्कुल फट गये थे। आगे हल्का-हल्का कीचड़ था जिस पर मेरे पदचिन्ह अंकित होते जा रहे थे। मुझे निश्चय था कि अब वे लोग किसी समय भी मुझे आ दबोचेंगे। आगे एक पहाड़ी थी। मैं उस पहाड़ी पर चलने लगा। पहाड़ी के ऊपर पहुंचते-पहुंचते मेरा सांस इस कदर उखड़ गया कि और चलना तो एक ओर, मुझसे खड़ा तक नहीं हुआ जा रहा था‒मैं निराश होकर वहीं एक पेड़ के नीचे बैठ गया और अपनी मौत की प्रतीक्षा करने लगा।

थोड़ी देर बाद मुझे एक आवाज सुनाई दी। मैंने अपना हाथ बन्दूक की ओर बढ़ाया ही था कि एक ने मेरी कलाई को वहीं का वहीं जकड़ लिया। मैंने मुड़कर देखा वह एक लम्बे कद का आदमी था….उसके बादल सफेद थे….उसने जीन्स पहन रखी थी….बगल में बन्दूक थी‒वह लगातार मेरी ओर देखे जा रहा था।

‘तुम जीते मैं हारा।’ मैंने उस आदमी से कहा‒‘तुम चाहो तो मेरा काम तमाम कर दो।’

‘काम तमाम कर दो….वह क्यों? तुम किसी मुश्किल में हो क्या?’

तभी कोई और उसके पीछे आकर खड़ा हो गया…वह एक युवती थी। उसके बाल लम्बे और काले थे। शरीर गठा हुआ था। उसके शरीर पर भी कमीज और जींस थी। तब मुझे अहसास हुआ कि वे रॉबिन्सन के आदमी नहीं है।

मैंने अपना सांस बराबर करते हुए उस आदमी से कहा‒

‘मैं बहुत मुसीबत में हूं, रॉबिन्सन और उनके गुर्गों ने मुझे व मेरी पत्नी को अगवा कर रखा है। वे मेरी पत्नी को प्रताड़ित कर कुछ जानकारी हासिल करना चाहते हैं।’

अभी मैं यही सब उस बूढ़े को बता ही रहा था कि तभी मैंने लिराय को अपने साथियों के साथ इधर बढ़ते देखा।

बूढ़े बंदूकधारी की दृष्टि उन पर केन्द्रित हो गई। वह खतरे को भांप चुका था। अतः उन लोगों से मुझे छिपाने के लिए उसने मुझे एक पेड़ पर चढ़ा दिया तथा उसके साथ जो लड़की थी उसे टीले के पीछे छिप जाने को कहा।

अब तक लिराय अपने साथियों के साथ वहां पहुंच चुका था।

उसने एक पहाड़ी पर उनका रास्ता रोककर अपनी दुनाली उसके ऊपर तान दी फिर उस बूढ़े ने जिसने अपना नाम डैड बताया था-ने लिराय से कहा‒

‘यदि तुम यहां से तुरन्त दफा नहीं हुये तो तुम्हारे सिर का गूदा बाहर निकल आयेगा।’

लिराय ने डैड को धमकी देते हुए कहा‒‘तुम हमें आगे नहीं बढ़ने दे रहे….हम तुमसे निपट लेंगे।’

‘मैं तुम्हारे जैसे चौकीदारों से डरने लगा, तो जमींदारी कर चुका।’ डैड ने लिराय के चेहरे पर थूकते हुए कहा‒‘अब तुम नौ दो ग्यारह हो जाओ।’

लिराय के साथियों ने अपने मुखिया की यह दुर्दशा होते देखी तो वे सर नीचा किए पहाड़ी से नीचे उतरने लगे। लिराय भी सिर झुकाए उनके पीछे-पीछे चला गया। डैड वहीं खड़ा उनको जाते देखता रहा।’

जब वे सबके सब नजरों से ओझल हो गए, तो उस लड़की ने टीले के पीछे से आकर कहा-‘पॉप…वे लोग तो चले गये।’

तत्पश्चात डैड उस लड़की को साथ लेकर पेड़ के नीचे चला आया और अपना परिचय देते हुए बोला‒‘मेरा पूरा नाम डैड पार्किज है….और यह मेरी बेटी है….इसका नाम शेरी लू है। अब तुम पेड़ से नीचे उतर आओ और मुझे बताओ कि तुम कौन हो?’

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