धीरे-धीरे बिलकुल कमन्द खिंचकर भूतनाथ के हाथ में आ गया और तब वह बड़ी ही बेचैनी के साथ कुएँ के अन्दर झाँककर देखने लगा मगर अँधकार के अतिरिक्त और कुछ दिखाई नहीं दिया।
रामदास भूतनाथ का बहुत ही प्यारा शागिर्द था और साथ ही इसके भूतनाथ को उस पर विश्वास भी परले सिरे का था। इस मौके पर हरदेई की सूरत में जो यह होनहार शागिर्द निःसन्देह किसी दिन मेरा ही स्वरूप हो जाएगा केवल इतना ही नहीं, जिस तरह भूतनाथ उसे लड़के के समान मानता था उसी तरह रामदास भी भूतनाथ को पिता-तुल्य मानता था, अस्तु ऐसे रामदास का इस तरह कुएँ के अन्दर जाकर बेमुरौवत हो जाना कोई मामूली बात न थी। इससे भूतनाथ को बड़ा ही सदमा हुआ और उसने ऐसा समझा कि मानो पला-पलाया और दुनिया में नाम पैदा करने वाला बराबर का लड़का जिसे निधिरूप समझता था हाथ से निकला जा रहा है। भूतनाथ इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर सकता था और उससे यह नहीं हो सकता था कि रामदास को ऐसी अवस्था में छोड़कर वहाँ से चला जाय।
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कुछ देर तक सोचने और विचारने के बाद भूतनाथ ने कमन्द का एक सिरा पत्थर के साथ अड़ाया और तब खुद भी उसी के सहारे नीचे उतर गया।
भूतनाथ को विश्वास था कि कुएँ के नीचे या तो पानी होगा या बिलकुल सूखे में कला, बिमला और इंदुमति की लाश पावेगा और वहीं अपने प्यारे शागिर्द रामदास को भी देखेगा मगर ये सब कुछ भी बातें न थीं। न तो वह कुआँ सूखा था और न उसमें पानी ही दिखाई दिया। इसी तरह कला, बिमला, इंदुमति और रामदास का भी वहाँ नामोनिशान न था। कमर बराबर मुलायम और गुदगुदी घास कुएँ की तह में जमी हुई थी जिस पर खड़े होकर भूतनाथ ने सोचा कि कोई आदमी ऊपर से इस घास पर गिरकर चुटीला नहीं हो सकता, अतएव निश्चय है कि कला, बिमला और इंदुमति मरी न होगी, मगर आश्चर्य है कि यहाँ उनमें से एक भी नजर नहीं आती और न रामदास ही का कुछ पता है।
उस कुएँ की तह में बिलकुल ही अँधकार था इसलिए अच्छी तरह देखने-ढूँढ़ने और जाँच करने के लिए भूतनाथ नले अपने ऐयारी के बटुए में से मोमबत्ती निकाल कर रोशनी की और बड़े गौर से चारों तरफ देखने लगा।
अन्दर से वह कुआँ बहुत चौड़ा था और उसकी दीवारें संगीन थीं। जब कोई आदमी वहाँ नजर न आया तब भूतनाथ ने उस घास के अंदर टटोलना और ढूँढ़ना शुरू किया मगर इससे भी कोई काम न चला। हाँ, दो बातें जरूर ताज्जुब की वहाँ दिखाई पड़ीं। एक तो उस कुएँ की दीवार में से (चारों तरफ) थोड़ा-थोड़ा पानी टपक कर तह में आ रहा था जिससे सिर्फ वहाँ की घास जो एक अजीब किस्म की थी बराबर तर और ताजा बनी रहती थी, दूसरे छोटे-छोटे दो दरवाजे भी दीवार में दिखाई दिये जो एक-दूसरे के मुकाबले में थे। भूतनाथ बड़े ही आश्चर्य से उन दरवाजों को देख रहा था क्योंकि जब कुएँ में इधर-उधर घूमता तो कभी कोई दरवाजा (उन दोनों में से) बंद हो जाता और कोई खुल जाता। मगर जब वह कुछ देर तक एक ही ढंग पर कायम रह जाते अर्थात् जो खुल जाता वह खुला ही रह जाता और जो बंद होता वह बंद ही रह जाता। अस्तु भूतनाथ ने समझा कि इन दरवाजों के खुलने और बंद होने के लिए वहाँ की जमीन ही में कदाचित् कोई कमानी लगी हुई है वह बहुत देर तक इधर-उधर घूम कर इन दरवाजों के खुलने और बंद होने का तमाशा देखता रहा।
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इसी बीच में एकाएक गाने की सुरीली आवाज भूतनाथ के कानों में पड़ी जो किसी औरत की मालूम पड़ रही थी और उन्हें दोनों में से एक दरवाजे के अन्दर से आ रही थी तथा थोड़ी देर बाद ही पखावज तथा कई पाजेबों के बजने की आवाज आई जो सम और ताल से खाली न थी। कभी-कभी गाने की आवाज एक-दम बंद हो जाती और केवल पाजेब की आवाज सुनाई देती जिससे भास होता कि वे सब औरतें (यों जो कोई हों) पखावज की गत के साथ मिलकर नाच रही हैं।
अब भूतनाथ से ज्यादा देर तक ठहरा न गया और वह हाथ में मोमबत्ती लिए हुए उस दरवाजे के अन्दर घुस गया जिसके अन्दर से गाने तथा घुंघरू के बजने की आवाज आ रही थी।
दरवाजे के अन्दर पैर रखते ही भूतनाथ को मालूम हो गया कि यहाँ तो खासी लंबी-चौड़ी इमारत बनी हुई है और ताज्जुब नहीं कि कुछ और आगे बढ़ने से बड़े-बड़े दालान और कमरे भी दिखाई पड़े। वास्तव में बात भी ऐसी ही थी।
कुछ दूर आगे बढ़ते ही भूतनाथ ने उजाला पाया और देखा कि एक सुन्दर दालान में चार-पाँच औरतें हाथ में मशाल लिए खड़ी हैं और कई औरतें गा-बजा तथा कई नाच रही हैं। यद्यपि भूतनाथ के दिल में आगे बढ़कर देखने और उन लोगों को पहिचानने का उत्साह भरा हुआ था मगर साथ ही इसके वह डरता भी था कि आगे बढ़ने से कहीं मुझ पर कोई आफत न आवे।

भूतनाथ ने मोमबत्ती बुझाकर बटुए में रख ली और हाथ में खंजर लेकर दबे कदम धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा। ओफ! यह क्या भूतनाथ के लिए कोई कम आश्चर्य की बात है कि उन औरतों में भूतनाथ ने अपने प्यारे शागिर्द रामदास को भी नाचते हुए देखा और मालूम किया कि वह अपनी धुन में ऐसा मस्त हो रहा है कि उसे किसी बात की मानो परवाह ही नहीं है। सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात तो यह थी कि वह (रामदास) भूतनाथ को देखकर बहुत रंज हुआ और कड़े शब्दों की बौछार करते हुए उसने भूतनाथ को निकल जाने के लिए कहा।
भूतनाथ-खण्ड-3/ भाग-1 दिनांक 11 Mar. 2022 समय 06:00 बजे साम प्रकाशित होगा

