Teenager Parenting: बच्चे चाहे टीनएजर हों या बहुत छोटे, उनकी सुरक्षा आज बहुत बड़ी चुनौती है। कुछ सुझाव इसी बारे में-
इन्हें लेटैस्ट फैशन की घड़ी चाहिए और नए मॉडल की बाइक। त्वचा पर हुए एक पिंपल से कभी यह परेशान हो जाते हैं तो कभी बाल कटवाने मीलों दूर चले जाते हैं। इनके सामने सूचनाओं का खुला आसमान है। संचार क्रांति के इस युग में वे आपसे ज्यादा जानते और समझते हैं। इनका एक्सपोजर आपसे अधिक है और मैच्योरिटी अपनी उम्र से ज्यादा।
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बढ़ते बच्चों को बड़ों की तरह ट्रीट करें या छोटा मानें समझ नहीं आता। खुद उन्हें भी कई मामलों में लगता है कि वे बड़े हैं और कई बार खुद ही वे बच्चों जैसा बर्ताव करते हैं।
किशोरावस्था इसी का नाम है। इस उम्र में शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक परिवर्तन होते हैं और हारमोंस के बदलाव के कारण टीनएज संवेदनशील हो जाते हैं।
मनोचिकित्सक श्री सुशील बताते हैं कि अक्सर लड़के टीनेज में अपनी मां के प्रति आकर्षित रहते हैं और लड़कियां पिता के प्रति। शारीरिक बदलावों की जिज्ञासा भी इस उम्र में बहुत होती है। ये टीनएजर्स नई-नई जानकारियां खोजते हैं और गलत सूचनाओं से कई बार भ्रमित भी हो जाते हैं।
जी हां, यह हमारे ही बच्चे हैं और इनके साथ डील करने में कुछ सावधानियां हमें रखने की जरूरत है तो आप भी सावधान हो जाइए।
आक्रामक हो गए हों
हारमोंस में परिवर्तन से किशोर अत्यधिक भावुक हो जाते हैं। छोटी-छोटी बातों से उन्हें बहुत गुस्सा आने लता है। बचपन की रिवार्ड और पनिश्मेंट थ्योरी इन पर अब काम नहीं करती। इन्हें समझाना पड़ता है। अभिभावक भी यदि गुस्से का सहारा लें तो बच्चे और अधिक उद्दंड हो जाएंगे। बच्चों और मां-बाप के बीच रिलेशन खराब हो जाएंगे। प्यार से समझाना ही इसका हल है।
गुमसुम रहने लगे हों
बच्चे विचारों में बहुत अधिक रहते हों तो हो सकता है कि वे अवसाद के शिकार हो गए हों या उत्पीड़न के शिकार बन रहे हों। अस्वाभाविक क्रियाकलाप चाहे कोई भी हो, किसी रूग्ण मनोदशा के सूचक हैं। बच्चों से बात करके वजह पता करें, नहीं तो मनोचिकित्सक का सहारा ले।
सजने में काफी वक्त लगाते हों
सभी किशोर-किशोरियां अपने लुक्स के प्रति संवेदनशील होते हैं, पर यदि आपका बच्चा ज्यादा समय लगा रहा हो तो उसकी कोई स्पेशल फ्रेंड, जैसे गर्लफ्रैंड या ब्वॉयफ्रैंड हो सकता है। विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है, पर अति करने से बच्चा पढ़ाई से पिछड़ सकता है। उसे प्यार से पढ़ाई का महत्त्व समझाएं।
सुस्त रहते हों
किशोर व किशोरियां जवानी की दहलीज पर खड़े होते है तब सुस्ती का तो प्रश्न ही नहीं। यदि वे सुस्त हैं तो जांचे कि कहीं किसी प्रकार के नशे का शिकार तो नहीं बन गए हैं। परिवार परामर्शदात्री श्रीमती कंचन बताती हैं कि समय-समय पर उनके सामान चेक करते रहना चाहिए। कोई भी आवांच्छित चीज मिलने पर प्रश्न अवश्य करें।
बात-बात पर बहस
बच्चा यदि हर बात पर आपसे तर्क करता हो तो आप अपना तरीका सुधारें। उसे बहुत रोकना- टोकना बंद करें। उसके पक्ष को भी समझने का आप प्रयत्न करें।
घंटों कमरा बंद करके बैठे रहते हों
अकेला बैठना अच्छा है, पर यदि घंटों तक किशोर/किशोरी अपने कमरे में अकेले बैठते हों कमरा बंद रखते हों, तो चैक करें कि वे पोर्न वेबसाइटस तो नहीं देख रहे। एकान्त हर तरह के अपराध को बढ़ावा देता है। प्राइवेसी के नाम पर उन्हें बहुत देर अकेला मत बैठने दीजिए। बीच- बीच में कमरे में आते-जाते रहिए।
नेट सॄफग ज्यादा करते हों
कई बच्चों को नेट पर गेम खेलने, सॄफग करने या उत्पाद खरीदने का शौक लग जाता है। थोड़ा समय बिताया जाए तो यह ठीक है, पर अधिक नेट सॄफग आंखों व सेहत को नुकसान पहुंचाती है। खरीददारी में भी बिना जरूरत की चीजें खरीद कर कुछ बच्चे पैसे उड़ाते हैं। अत: उनके साथ शुरू से ही स्ट्रिक्ट रहें।
दोस्तों के साथ ही समय बिताते हों
सहेलियां-दोस्त अच्छे होते हैं, पर सारा समय उन्हीं के साथ बिताने से समय का अपव्यय व्यसनों का डर व पढ़ाई से दूरी हो जाती है। कोशिश करें कि आप भी उनके मित्रों-सहेलियों के साथ वक्त बिताएं ताकि वे भी आपसे हर बात शेयर करें।
यदि आपस में बच्चे बहुत लड़ने लगे हों
घर में किशोरवय भाई-बहन बहुत लड़ते हों तो हो सकता है, उन्हें आपका व्यवहार पक्षपातपूर्ण लगता हो या मन में कोई गलत बात घर कर गई हो। भाई-बहन में सामंजस्य बिठाएं और प्यार से समझाएं। अपने व्यवहार को भी पारदर्शी बनाइए।
मंहगी चीजें घर ला रहे हों
यदि किशोर अचानक मंहगी चीजें घर लाने लगे तो चैक कीजिए कहीं उन्होंने कोई गलत लत तो नहीं पाल ली। उनसे प्यार से पूछिए, समझाइए, नहीं माने तो डांटिए भी।
मनोविशेषज्ञों का मानना है कि कोई भी असामान्य लक्षण या आदत देखते ही सतर्क हो जाना चाहिए। बुराई को जड़ से ही खत्म करें, वरना जीवन भर पछताना पड़ सकता है। अपराध का पहला घर इंसान का मस्तिष्क ही होता है।
सवाल सिर्फ थोड़े से कॉन्शियस रहने का है फिर देखिए कैसे आपके किशोर बन जाते हैं आपके सबसे अच्छे मित्र।

आप यह भी उपाय कर सकते हैं
*किशोरवय बच्चों को मित्र मानें। उनसे मित्रतापूर्ण व्यवहार करें।
*अपने आदेश उन पर थोपे नहीं।
*उनकी भी सुनें। उनके प्वाइन्ट ऑफ व्यू जानने की कोशिश करें।
*उनके मित्रों का ध्यान रखें। गलत आदतों वाले साथियों से दोस्ती तुड़वा दें।
- *घर से कोचिंग आने-जाने के समय का ध्यान रखें। अधिक छूट न दें। भोले मन छूट की मर्यादा को लांघ बैठते हैं और फिर जन्म लेते है अपराध या एक्सीडेंट।
*उनके टच में रहें। अभिभावकों को किशोर- किशोरियों, आने-जाने का समय, जगह पता होनी चाहिए।
*उन्हें भरपूर प्यार दें, पर अनुचित मांगे ना मानें। थोड़ा स्ट्रिक्ट रहकर भी आप अच्छे मां-बाप बन सकते हैं। आखिर वे आप ही के बच्चे हैं और कुछ समय बाद समझ जाएंगे ये आप उनके भले के लिए ही कह रहे थे। - अभिभावक यदि खुद स्मोक या ड्रिंक करते हों तो किशोरों को उसमें इनवॉल्व ना करें। सोडा मंगाना, लाइटर ले आना, जैसी गतिविधियों से सम्पर्क में आने पर उन्हें भी गलत आदतों का आकर्षण हो सकता है।
*बच्चे को समझाते हुए अपनी कथनी और करनी में फर्क ना करें, अन्यथा आप अच्छे उदाहरण नहीं बन पायेंगे। - मनोचिकित्सा के रिटायर्ड विभागाध्यक्ष डॉक्टर चन्द्रशेखर का मानना है कि यदि किशोर-किशोरियों की सोच को सकारात्मक बनाया जाए तो तनाव व अवसाद उनसे दूर रहेंगे। आत्महत्या, हत्या, नशाखोरी जैसे दुर्व्यसनों से वे बचे रहेंगे।
