आपके किसी अपने में तो नहीं दिख रहे आत्महत्या के ये वॉर्निंग साइन, इनकी पहचान जरूरी: Suicidal Sign Warning
Suicidal Sign Warning

Suicidal Sign Warning: भारत में आत्महत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार साल 2021 में 1.64 लाख लोगों ने जिंदगी से हार मान ली और मौत को गले लगा लिया। क्या आत्महत्या के ये बढ़ते मामले अलार्म हैं कि अब हमें इस ओर ज्यादा ध्यान देना होगा, अपनों का साथ और मजबूती से देना होगा, उनकी परेशानियां समझकर उन्हें सहारा देने की पहल करनी होगी। दुनियाभर की रिसर्च बताती हैं कि अपनों के साथ से आत्महत्या के मामलों को कम किया जा सकता है।

निराशा के अंधेरे से निकलें बाहर

Suicidal Sign Warning
If family, friends and colleagues identify them in time, the lives of their loved ones can be saved

अमेरिकन एकेडमी मेडिकल सेंटर मायो क्लीनिक ने हाल ही में बताया कि आत्महत्या करने वाला कोई भी कदम उठाने से पहले कई पड़ाव से गुजरता है। अगर परिवार, दोस्त और साथी इन्हें समय पर पहचान लें तो अपनों की जान बचाई जा सकती है। बस जिंदगी से हारे और निराशा के अंधेरे में घिरे ऐसे लोगों को अपनेपन के उजाले में लाने की देर होती है। अमेरिकन फाउंडेशन के अनुसार आत्महत्या के तीन प्रमुख कारण हैं, जिन पर ध्यान देना चाहिए।  

ये तीन हैं मुख्य कारण

कई बार स्वास्थ्य समस्याओं के कारण लोग जिंदगी से हार मान लेते हैं और सुसाइड की ओर बढ़ जाते हैं।
Many times, due to health problems, people give up on life and move towards suicide.

सेहत- कई बार स्वास्थ्य समस्याओं के कारण लोग जिंदगी से हार मान लेते हैं और सुसाइड की ओर बढ़ जाते हैं। वहीं डिप्रेशन, तनाव, ड्रग्स या अल्कोहल की आदत, गंभीर बीमारियां और अवसाद भी आत्महत्या के कारण हैं।

सोशल समस्या – कई बार सामाजिक माहौल और दबाव के कारण भी लोग आत्महत्या जैसे कदम उठाते हैं। जैसे- लंबा तनाव, कोई बड़ा नुकसान, रिलेशनशिप में परेशानियां, बेरोजगारी, आर्थिक तंगी या किसी अपने की मौत का दुख। इन दिनों कई किशोर पढ़ाई के प्रेशर, रिजल्ट के डर, साइबर बुलिंग, रैगिंग आदि के कारण भी सुसाइड कर रहे हैं।

हिस्टोरिकल – अतीत के कारण भी कई बार लोग सुसाइड करते हैं। जैसे-बचपन में यौन शोषण, उपेक्षा का शिकार होना या आत्महत्या का पारिवारिक इतिहास होना।

इन संकेतों पर दें ध्यान  

विशेषज्ञों का मानना है कि आत्महत्या जैसे कदम लोग अचानक नहीं उठाते।
Experts believe that people do not take steps like suicide suddenly.

विशेषज्ञों का मानना है कि आत्महत्या जैसे कदम लोग अचानक नहीं उठाते। अगर आपको किसी अपने के व्यवहार में बदलाव नजर आए, वह हमेशा टेंशन, गुस्से, चिंता, दुखी रहे तो ये आत्महत्या के विचारों के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं। इसी के साथ अगर कोई शख्स अचानक से बहुत ज्यादा अल्कोहल का सेवन करने लगे, बहुत ज्यादा सोने लगे, जानबूझकर खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करे तो भी आपको ध्यान देने की जरूरत है। कई बार लोग अचानक कहते हैं कि उन्हें जीने की इच्छा नहीं है, बातों से नाउम्मीदी झलकती है, वे कहने लगते हैं कि वह सब पर बोझ हैं तो भी आपको तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।

कुछ कदम और अपनों का साथ

जिंदगी अकेले जीने में थोड़ी बोरिंग लगने लगती है तो क्यों न इसे जीने लायक बनाएं और उसे अपने अनुसार बदलें।
Living life alone seems a bit boring, so why not make it worth living and change it as per your wish

जिंदगी अकेले जीने में थोड़ी बोरिंग लगने लगती है तो क्यों न इसे जीने लायक बनाएं और उसे अपने अनुसार बदलें। जी हां, अगर आपको भी लगता है कि आपका कोई अपना दिल और दिमाग से दुखी, परेशान है तो उसके लिए समय निकालें। उससे बातें करें, उसके साथ समय बिताएं, जो उसे अच्छा लगता हो वो करें। कोशिश करें कि वह परिवार, दोस्तों और साथियों के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताए। इससे पॉजिटिविटी आएगी। दुनिया के कई देशों में सोशल सर्कल लोगों की लंबी आयु का कारण है।

अपने बच्चों से जरूर करें बात

पिछले कुछ सालों में बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति काफी बढ़ गई है।
The tendency to commit suicide among children has increased significantly in the last few years. Credit: Istock

पिछले कुछ सालों में बच्चों में आत्महत्या की प्रवृत्ति काफी बढ़ गई है। ये बेहद चिंताजनक बात है। ऐसे में कोमल बचपन को अपनेपन का सहारा देना जरूरी है। अगर आप भी इस चिंता में हैं कि कहीं बच्चा कोई गलत कदम न उठा लें तो डरें नहीं, इस बारे में उससे खुलकर दिल की बात करें। उससे उसकी परेशानियां पूछें। साथ ही उसे बताएं कि वह आपके लिए इस दुनिया में सबसे ज्यादा जरूरी हैं। कई बार पेरेंट्स सोचते हैं कि आत्महत्या की बात करने से बच्चों के मन में कहीं आत्महत्या के विचार तो नहीं आएंगे। लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं है, जब आप उनसे बात करेंगे तो अपने आप को सुरक्षित महसूस करेंगे। सबसे जरूरी बच्चों को बचपन से ही हर स्थिति का सामना करने के लिए तैयार करें। उन्हें न हार से डरना सिखाएं, न ही जीत पर बहुत ज्यादा जश्न मनाने की आदत डालें।