एक था सब्जीपुर। वहाँ सब्जियों के ऐसे-ऐसे मजेदार किस्से थे कि लोग उसे किस्सापुर ही कहने लगे थे। जितनी सब्जियाँ, उतने किस्से। बल्कि उससे भी ड्योढ़े – दूने। पर उनमें कद्दूमल जी का किस्सा सबसे निराला था। और होता भी क्यों न! इसलिए कि सब्जीपुर के पुराने युग की महान शख्सियतों में कद्दूमल भी थे। उनके बारे में अकसर लोग कहते थे कि “कद्दूमल तो पूरे कद्दूमल हैं।
उन जैसा कोई दूसरा हो ही नहीं सकता।” ज्यादातर लोग कद्दूमल की तारीफ ही करते थे। हालाँकि उनके अलग-अलग गुण लोगों को भाते थे। कोई उन्हें सीधा-सादा बताता, तो कोई खूब खटमिट्ठे मजाक करने वाला तेज-तर्रार, बाँका छैला, जिसे हर कोई पसंद करता है। मगर चाहे कोई लाख कमल की तारीफ करे, पर कम से कम उनकी घुड़सवारी के बारे में तो सोच ही नहीं सकता था। भला कद्दूमल घोड़े पर बैठे कैसे लगेंगे? कैसे वे खुद को साधेंगे और बगैर नीचे गिरे या लुढ़के, बगैर सिर चोटिल किए, अपनी मजेदार यात्रा कैसे पूरी करेंगे? सोच पाना मुश्किल था। मगर कद्दूमल जैसे अड़ियल बंदे जो ठान लें सो ठान लें। उन्होंने तय किया कि वे घोड़े पर बैठकर घुड़सवारी का आनंद लेंगे, तो आप क्या कर लेंगे? और लीजिए, वे सचमुच अपने कंधे उचका – उचकाकर, खुद को खासा चुस्त-दुरुस्त बनाते हुए, घोड़े पर आकर बैठ भी गए। पीली शेरवानी पहन घोड़े पर बैठे, वे इस कदर जँच रहे थे, कि कुछ पूछो ही मत। पहले तो घोड़े ने सोचा कि होंगे कद्दूमल कोई अनाड़ी घुड़सवार। मौका पाते ही किसी गहरे गड्ढे में फेंकूँगा और भाग निकलूंगा। पर थोड़ा आगे चलते ही समझ गया कि कद्दूमल थोड़े मोटे और पिलपिले सही, पर घुड़सवारी का हुनर बखूबी जानते हैं। सो घोड़े के दो-एक झटके उन्होंने झेले और फिर रास पकड़कर घोड़े को इस कदर दौड़ाया, इस कदर कि घोड़े को सचमुच नानी याद आ गई ।
घोड़ा दौड़ रहा था, दौड़ रहा था और ऐसे दौड़ रहा था, जैसे रुकना जानता ही न हो। वैसे रुकता भी तो क्या कद्दूमल उसे चैन लेने देते? जब सुबह से दोपहर, फिर शाम हो गई और कद्दूमल ने घोड़े को जरा भी विराम नहीं दिया, तो आखिर घोड़े को पूछना ही पड़ा, “अच्छा प्यारे भाई कमल जी, माना कि आप ठीक-ठीक घुड़सवार हैं, पर यह तो बताइए कि आप जा कहाँ रहे हैं? मुझे अभी कितने मील और इसी तरह सरपट दौड़ना है? कहीं बरखुरदार, आप सारी धरती की परिक्रमा करने तो नहीं निकल पड़े!” सुनकर कद्दूमल पूरी बत्तीसी फाड़कर हँसने लगे, हो – हो, हुचुर-हुचुर-हुचुर…! बोले, “अच्छा तो प्यारे घोड़े राजा, तुम अभी से थक गए? भई, अभी तो कोई पचास – सौ मील ही चले होंगे और अभी मेरी नानी का घर है पूरे डेढ़ सौ मील। वहाँ मेरे नाना-नानी हैं। मामा-मामी भी। और मेरी उम्र का ही भानजा भी, जो बरसों से वहीं डेरा डाले बैठा है। ताजा सीताफल उसका नाम है। क्यों भई, कैसा प्यारा नाम है, तुम्हें पसंद आया?” “हाँ-हाँ, प्यारा … बहुत – बहुत प्यारा नाम है, ताजा सीताफल…!” घोड़ा थक तो गया ही था, उसने सोचा, ‘अब अगर ज्यादा चीं-चपड़ की तो क्या पता, कद्दूमल सचमुच सारी दुनिया की परिक्रमा करने के लिए निकल पड़ें और दौड़ाते – दौड़ाते जान निकाल दें। इससे तो अच्छा है, उनका कहना मान लो और सीधे – सीधे चलो।’ फिर घोड़ा दौड़ा और सीधे सरपट दौड़ा। ठीक वैसे, जैसे मोटे पिलपिल कमल जी उसे दौड़ाना चाहते थे। …. आखिर दौड़ते-दौड़ते, दौड़ते-दौड़ते घोड़ा पहुँच ही गया कमल के नाना-नानी के घर। वह इतनी तेज दौड़ रहा था कि कद्दूमल के नाना-नानी को लगा कि या तो कोई तेज भूकंप आया है या कोई जोर का काली माई टाइप अंधड़। मगर बाहर निकलकर देखा, तो पूरे दाँत फाड़े हा-हा-हा, हो – हो – हो हँसते कद्दूमल जी नजर आए, जो अपने घोड़े को और ज्यादा सीधा करने के लिए खूब जोर-जोर से नचा रहे थे। घोड़ा कभी दो टाँगों पर नाचता, कभी एक पर तो कभी चारों टाँगों पर। मगर वैसे ही नाचता, जैसे कद्दूमल जी उसे नचाना चाहते थे। सोच रहा था, “हाय-हाय! कद्दूमल को मैंने सीधा और पिलपिल ही समझा था, मगर ये तो बड़े बाँके घुड़सवार निकले।… ऐसे दो – एक और मिल गए, तो हो गया बेड़ा पार!” कद्दूमल जी की यह बाँकी अदा देखने के लिए उनके नाना-नानी, मामा-मामी, ताजा सीताफल और अड़ोस – पड़ोस के बच्चे-बूढ़े, मर्द, औरतें सब निकल आए। कद्दूमल जी का विचित्र तमाशा देखकर सब जोर-जोर से हँस रहे थे और उनकी खूब तारीफ कर रहे थे। * जितने दिन कद्दूमल ननिहाल में रहे, नाना-नानी के घर उन्होंने खूब कलाएँ दिखाई अपनी घुड़सवारी की। और होते-होते घोड़ा उनसे इतना सध गया कि कद्दूमल का इशारा होते ही वह दौड़ता और इशारा होते ही झट ‘परेड थम!’ की तर्ज पर रुक जाता।
फिर इशारा होते ही ऐसी सरपट रेस लगाता, जैसे आसमान में उड़ रहा हो। उस छोटे से ननकपुर गाँव में लोगों ने कभी किसी को ऐसी जबरदस्त घुड़सवारी करते न देखा था। ताजा सीताफल तो कमल की घुड़सवारी देखकर उनका ऐसा फैन हो गया कि बोला, “मामा जी, मैं तो अब आपके साथ लंबी सैर पर जाऊँगा।” और सचमुच कद्दूमल ताजा सीताफल को पीछे बैठाकर कई दिनों की लंबी यात्रा पर निकले। इस बार उन्होंने घोड़े की भी अच्छी परवाह की थी। उसे खूब चना -रातब खिलाया। बीच-बीच में वह थकता तो अच्छी तरह मालिश भी कर देते। और प्यार से टिटकारते, “हाँ जी हाँ, जम के चलो…! वाह जी वाह, वाह-वाह, वाह! मेरे प्यारे घोड़े, अड़ियल थोड़े-थोड़े!” कई दिनों तक घोड़े की सवारी करते हुए कद्दूमल और ताजा सीताफल ने खूब मौज ली। फिर लौटकर नाना-नानी, मामा-मामी और ताजा सीताफल से विदा लेकर कद्दूमल चले अपने घर। रास्ते में अचरज से उन्होंने देखा कि उनका घोड़ा इतना सीधा हो गया कि वह जैसा मन में सोचते, घोड़ा वैसे ही दौड़ने लगता। उन्हें लगा, वे घुड़सवारी नहीं कर रहे, बल्कि हवाई यान में यात्रा कर रहे हैं। रास्ते में टमाटरलाल, परवलचंद, मूली रानी और खीराकुमार सबके सब देखते, उनकी बगल से कद्दूमल का घोड़ा तीर की तरह निकला है और हवा में सनसनाता आगे बढ़ रहा है। सब रीझकर कहते, “वाह जी वाह, कद्दूमल, वाह…!” कोई-कोई हँसकर कहता, “भैया कद्दूमल, हमें भी सिखा दो ना ऐसी घुड़सवारी…!” और खुश होकर कमल अपनी पूरी बत्तीसी खोल देते। जब लौटकर आए कद्दूमल अपने घर तो उनके दोस्तों ने ऐसी बढ़िया घुड़सवारी के लिए कद्दूमल को इनाम में दिया सोने का मैडल। उनके घोड़े की पीठ थपथपाकर बढ़िया दाना और रातब खिलाया। इस पर घोड़ा और कद्दूमल दोनों खुश होकर ऐसे मुसकरा रहे थे, जैसे उनसे ज्यादा खुश दुनिया में कोई और न हो। इस अनोखी यात्रा के बाद से सब्जीपुर में कद्दूमल की धूम मच गई थी। वे दादी लौकीदेवी और राजा बैंगनमल के पास आशीर्वाद लेने पहुँचे। दोनों ने एक ही बात कही, “भैया, जैसा डंका तुमने यहाँ पीटा है, वैसा दुनिया भर में पीटो और सारी दुनिया में दिग्विजय करके लौटो। हमारा तो यही आशीर्वाद है।” इस पर हँसते-हँसते कद्दूमल ने सिर झुकाकर कहा, “आप देखना, होगा … होगा, एक दिन ऐसा ही होगा…!”
