आज बीस साल पहले की घटनाएं ठाकुर की आंखों के सामने नाच उठीं।
‘क्या करूं कुछ समझ में नहीं आता, वैदराज…। ठाकुर हाथ मलते हुए खड़े थे वैदराज के सामने—‘पहले तो बच्चा ही नहीं होता था। ठकुराइन ने जब बहुत टोना-टोटका किया तो यह लड़का पैदा हुआ…मगर देखता हूं कि भाग्य ही खोटा है, वैदराज!’
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‘टोने-टोटके से बच्चे पैदा होने लगे तो, फिर कोई निःसंतान न रह जाए, ठाकुर साहब! देने वाला भगवान है। वह नहीं चाहेगा तो टोना-टोटका, जन्तर-ताबीज, झाड़-फूंक सब व्यर्थ हो जाएंगे। पूर्वजन्म के शुभ-अशुभ पर यह सुख-दुख निर्भर करता है खैर—। आज कितने दिन हुए लड़का पैदा हुए?’ पूछा वैदराज ने।
‘पांच दिन—।’ ठाकुर बोले—‘जब से हुआ है, तब से ठकुराइन की हालत बहुत खराब हो रही है।’
‘हूं…।’ गंभीर हो गए वैदराज!
‘मैं चाहता हूं वैदराज कि ठकुराइन और बच्चा दोनों बच जाएं। बड़ी मुश्किल से यह बच्चा पैदा हुआ है, अगर वह भी मर गया तो मैं कहीं का न रहूंगा।’
वैदराज चुप हो रह गए। सोचने लगे वे—‘आज ठाकुर का बच्चा और उसकी स्त्री बीमार हैं तो ये हाथ बांधकर उनके सामने खड़े हैं, परंतु एक दिन वह था, जबकि बेघर, बेसहारा होकर वे अपनी स्त्री और तीन साल के बच्चे को लेकर दाढ़ीराम गांव में आए थे तो इसी ठाकुर ने दुत्कार दिया था। पानी बरस रहा था। वैदराज निस्सहाय थे। लड़का सख्त बीमार था। एक रात के लिए आश्रय मांगने जब वैदराज ठाकुर के पास गए थे, तब उन्होंने निर्दयता-पूर्वक इंकार कर दिया था। अधिक विनती करने पर लठैतों से धक्के दिलाकर निकलवा दिया था, यही था वह ठाकुर!’
सोचते हुए वैदराज ने कहा—
‘जरा ठहरिए। मैं अभी आता हूं—।’ कहते हुए वैदराज घर के भीतर चले गए। जाकर अपनी स्त्री से बोले—‘ठाकुर की स्त्री और उनका बच्चा बीमार है, बुलाने आए हैं।’
‘तुम भूल गए पिछली बातें…?’ उनकी स्त्री ने कहा—‘यही वह ठाकुर है, जिसने एक रात के लिए आश्रय देने की दया भी न दिखाई थी। रात भर हम लोग पानी में भीगते हुए एक पेड़ के नीचे पड़े रहे। हमारा बच्चा तड़प-तड़पकर चल बसा—वहीं ठाकुर है न ये!’
‘जाऊं। या नहीं?’ वैदाज ने पूछा।
‘कोई उनके दबैल तो हम लोग हैं नहीं। भला हो बेचारे लाखन चमार का, जिसने हमें अपने यहां जगह दी। जब जब तुम्हारी वैदगिरी चमक गईं है तो आए हैं तुम्हें बुलाने, कमीना कहीं का।’
वैदराज सिर नीचा किए हुए बाहर जाने लगे।
‘सुनो तो—।’ रोका उनकी स्त्री ने—‘देखो, ठकुराइन और बच्चे ने तो हमारा कुछ नहीं बिगाड़ा है? जाओ, देख आओ।’
‘अच्छी बात है।’ वैदराज बाहर आए। ठाकुर से बोले—‘चलिए।’ ठकुराइन बुखार में बुत पड़ीं थी। उनका हिलना-डुलना भी मुहाल था। वैदराज ने नाड़ी देखी, दवा दी।
इसके बाद नवजात शिशु की नाड़ी देखी।
सहसा उनका चेहरा गम्भीर हो गया। वे बाहर आए। ठाकुर भी उनके पीछे-पीछे आए।
‘यह खत्म है, ठाकुर! बच्चा दो-चार घंटों का मेहमान और है।’ वैदराज बोले।
‘ऐसा न कहो, वैदराज! कोई जतन करो।’ ठाकुर एक असहाय व्यक्ति की तरह गिड़गिड़ाते हुए बोले।
दिन भर वैदराज ठाकुर की हवेली पर ही रहे। ठकुराइन की दशा तो कुछ सुधरी, मगर बच्चे दशा खराब होती गईं। शमा होते-होते उसकी उल्टी सांस चलने लगी और आधे घंटे में ही सब कुछ समाप्त हो गया—अब जान नहीं है। ठाकुर!’ वैदराज ने कहा और बच्चे की लाश जमीन पर लिटा दी।
ठाकुर की बूढ़ी माता दूसरे कमरे में जाकर जोर-जोर से रोने लगीं। बीमार ठकुराइन जोरों से चीखकर बेहोश हो गईं।
ठाकुर ठकुराइन की हालत देखकर घबड़ा उठे। वैदराज ने ठकुराइन की नाड़ी पकड़ी। उस समय कमरे में सिवा ठाकुर और वैदराज के कोई न था।
‘ठाकुर!’
‘क्या है वैदराज—क्या है?’
‘उसकी भी कोई आशा नहीं, ठाकुर!’
‘मैं तबाह हो जाऊंगा, वैदराज!’ रो पड़े ठाकुर—‘बच्चा तो गया ही, कम-से-कम ठकुराइन को बच लो, वैदराज!’
‘कोई उपाय नहीं ठाकुर! इन्हें बच्चे की मौत से बहुत सदमा पहुंचा है।’
‘कुछ तो करो वैदराज!’
वैदराज को हंसी आ रही थी उस निर्मम पुरुष की आंखों में आंसू देखकर, जिसने एक दिन लठैतों द्वारा उनका असह्य अपमान कर उन्हें घर से निकलवा दिया था।
‘ठकुराइन के बचने का केवल एक उपाय है, ठाकुर!’
‘कौन-सा वैदराज?’
‘यही बच्चा यदि जिंदा हो जाए।’
‘यह कैसे हो सकता है, वैदराज?’
‘यह कहो कि क्या नहीं हो सकता?’
‘तो, फिर देर क्यों…? बताओ न जल्दी कोई उपाय?’
‘शायद आप उसे मंजूर न करें…।’
‘कहो तो, वैदराज! ठकुराइन की जान बचाने के लिए मैं सब कुछ कर सकता हूं।’
‘आज चार दिन हुए लाखन चमार की स्त्री के बच्चा हुआ था। बच्चा होते ही वह मर गईं? उसका बच्चा अब तक मेरी दवा-दारू से जिंदा है। उस बच्चे को ठकुराइन की बगल में लिटाकर, इस मृत बच्चे को चुपचाप हटा दिया जाए। होश आने पर बच्चे को जीवित पाकर, उनका गिरा स्वास्थ्य शीघ्रता से सुधरने लगेगा।’

‘यह क्या कहते हो, वैदराज? भला चमार का लड़का—।’
‘अपने और पराये का विचार छोड़ो, ठकुराइन की जान बचाओ। मैंने लाखन के बच्चे को देखा है, खूब गोरा है, ठकुराइन जान भी न सकेंगी कि यह दूसरा बच्चा है।’
‘मगर लाखन चमार इसे मंजूर करेगा?’
‘इसका जिम्मा मेरा रहा। वह मेरा कहना टाल नहीं सकता और आप यह भी विश्वास रखें कि वह यह भेद किसी पर प्रकट नहीं करेगा।’
सोचते हुए ठाकुर धीरे से बोले, ‘ठीक है वैदराज! परंतु जिन्दगी भर चमार के लड़के को अपना ही लड़का कहना पड़ेगा।’
‘आगा-पीछा न करो, ठाकुर! इस समय ठकुराइन के जीवन मृत्यु का प्रश्न है।’
‘अच्छा जाओ, मुझे मंजूर है।’ ठाकुर ने कहा और सिर पकड़कर बेहोश ठकुराइन की बगल में आकर बैठ गए।
आधे घंटे बाद—
वैदराज लौटे। उनके पीछे लाखन चमार हाथों पर एक गोरा नवजात शिशु लिए खड़ा था।
ठाकुर ने उतावली के साथ बच्चे को गोद में ले लिया, गौर से देखा और देखकर आश्चर्यचकित मुद्रा में बोले उठे—‘अरे, यह तो एकदम इसी का प्रतिरूप है, वैदराज—जरा भी अंतर नहीं है, बिल्कुल वैसा ही है।’
वैदराज ने लाखन के हाथों पर ठाकुर का मृत शिशु रख दिया और बोले—‘इसे ले जाकर चुपके से कहीं गाड़ आओ, समझे! किसी को इस बात का पता न लगे।’

बेचारा लाखन एक जीवित शिशु को लेकर अंदर आया था और अब एक मृत शिशु को लेकर चुपके से बाहर जा रहा है। सारा कार्य अत्यंत गुप्त रीति से हुआ। इस भेद को जानने वाले केवल तीन व्यक्ति थे—ठाकुर, वैदराज एवं लाखन चमार।
ठाकुर ने शिशु को बेहोश ठकुराइन की बगल में लिटा दिया। बच्चा स्तन ढूंढ़ने लगा। न पाकर जोर-जोर से रोने लगा। ठाकुर की अम्मा दूसरे कमरे से दौड़ी हुई आयीं।
‘बच्चा बेहोश हो गया था अम्मा, वैदराज की दवा से होश में आ गया है।’ ठाकुर ने बात बना दी।
ठकुराइन-अम्मा हर्ष से गदगद हो गयीं। उसी समय बेहोश ठकुराइन ने भी आंखें खोल दीं।
दवा होने लगी। शीघ्रता से ठकुराइन स्वस्थ होने लगीं। दो साल बाद लाखन चमार भी इस दुनिया से चल बसा। अब उस भेद को जानने वाले केवल दो हैं—ठाकुर और वैदराज!
यह आज से बीस साल पहले की घटना थी।
बेचारा आलोक—। लाखन चमार का बेटा!
