Overview: नींद में बच्चा करता है बातें, न करें नजरअंदाज, हो सकती है ये परेशानी
नींद में बात करना बच्चों में आम है, खासकर 3 से 10 वर्ष की आयु में। यह आनुवंशिकता, तनाव, नींद की कमी या नींद संबंधी विकारों के कारण हो सकता है।
Child Talk during Sleep: आपने अक्सर नोटिस किया होगा कि आपका बच्चा सोते समय कुछ बड़बड़ाता है, नींद में किसी से बात करता है या लड़ता है… नींद में बात करना एक आम समस्या है जिसे चिकित्सकीय भाषा में सोम्निलोकी कहा जाता है। इस स्थिति में बच्चे नींद के दौरान बिना जागरूकता के बोलते हैं। यह स्थिति आमतौर पर हानिरहित होती है, लेकिन कभी-कभी यह बच्चे और परिवार की नींद व शरीर को प्रभावित कर सकती है। नींद में बड़बड़ाना कितना सामान्य है और इसके क्या कारण है चलिए जानते हैं इसके बारे में।
क्या है नींद में बात करना

नींद में बात करना वह स्थिति है जब बच्चा नींद के दौरान आवाजें, शब्द या पूरे वाक्य बोलता है। बच्चे को इसकी जानकारी नहीं होती और सुबह बच्चा इसे पूरी तरह से भूल जाता है। यह नींद के किसी भी चरण में हो सकता है, लेकिन हल्की नींद के दौरान यह अधिक आम है।
बच्चों में नींद में बात करना कितना सामान्य है
नींद में बात करना 3 से 10 वर्ष की आयु के बच्चों में सबसे अधिक देखा जाता है। स्टडी के अनुसार लगभग 50% बच्चे कभी-कभी नींद में बात करते हैं। आमतौर पर उम्र बढ़ने के साथ यह कम हो जाता है।
नींद में बात करने के कारण
आनुवंशिकता: यदि माता-पिता या नजदीकी रिश्तेदारों में नींद में बात करने या अन्य नींद-संबंधी समस्याएं हैं, तो बच्चे में भी इसके होने की संभावना बढ़ जाती है।
तनाव और चिंता: भावनात्मक तनाव, चिंता या दिनचर्या में बदलाव नींद में बात करने को बढ़ा सकते हैं। जो बच्चे अपनी भावनाएं व्यक्त करने में कठिनाई महसूस करते हैं, उनमें यह अधिक होता है।
नींद की कमी: पर्याप्त नींद न लेने से नींद की सामान्य प्रक्रिया बाधित होती है, जिससे नींद में बात करने की संभावना बढ़ सकती है।
दवाएं या स्वास्थ्य समस्याएं: कुछ दवाएं, खासकर जो सेंट्रल नर्वस सिस्टम को प्रभावित करती हैं, नींद में बात करने को बढ़ावा दे सकती हैं।
नींद में बात करने के लक्षण
– बच्चे अस्पष्ट शब्द या आवाजें निकाल सकते हैं।
– कुछ बच्चे छोटे वाक्य या वाक्यांश बोलते हैं।
– हंसी, डर या उदासी जैसी भावनाएं व्यक्त हो सकती हैं।
– कभी-कभी जोरदार आवाजें या चीख निकल सकती है, खासकर अन्य पैरासोम्निया के साथ।
कैसे करें इस समस्या को मैनेज

नींद की दिनचर्या: एक निश्चित नींद का समय निर्धारित करें। उम्र के अनुसार पर्याप्त नींद सुनिश्चित करें, ताकि नींद की गुणवत्ता बेहतर हो।
शांत वातावरण: सोने से पहले शांत और आरामदायक माहौल बनाएं। किताब पढ़ना या शांत गतिविधियां तनाव कम करने में मदद करती हैं।
ट्रिगर्स पर करें फोकस : देखें कि किन घटनाओं या तनाव के कारण बच्चा नींद में बात करता है। बच्चे से उसकी भावनाओं के बारे में खुलकर बात करें।
कैफीन से बचें: सोने से पहले कैफीन जैसे कोल्ड ड्रिंक, कॉफी या चॉकलेट देने से बचें।
बातचीत से बचें: बच्चों को नींद में बात करने की घटनाओं के बारे में न बताएं, क्योंकि इससे अनावश्यक चिंता हो सकती है।
इस स्थिति में चिकित्सक से सलाह लें
– यदि यह बार-बार हो और नींद में चलना या नाइट टेरर जैसे लक्षण दिखाई दें।
– यदि नींद में बात करना परिवार की नींद या बच्चे के दिन के व्यवहार को प्रभावित करे।
– यदि बच्चा दिन में अत्यधिक थकान महसूस करता है, जो नींद के विकार का संकेत हो सकता है।
– यदि यह स्थिति टीनेज में भी जारी रहे।
