Suicidal Thoughts Deal: आत्महत्या शब्द सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते है। कैसे लोग आत्महत्या कर लेते हैं। ऐसा हर दूसरे दिन किसी न किसी अखबार में मिल जाता है। लेकिन जब कोई सुसाइड करता है तो समझ ही नहीं आता कि आखिर हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है। जिस बच्चे को अभी सामाजिक समझ भी नहीं है वो आत्महत्या कर लेता है। अपने मां बाप के दबाव में आकर और समाज के दबाव में लोग ऐसा कदम उठा लेते हैं। अकसर मां बाप लोगों के सामने दिखाना चाहते है कि हमारा बच्चा भी 95 प्रतिशत से पास हुआ है। पर जब ये नंबर नहीं आते है तो बच्चे पर दबाव बन जाता है और इसका परिणाम सुसाइड के रूप में सामने आता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ अच्छे नंबर लाना ही सुसाइड का कारण है इसके अलावा हमारा वातावरण, लोगों की चुभती बातें इसका कारण हो सकती हैं। ऐसे में जरुरी है कि अपने बच्चे को जानें। आज के इस लेख में हम आपको इसी समस्या के समाधान के बारे में बताने जा रहे हैं। ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है अगर थोड़ी समझदारी मां बाप और उसके दोस्त समझ लें आईए जानिए किस तरह के लक्षण ,कारण और उसके रोकथाम के बारे में-
हर साल बढ़ रहे है आत्महत्या के आंकड़े
बच्चों में डिप्रेशन इस कदर बढ़ रहा है कि ये आंकड़े ज्यादा बढ़ते हुए दिख रहे है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, साल 2021 में छात्रों ने सबसे ज्यादा सुसाइड महाराष्ट्र में किया। वहां एक साल में 1834 बच्चों ने आत्महत्या कर ली। बता दें कि साल 2020 में कुल 12,526 छात्रों की मौत आत्महत्या से हुई। ये संख्या साल 2021 में बढ़कर 13,089 हो गई।
बच्चों में आत्महत्या के विचारों को पहचाने

- कई बार देखने में आता है कि बच्चें पढ़ना छोड़ देते है। उनके दिमाग पर सीधा असर होता है। उनका किसी चीज में मन नहीं लगता है। जिसके कारण उनका पढ़ने पर से भी मन हट जाता है।
- सामाजिक होना छोड़ देते है। लोगों से बात करना अच्छा नहीं लगता है। हमेशा उदास और परेशान नजर आते है। जहां कुछ हंसी मजाक चल रहा होता है वहां भी वे बेहद गुमसुम नजर आते है। वे हर समय बोरियत महसूस करते है। यहां तक की उन्हें अपनी पसंद की चीजें करना भी अच्छा नहीं लगता है।
- उनमें अपने करियर को लेकर कोई उत्सुकता नहीं दिखती है। दूसरे लोगों के बीच बातचीत पर भी उनकी कोई रुचि नहीं होती है। वे वहां लोगों के बीच स्वयं को बेहद अलग महसूस कर रहे होते हैं।
- एक ये लक्षण पर भी आप गौर करें ज्यादातर आपने देखा होगा कोई बच्चा होगा जो रात को सही से सोता नहीं होगा।
- साथ ही बहुत ज्यादा वजन कम होना और बढ़ना भी इसका एक लक्षण हो सकता है।
- जब आत्महत्या का मन में आने लगे तो बच्चे का बर्ताव में भी बदलाव आने लगता है। ज्यादा से ज्यादा अकेले रहने लगेगा तो आप ध्यान रखें कि आखिर उसके बर्ताव में क्यों बदलाव आ रहा है।
अगर आपको लगता है कि आपके बच्चे का बर्ताव अलग हो गया है या फिर वो डिप्रेशन का शिकार हो रहा है साथ ही कुछ गलत करने की उसने कोशिश की है तो जरूरी है कि आप इन तरीकों से उसे डिप्रेशन से बाहर निकालने की कोशिश करें :
परिवार और दोस्तों के बीच समय बिताएं
आजकल समय ऐसा आ गया है कि माता-पिता दोनों ही वर्किंग होते है जिस वजह से बच्चे पहले ही अपने आपको अकेला महसूस करते है। लेकिन जरूरी है कि आपके पास जितना भी समय हो बच्चे के साथ बिताएं। जिससे उसको अपनी अहमियत पता चल पाए। उसे परिवार और दोस्तों के बीच समय बिताने के लिए कहे। जिससे वह स्वयं को अकेला महसूस न करे। दोस्तों के साथ घूमना फिरना भी बच्चे के मानसिक दिक्कतों से बाहर निकालता है।
बातें शेयर करना है जरूरी

माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चें के साथ दोस्तों जैसा व्यवहार रखें। जिससे वे अपनी सारी बातें शेयर करें। इस उम्र में बच्चों में बहुत सारी चीजें परिवर्तित हो रही होती है। हो सकता है वे किसी से आकर्षित भी हो जाए। तो ऐसे में वो आपको अपने दोस्त की तरह बातें शेयर कर सके। कहीं ऐसा नहीं हो कि दिल टूटने पर अकेला महसूस करे। ऐसे में आत्महत्या का ख्याल सबसे पहले आता है।
पढ़ाई का प्रेशर नहीं डाले
हर बच्चा स्वयं में होशियार होता है। लेकिन ज्यादा दबाव डालने से बच्चे के मानसिक संतुलन पर ठेस पहुंचती है। बच्चा ज्यादा डिप्रेशन में आता है। क्योंकि मां बाप तो हर चीज में बच्चे का अव्वल आना जरूरी समझते है। इसलिए दबाव ज्यादा न बनाएं।
बच्चे को हौसला दें
जब बच्चा मेहनत करता है तो उसको उम्मीद अच्छे नंबर की ही होती है लेकिन कम नंबर आने पर उसका हौसला टूट जाता है या फिर किसी मनपसंद कॉलेज में दाखिला न मिलना बच्चों में डिप्रेशन की वजह बन जाता है। जिससे बच्चे के मन में गलत-गलत मानसिक भावनाएं आने लगती है। ऐसे बच्चे को हौसला दें और उनको आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें।
गेम्स खेलें
जब समय मिले तो बच्चे के साथ गेम्स खेलें। ये बच्चों के साथ समय बिताने का अच्छा तरीका है। उनके साथ इनडोर गेम्स में लूडो, तम्बोला या बिजनेस आदि गेम खेल सकते है। जिससे बच्चे के दिमाग को हल्का महसूस होगा। आउटडोर गेम्स मन को बहलाने का सबसे अच्छा विकल्प है।
पोषक तत्वों की कमी न होने दें
किशोरावस्था में वैसे भी बच्चों में शारीरिक और मानसिक बदलाव आ रहे होते हैं। ऐसे में पोषक तत्वों की कमी उनके स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। इस समय उन्हें पूरी ऊर्जा की आवश्यकता होती है। जिससे वे स्वयं को पूरी तरह स्वस्थ महसूस कर सकें। स्वास्थ्य अच्छा होगा तो अपने आप से ही तनाव और चिंता दूर रहेगी।
एक्सरसाइज, योग और मेडिटेशन

वर्कआउट के जरिए शरीर में ब्लड सर्कुलेशन भली प्रकार से चलता है। साथ ही योगा और मेडिटेशन से हम नकारात्मकता को दूर कर पाते है। अगर नियमित तौर पर किसी भी तरह का वर्कआउट करते है तो हम मानसिक तौर से स्वयं को ठोस महसूस करते है।
माता पिता और अध्यापक
माता-पिता और अध्यापक को चाहिए कि वे बच्चों से खुलकर बात करें। जिससे बच्चे की चीजों को समझ पाएं। क्योंकि बच्चा ज्यादा से ज्यादा समय घर और स्कूल में बिताता है। उनको सिखाना चाहिए कि कोई भी मुश्किल घड़ी में वे उनके साथ है।
जिंदगी जीने की कला
बच्चे को सिखाएं कि जिंदगी हमारे लिए कितनी मायने रखती है। उसका इस्तेमाल सही तरह से होना चाहिए। उसको जिंदगी जीने की कला बताएं। साथ ही जब वह भी अकेला हो तो उसके साथ समय बिताने कि कोशिश करें।
(साइकोलोजिस्ट बिन्दु कपूर से बातचीत पर आधारित)
