इन्स्पेक्टर दीक्षित की जीप फर्राटेे भरती हुई मौरिस रोड के चौराहे से राजघाट की तरफ बढ़ी। जीप में वह अकेला ही था।
काफी दूर से ही रोशनी में वे चारों सड़क पर नजर आ गए। इन्स्पेक्टर दीक्षित ने जल्दी से जीप रोक ली।
गुनाहों का सौदागर नॉवेल भाग एक से बढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- भाग-1
उनमें से एक होश में आ चुका था। वह धीरे-धीरे कराह रहा था। दीक्षित कूदकर जीप से उतरा और उसके पास बैठ कर बोला‒“ऐ, कैसे हो तुम ?”
बड़ी मुश्किल से उसने आंखें खोलीं और घोर पीड़ा में डूबी हुई आवाज में बड़ी मुश्किल से बोला‒“मेरा एक हाथ और एक टांग टूट गए हैं।”
“किसने किया तुम्हारा यह हाल ?”
“ब…ब…ब्लैक टाइगर ने !”
“यह कौन है ?”
“कोई अलौकिक विपदा है। उसने मेरे तीनों साथियों का भी एक-एक हाथ तोड़ दिया है और एक-एक टांग तोड़ दी है।”
“ओहो, क्या तुम उसे पहचानते हो ?”
“वह काले लिबास में था और उसका चेहरा भी काले रूमाल से ढंका हुआ था। उफ्फोह इन्स्पेक्टर साहब, मुझसे सहन नहीं हो रहा है। जल्दी से हस्पताल ले चलिए।”
वह फिर बेहोश हो गया।
इन्स्पेक्टर दीक्षित जल्दी-जल्दी चारों को एक-एक करके जीप में डालने लगा।
ठीक दो बजे वह हस्पताल से निकला। अपनी जीप में बैठा और चल पड़ा।
जब जीप अंधेरी सड़क पर दौड़ने लगी तो अचानक पीछे से एक मर्दानी-सी आवाज उसके कानों में आई‒“बस, यहीं रोक लो।”
इन्स्पेक्टर दीक्षित ने बिजली जैसी फुर्ती से ब्रेक लगाये। साथ ही होलेस्टर पर हाथ डाला। लेकिन वह सन्नाटेे में रह गया, क्योंकि होलेस्टर से रिवाल्वर गायब था।
रिवाल्वर की नाल उसकी गर्दन पर लग गई और शुष्क स्वर में कहा गया‒“रिवाल्वर मेरे पास है। घबराओ मत।”
इन्स्पेक्टर दीक्षित हकलाकर बोला‒“……तुम कौन हो !”
“ब्लैक टाइगर !”
“ब…ब…ब्लैक टाइगर ?”
“अपराधियों का दुश्मन और तुम जैसे गद्दार कानून के रखवालों के खून का प्यासा।”
“नहीं…!”
“नीचे उतरो, वरना मैं ट्रेगर दबाता हूं।”
दीक्षित तुरन्त नीचे उतर आया।
पीछे से अमर नीचे उतरा और गुर्राया‒“अपनी वर्दी उतारो !”
“क…क…क्यों…?”
“क्योंकि मैं इस वर्दी का सम्मान करता हूं, जिसे पहनते समय तुमने कानून की रक्षा की शपथ लेकर भी इस पवित्रा वर्दी का सम्मान नहीं किया।”
“द…द…देखो…मैं…ब…बाल-बच्चों वाला हूं।”
अमर निर्मम स्वर में गुर्राया‒“वर्दी उतारो, वरना गोली चलाता हूं।”
दीक्षित ने जल्दी से बुश्-शर्ट उतार दी। पतलून की बैल्ट खोल दी।
अमर ने कहा‒“अब मेरी तरफ रुख करो।”
दीक्षित जैसे ही अमर की तरफ मुड़ा।
अचानक दीक्षित के चेहरे पर चीते सरीखा पंजा पड़ा और दीक्षित की चीख निकल गई थी और चेहरे के ऊपर पांचों नाखूनों के निशान मौजूद थे।
अमर ने उसके दाएं कंधे पर डंडा मारा और वह तड़प गया। दूसरा डंडा उसके दाएं घुटने पर पड़ा, जिसकी हड्डी उसी समय चटक गई। वह लुढ़ककर बेहोश हो गया।
अमर ने उसे ठोकर मारी और मुड़कर चल पड़ा।
चौहान ने अपने सामने खड़े गोगा को देखा, जिसकी एक आंख पर एक गेंद उभर आई थी और हाथ सूजकर लटक रहा था। एक हाथ टूटा हुआ था। लेकिन दोनों टांगें सलामत थीं।
गोगा बड़ी पीड़ाजनक आवाज में कह रहा था‒“नेताजी ! पता नहीं किस प्रकार मैं उससे बचकर भाग निकला, वरना मरी एक टांग भी टूट गई होती, जैसे सिविल लाइन में मेरे चार साथियों का हश्र हुआ था और आज पुराने शहर में मेरे तीन साथियों का हश्र हुआ है।”
“हूं ! और उसने सिविल लाइन के इन्सपेक्टर दीक्षित और पुराने शहर के इन्स्पेक्टर सिंह का भी यही हाल किया है, जो तुम लोगों का।”
“क्या वह इतना शक्तिशाली है कि तुम लोग उस अकेले को नहीं मार सकते ?”
“नेताजी ! शक्ति से ज्यादा दिमाग की जरूरत होती है किसी भी लड़ाई में। उसका दिमाग इतना तेज है कि यही समझ में नहीं आता कि वह किस प्रकार का वार करेगा।”
“जब उसका समाना हुआ तो मुझे अन्दाजा हुआ कि वह शक्ति से ज्यादा अपनी खोपड़ी और आक्रमणकारी ढंग से लड़ता है। उससे दस गुना शक्तिशाली भी उसके आगे टिक नहीं सकता।”
“यह तुम कह रहे हो गोगा, जो नासिर के बाद शहर की नाक कहलाता है।”
“क्या आप शहर की इस नाक को अपने सामने देख नहीं रहे। कोई दूसरा देखेगा तो यह समझेेगा कि कम से कम पचास आदमियों ने मिलकर मारा है गोगा को।”
चौहान चिंतन नजरों से उसे घूरता हुआ बोला‒“और तुम इस हालात में यहां आ गए ?”
“और कहां जाता ?”
“हस्पताल।”
“कुशल मनाइए, चौहान साहब। हस्पताल में मेरे सात साथी इस समय एक जैसी दशा में हैं और उनके दिल-दिमाग पर ब्लैक टाइगर किसी भूत की तरह सवार है। उनसे पूछ-ताछ करने वाले भी सब बड़े-बड़े अफसर हैं।”
“अगर उनमें से किसी एक ने भी बता दिया कि इस लूटमार, बलात्कार और अराजकता के लिए उन्हें आपकी तरफ से रकम मिली थी तो आप कहां होंगे ?”
“तुम मुझे धमकी दे रहे हो?”
गोगा पीड़ा में भी हंस पड़ा और बोला‒“आ गए न अपनी राजनीति के रंग-ढंग पर। चौहान साहब, मेरा जो हाल है, वह आपके कारण से है। मेरे सातों साथी जीवन भर के लिए अपंग हो गए हैं। मैं भी शायद सारी उम्र एक भिखारी जैसा जीवन गुजरूंगा और आप मुझे ही आंखें दिखा रहे हैं !”
अचानक चौहान ने कोमल स्वर में कहा‒“बैठ जाओ, तुम्हें बड़ी जल्दी गुस्सा आ जाता है।”
गोगा ने बैठते हुए कहा‒“अपने किसी भरोसे के डाक्टर को बुलाकर मेरा इलाज यहीं कराइए। पुलिस ऐसे बदमाशों की बहुत बड़ी दुश्मन है, जो किसी काम के न रहते हों।”
“तुम्हारे विचार में यह ब्लैक टाइगर कौन हो सकता है ?”
“भूत ! शायद उसके शरीर में शिकारी कुत्ते की आत्मा है। जिधर किसी भी बदमाश की गंध सूंघता है‒वहीं आ मौजूद होता है। मुझे तो लगता है कि शहर के दोनों हिस्सों के बाद अब हरिनगर, से लगने वाले गांव कस्बों की बारी है।”
“यह भेद सिर्फ हम तीन के बीच था‒मैं, सेठ जगताप और शेरवानी। यानी हम लोग जान-बूझकर नगर की कानून-व्यवस्था खराब कराके वर्तमान राज्य सरकार के विरुद्ध जनता में अविश्वास और नफरत पैदा कर रहे हैं।
“उधर विधानसभा भंग होती, इधर मैं दल बदलकर दूसरी पार्टी के टिकट पर खड़ा हो जाता और सीट फिर से मेरे हाथ में होती।”
“जी…!”
“लेकिन अब सेठ जगताप और शेरवानी मेरे विरुद्ध हैं। सम्भव है उन दोनों ने मिलकर कोई ऐसा आदमी खड़ा किया हो, जो मेरी चालों को असफल कर दे, क्योंकि मुझे विश्वास है कि अब लोग मुझे विधानसभा की सीट पर नहीं देखना चाहेंगे।”
गोगा आंखें फाड़े चौहान को देखता रहा।
चौहान ने फिर से कहा‒“जगताप के पास पैसा है। शेरवानी के पास दिमाग। वे दोनों मिलकर ऐसा आदमी ढूंढ सकते हैं।”
गोगा ने थूक निगलकर कहा‒“मेरे घावों में बहुत पीड़ा है नेताजी।”
“तुम्हारा कोई ऐसा आदमी बाकी है, जो तुम्हारे सातों आदमियों की खबर रखे कि वे लोग पुलिस को क्या बयान दे रहे हैं ?”
“क्या अब पुलिस में आपका कोई आदमी नहीं रहा ?”
“ये पुलिसवाले बड़े कुत्ते होते हैं। उन्हें मालूम है कि नेता सीटों पर से उतरते-चढ़ते रहते हैं, लेकिन पूंजीपति, पूंजीपति ही रहता है और शेरवानी जैसा वोट बैैंक।”

“शेरवानी आज एक नेता को सीट पर बिठा सकता है तो कल दूसरे नेता को भी उसी सीट पर बिठा सकता है। वे लोग जगताप और शेरवानी की ही फेवर करेंगे।”
“तो आप ऊपर से भी दबाव डलवा सकते हैं।”
“असम्भव है।”
“क्यों…?”
“हर पार्टी की हाईकमान जानती है कि नेता से ज्यादा महत्त्व उस क्षेत्र के पूंजीपति और शेरवानी जैसे सामाजिक कार्यकर्ता को दिया जाता है। जिस चुनाव क्षेत्र से पार्टी को अपना नेता विधानसभा में भेजना है।
“इसलिए ऊपर वाले अगर मेरे विरुद्ध जगताप और शेरवानी के गठजोड़ से परिचित हो गए होंगे तो वे लोग मेरी बातें एक कान से सुनकर दूसरे कान से उड़ा देेंगे।”
“लेकिन हाईकमान को खबर कौन करेगा ?”
“तुम नहीं समझोगे गोगा। हर पार्टी का अपना एक ग्रुप सिर्फ नारद मुनि का काम करता है। कभी-कभी एक ग्रुप दोनों ही पार्टियों के लिए काम करता है।”
“नेताजी ! मैं तो सीधा-सादा शहरी हूं। गुण्डा ही सही। मैं नहीं जानता कि आपकी राजनीति क्या होती है। मगर आपकी बातें सुनकर तो ऐसा लगता है कि हम तो ऐसा लगता है कि हम जो कथा में राजा-महाराजाओं के बारे में पढ़ते या फिल्मों में देखते थे, वह युग आज के युग से ज्यादा अच्छा था।”
“बहुत खूब !”
“सचमुच नेताजी, आज मेरी आंख, होंठ और हाथ में जो पीड़ा की भीषणता है, वह मुझे याद दिला रही है कि गुण्डे के रूप में मैंने जिन लोगों को मारा-पीटा है, उन्हें भी ऐसी ही पीड़ा पहुंचती होगी।”
“तो जाओ, किसी मन्दिर में जाकर पुजारी बन जाओ। साधु बनो, यहां क्या करने आए हो ?”
“एक नेता का आखिरी रूप देखने !” गोगा ने उठते हुए कहा‒“तुमसे तो शेरवानी अच्छे हैं, जो अपने गुण्डों का भी ख्याल रखते हैं। वह सेठ जगताप अच्छे हैं, जिन्होंने मेरे सामने अपने गुण्डों के घायल होने पर उनके इलाज का पूरा खर्चा उठाया है और उनके घरों में राशन भरवाए हैं।”
“तो फिर उन्हीं के पास जाओ।”
“उन्हीं के पास जा रहा हूं। देखना, वे लोग मेरा इलाज कराएंगे। फिर मैं अपनी पूरी शक्ति लगा दूंगा कि तुम जैसा स्वार्थी नेता सीट पर न बैठ सके।”
“मूर्ख ! सीट पर बैठने वाला स्वार्थी नहीं होता, बल्कि सीट पर बैठकर स्वार्थी हो जाता है। तू जिसे बिठाएगा, वही चौहान साबित होगा। कितने नेता बदलेगा तू ?”
“बदलकर देखने में क्या हर्ज है ? शायद तुम राक्षसों के बीच निःस्वार्थ नेता भी निकल आए, जो जनता के बोटों से नेता बनकर जनता की बहू-बेटियों और जान-माल के लिए खतरा न बने, बल्कि उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी पूरी करे।”
फिर वह बाहर जाने लगा तो अचानक चौहान ने हाथ उठाकर गुर्राते हुए कहा‒“ठहरो…गोगा…!”
गोगा पलटकर मुड़ा तो चौहान के हाथ में रिवाल्वर नजर आया। गोगा हंस पड़ा और बोला‒“खूब नेताजी। यह रिवाल्वर है, माइक नहीं, जिसे पकड़कर आप शब्दों के कारतूस चलाते हैं और जनता को डराते हैं। इसे चलाने के लिए नासिर या गोगा जैसे लोगों के हाथ चाहिएं।”

फिर वह मुड़कर चलने लगा। अचानक धांय की आवाज के साथ ही गोगा की एक जोरदार चीख वातावरण में गूंजी। उसने तड़ग भरी और फर्श पर गिरकर कुछ पल हाथ-पांव मारकर ठंडा हो गया। उसकी आंखें खुली रह गई थीं।
चौहान ने रिसीवर उठाकर डायल घुमाया और रिसीवर कान से लगा लिया।
कुछ देर बाद दूसरी तरफ से आवाज आई‒“यस, कोतवाली।”
“कौन बोल रहा है ?”
“एस॰ पी॰ सिटी। आप कौन हैं ?”
“चौहान…एम॰ एल॰ ए॰ चौहान।”
“ओहो नेताजी, फरमाइए ?”
“देखिए, शहर का एक गुण्डा‒जो नासिर के गिरोह का है…गोगा। आपकी लिस्ट पर तो उसका नाम जरूर होगा।”
“जी हां, फरमाइए ?”
“आज वह कहीं से कोई केस करके आया था। मुझे धमकी दे रहा था कि एक लाख रुपए उसे देकर उसकी फरारी का इन्तजाम कराऊं और पुलिस में उसका नाम न आने दूं।”
“ओह, फिर…?”
“मैंने उसे धमकी दी कि पुलिस को बुलाता हूं। उसने मेरे ऊपर चाकू से हमला कर दिया। मुझे अपनी सुरक्षा के लिए गोली चलानी पड़ गई।”
“क्या वह भाग गया ?”
“नहीं, उसकी लाश यहां मेरे ड्राइंग-रूम में पड़ी है।”
“ओहो, हम लोग आ रहे हैं।”
चौहान ने रिसीवर रख दिया। आगे बढ़कर गोगा की जेब टटोली। एक जेब में चाकू मौजूद था। उसने चाकू निकालकर खोला और अपनी आस्तीन फाड़कर भुजा पर घाव बना लिया।
