एक बार एक यात्री किसी गाँव से होकर गुजर रहा था। रास्ते में रात हो गई तो उसने गाँव के बाहर एक पेड़ के नीचे अपना बिस्तर लगा लिया और अपने घोड़े को उस पेड़ के साथ बांधकर वहीं सो गया। अगली सुबह जब वह सोकर उठा तो उसका घोड़ा किसी ने चुरा लिया था।
उसे शक हुआ कि हो न हो, यह गाँव के ही किसी आदमी का काम है। उसने अपनी लाठी उठाई और गाँव में पहुँच गया। वहाँ जोर-जोर से लाठी घुमाने लगा और कहने लगा कि जिस किसी ने भी मेरा घोड़ा चुराया है, दस मिनट के भीतर वापस कर दे, वर्ना मैं वही करूँगा, जो पिछली बार किया था।
सुनकर गाँव में सन्नाटा छा गया। वह वापस जाने लगा तो उसने देखा कि एक आदमी उसका घोड़ा लेकर आ रहा है। उसने यात्री से क्षमा माँगकर उसका घोड़ा लौटा दिया और फिर दबे स्वर में कहा कि भैया! ये लो अपना घोड़ा, बुरा न मानो तो जाते-जाते ये बता दो कि पिछली बार घोड़ा चोरी होने पर आपने क्या किया था। यात्री बोला, कुछ नहीं, बस नया घोड़ा खरीद लिया था।
सारः कई बार अपेक्षित परिणाम पाने के लिए छप्र भय का प्रदर्शन आवश्यक हो जाता है।
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