Suicide In Teenagers: ’17 साल के किशोर ने एग्जाम में फेल होने के कारण आत्महत्या की’, ’16 वर्षीय किशोरी ने लगाया फांसी का फंदा’, ‘डिप्रेशन के शिकार टीनएजर ने किया सुसाइड’, ‘कोचिंग के लिए घर से दूर रह रहे स्टूडेंट ने की आत्महत्या’ इस तरह की खबरें अब आम होती जा रही हैं। पिछले कुछ सालों में भारत में किशोरों में आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। चिंता की बात यह है कि परिवार, साथी और टीचर्स समय रहते टीनएजर्स की मनोस्थिति समझ नहीं पाते। ऐसे में टीनएजर्स को संभलने या नेगेटिव विचारों से निकलने का मौका ही नहीं मिल पाता और वो मौत को गले लगा लेते हैं। कैसे करें किशोरों की मदद और आत्महत्या के इन मामलों को कैसे रोकें, ये बता रही हैं मैक्स हॉस्पिटल की बाल मनोवैज्ञानिक डॉ. स्वाति मित्तल।
आत्महत्या के इन कारणों को पहचानें

डॉ. स्वाति मित्तल का कहना है कि अगर समय पर किशोरों के अवसाद की पहचान करके उन्हें उचित उपचार और सहायता दी जाए तो कई आत्महत्याओं को रोका जा सकता है। आत्महत्या जैसे कदम के कई कारण होते हैं। इनपर ध्यान देना जरूरी है।
मानसिक स्वास्थ्य
आत्महत्याओं का सबसे बड़ा कारण है डिप्रेशन, एंग्जाइटी, टेंशन, बाइपोलर डिसऑर्डर और अन्य मानसिक तनाव। ऐसे में इन्हें समय पर पहचान कर उपचार करना जरूरी है। नहीं तो आगे चलकर यही आत्मघाती साबित हो सकते हैं।
बुलिंग

टीनएज में बुलिंग का शिकार होना आम बात है, लेकिन ये किशोरों को अवसाद में ले जाने का काम करती है। स्कूल, कॉलेज, ट्यूशन पर साथियों द्वारा बुलिंग करने के साथ ही ऑनलाइन बुलिंग के मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं। ऐसे में किशोरों में हीन भावना आने लगती है और वे जीवन से निराश हो जाते हैं। इस समय उन्हें अपनों के साथ की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।
मादक पदार्थों का सेवन
कई बार बुरी संगति तो कई बार अपना तनाव कम करने के चक्कर में टीनएजर्स नशे की गिरफ्त में आ जाते हैं। वे शराब और नशीली दवाओं के आदि हो जाते हैं। लेकिन ये उन्हें और निराशा की ओर ले जाता है। ऐसे में समय रहते इस लत को छुड़वाना जरूरी है।
पारिवारिक मुद्दे

परिवार वो सहारा है, जिसका मजबूत होना हर बच्चे की मानसिक स्वास्थ्य की नींव होती है। बच्चे हो या किशोर, परिवार के माहौल का उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर होता है। माता-पिता का तलाक, पारिवारिक कलह, घरेलू हिंसा आदि देखने पर वे टूट जाते हैं। इसी मानसिक तनाव में वे आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। इसलिए बच्चों को परिवार में हमेशा अच्छा, पॉजिटिव माहौल देने की कोशिश करें।
पढ़ाई का दबाव

हम मानें या न मानें लेकिन ये बात सही है कि बच्चों पर अब पढ़ाई का काफी दबाव है। 90 प्रतिशत से ज्यादा नंबर लाने की बात हो या फिर प्रतियोगी परीक्षाओं में पास होने का दबाव, टीनएजर्स कई बार इस प्रेशर को झेल नहीं पाते। कई मामलों में ऐसा भी होता है कि पेरेंट्स बच्चों की इच्छा और क्षमता जाने बिना ही उनके लिए करियर का चुनाव कर लेते हैं, जिससे वे दबाव महसूस करने लगते हैं। ऐसे में जरूरी है पेरेंट्स उन्हें समझें और मेंटल सपोर्ट करें।
सामाजिक दूरी
बच्चे ठीक से पढ़ाई पर फोकस करें इसलिए कई पेरेंट्स कहीं बाहर आना जाना कम कर देते हैं, लोगों को घर बुलाना बंद कर देते हैं, बच्चों को दोस्तों से दूर रहने की भी सलाह दे देते हैं। इन सभी से किशोर खुद को समाज से कटा हुआ महसूस करने लगते हैं। धीरे-धीरे एक ही रूटीन से वह तनाव में जाने लगते हैं। हमें मानना होगा कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए सामाजिक मेलजोल जरूरी है। यह बात टीनएजर्स के साथ ही पेरेंट्स को भी समझनी होगी।
समय पर स्थिति को भांपे और करें मदद

अगर आपको महसूस हो रहा है कि आपके बच्चे के व्यवहार में अचानक परिवर्तन आ रहा है, वह बहुत ज्यादा उदास रहने लगा है या उसे बहुत ज्यादा गुस्सा आने लगा है तो फिर ये इस बात की ओर इशारा है कि बच्चा डिप्रेशन की ओर बढ़ रहा है। अगर आप इन लक्षणों को महसूस करते हैं तो उनकी ऐसे मदद करें।
मेंटल हेल्थ सपोर्ट

अगर आप किशोरों के व्यवहार में ज्यादा बदलाव देख रहे हैं तो उन्हें तुरंत मेंटल हेल्थ सपोर्ट देने की ओर कदम बढ़ाएं। उन्हें एक अच्छे डॉक्टर या काउंसलर के पास लेकर जाएं, जो उनकी परेशानियों को सुनकर, उनका हल खोजे। ऐसे में किशोरों को मदद मिलेगी।
दवाइयां
कुछ मामलों में दवाइयां भी मेंटल हेल्थ के लिए जरूरी हो जाती हैं। इनसे टेंशन कम होने के साथ ही डिप्रेशन से बाहर आने में मदद मिल सकती है। इसलिए समय रहते किसी अच्छे मनोचिकित्सक से परामर्श लें।
परिवार का सपोर्ट जरूरी

किसी भी टीनएजर के लिए मेंटली फिट रहने के लिए पेरेंट्स का प्यार, अपनापन और सपोर्ट सबसे जरूरी होता है। जब परिवार में माहौल पॉजिटिव होगा, तो बच्चे की सोच भी पॉजिटिव रहेगी। हर पेरेंट के लिए जरूरी है कि वे हमेशा अपने बच्चों को निसंकोच होकर ये बताएं कि वे उन्हें बहुत ज्यादा प्यार करते हैं और वे सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। उन्हें से आश्वासन दें कि उनकी हर स्थिति को आप समझते हैं और हर हाल में आप उनका साथ देंगे।
स्कूल सपोर्ट जरूरी
टीनएज में पढ़ाई का काफी दबाव होता है। ऐसे में यह स्कूलों की भी जिम्मेदारी है कि वह समय समय पर ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करें, जिनसे किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता आए। समय—समय पर काउंसलिंग भी जरूरी है।
अच्छे दोस्त जरूरी

जिंदगी में अच्छे दोस्त होना जरूरी हैं। इसलिए बच्चों को बचपन से ही अच्छे दोस्त बनाना सिखाएं। सकारात्मक सोच वाले दोस्त या साथी जिंदगी में सपोर्ट सिस्टम की तरह काम करते हैं। वे न सिर्फ तनाव कम करते हैं, बल्कि बच्चे अपने दिल की बात उनसे करके अच्छा भी महसूस करते हैं। इसलिए बच्चों को अच्छे दोस्तों से दूर न करें।
सामाजिक कार्यों में बढ़ाएं भागीदारी
समाज और सेहत आपस में जुड़े हुए हैं। जो बच्चे ज्यादा सामाजिक होते हैं, लोगों से घुलते मिलते हैं, सामाजिक कार्यों में हिस्सा लेते हैं, वे डिप्रेशन का शिकार कम होते हैं। इसलिए हमेशा बच्चों को सामाजिक प्राणी बनाने पर जोर दें। पढ़ाई या करियर के नाम पर उन्हें समाज से काटने या दूर करने की कोशिश नहीं करें।
इस बात का रखें हमेशा ध्यान

इन सबसे जरूरी है माता पिता अपने बच्चे को समझें। जिससे उनके डिप्रेशन या तनाव में आने जैसी परिस्थितियां ही न बनें। बच्चों की इच्छाएं जानने की कोशिश करें। उनकी भावनाओं का भी सम्मान करें। टीनएज में बच्चों को संभालने और सपोर्ट करने की जरूरत ज्यादा होती है, क्योंकि यही समय है जब वे शारीरिक-मानसिक परिवर्तन और करियर बनाने के दौर से गुजर रहे होते हैं। इसलिए, ‘अपने ख्वाबों का बोझ अपने बच्चे पर ना डालें, उनको उड़ने दीजिए।’