Sharing: बच्चों की परवरिश करना एक मुश्किल काम होता है लेकिन फिर भी ये सबको आनंदित करता है और हर कोई अपने जीवन में इस मुश्किल काम का अनुभव करने की ख्वाहिश रखते हैं। लेकिन असली मुश्किल तो तब शुरू होती है जब बच्चे अपने ग्रोइंग पीरियड(10 से 16 साल की उम्र) में होते हैं और ज्यादातर समय घर से बाहर स्कूल, ट्यूशन और दोस्तों के साथ खेलने में बिताते हैं। इस दौरान मां-बाप के लिए अजीब कशमकश खड़ी हो जाती है। वे बच्चों को ज्यादा दोस्तों के साथ रहने के लिए मना भी नहीं कर सकते हैं और उन्हें सारी बातें शेयर करने के लिए फोर्स भी नहीं कर सकते।
बतौर पैरेंट्स, हमारी सबसे पहली चाहत होती है कि हमारा बच्चा हमें सबकुछ आकर बताए। छोटी सी छोटी बातें शेयर करें ताकि हम अंदाजा लगा सकें कि वह कैसी संगति में है, कैसे उसके विचार बन रहे हैं और बिगड़ कहे हैं, वह क्या चाहता है और कैसे दूसरों के बारे में सोचता है। लेकिन होता यह है कि बच्चे अपने स्कूल और दोस्तों से जुड़ी बातों को लेकर मां-बाप से कटे रहते हैं। अगर मां-बाप पूछते हैं कि स्कूल में दिन कैसा गया तो यह बच्चे यह कह कर टाल देते हैं कि हमेशा की तरह बोरिंग। शायद ही कभी ऐसा दिन होता है कि वे अपनी भावनाओं को लेकर मां-बाप को बताते हैं।
आखिर में क्यों होता है ऐसा?
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपने ही खुद अपने और बच्चे के बीच दीवार खड़ी की। मां-बाप बोलते तो हैं कि हम आपको दोस्त हैं लेकिन शायद ही कोई मां-बाप अपने बच्चों के साथ दोस्तों सा व्यवहार करते हैं। इसे ऐसे समझें- जब भी कोई आपसे आपकी बच्चे की शिकायत करता है तो आपका सबसे पहला रिएक्शन क्या होता है?
बेशक, आप डांटती हैं। लेकिन क्या बच्चे के दोस्त ऐसा करेंगे? नहीं। बच्चे भी एक-दूसरे के बीच में गलती करते हैं। लेकिन जब बच्चों के बीच एक-दूसरे से किसी से भी गलती हो जाती है तो उनके दोस्त सबके सामने गुस्सा करने के बजाय अकेले में शांत तरीके से बोल देते हैं कि देख, मुझे तुम्हारी ये बात बुरी लगी। आगे से ध्यान रखना।
आपको भी केवल यही करना है। आप मानो या ना मानो, लेकिन बच्चे बड़ों से ज्यादा मैच्योर होते हैं। बड़े लोग तो मौका मिलते ही अपना गुस्सा किसी के ऊपर भी उतार देते हैं। लेकिन बच्चे, टीचर्स और मां-बाप की डांट का गुस्सा, खेल में हार का गुस्सा, बगल वाले से लड़ाई का गुस्सा…हर-तरह का गुस्सा किसी के ऊपर चिल्लाकर निकालने के बजाय एक-दूसरे से बोलकर और हंसकर खत्म करते हैं। बड़ों का प्लस प्वाइंट यह है कि वे कमाते हैं तो सोचते हैं कि वे सुप्रीम है। यही सुप्रीमेसी को आपको बच्चों के सामने उतार कर फेंकनी है और सच्चे मन से उनका दोस्त बनना है। उन्हें समझने की जरूरत है।
अपनी स्टोरी बताएं
इसके लिए सबसे पहले अपने छोटेपन की कहानियां अपने बच्चों को सुनाएं। आपने भी तो बचपन में कुछ बदमाशी की होगी, किसी को मारा होगा, कुछ शरारत की होगी…केवल वही शरारत आपको बच्चों के सामने मजाक-मजाक में बताने की जरूरत है। जब आपकी कहानियों से बच्चे खुद को रिलेट करने लगेंगे तो वे भी आपको अपने किस्से बताने लगेंगे।
लेकिन ध्यान रखें कि आप उनकी किसी बात पर ओवररिएक्ट ना करें। अगर आपको अपने बच्चे के किस्से सुनकर लगता है कि वह कुछ गलत कर रहा है तो उसी समय टोकने के बजाय कुछ दिनों के बाद प्रैक्टिकल तौर पर समझाने की जरूरत है।
तो बच्चों को अपने स्कूल के किस्से शेयर करवाने के लिए आपको इन सवालों से शुरुआत करने की जरूरत है-

1) ऐसा कोई दिन गया जब हमने मार ना खाई हो, तुम्हारे साथ भी क्या ऐसा ही होता है स्कूल मैं?
बच्चों की स्कूल लाइफ के बारे में जानने के लिए उन्हें अपने एक्सपीरिएंशेस बताए कि कैसे आपका भी कोई दिन बिना मार खाए स्कूल में नहीं बीतता था। लेकिन ऐसा एक बार पूछने से नहीं होगा। उन्हें हमेशा खाने या कोई काम करने के दौरान अपने एक्सपीरिएंशेस बताते रहें। जब वह आपकी बातों को एन्ज्वॉय करने लगेगा तो अपने भी स्कूल के एक्सपीरिएंशेस बताने लगेगा कि कैसे फलाना टीचर उससे व उसके दोस्त से चिढ़ते हैं… वगैरह-वगैरह।
2) स्कूल बंक तो हम लोगों ने भी एक-दो बार किया था, क्या आजकल भी तुमलोग ऐसा करते हैं?
ऐसा कोई बच्चा नहीं है जिसने स्कूल बंक ना किया हो। हर बच्चा स्कूल बंक करता है। यहां तक कि पढ़ाकू बच्चा भी किसी नापसंद विषय के पीरियड का इस्तेमाल करने के लिए क्लास बंक मारता है और इस दौरान अपना फेवरेट सब्जेक्ट पढ़ कर उस समय को यूटिलाइज़ करता है। तो अगर आपका बच्चा आपके सामने ज्यादा आदर्श बच्चा बन रहा है तो उसके साथ अपने स्कूल बंक करने के अनुभवों को शेयर करें। वह भी दो-तीन कहानियां सुनने के बाद अपने किस्से सुनाने लग जाएगा। क्योंकि बच्चे मैच्योर जरूर होते हैं लेकिन वे उत्साहित भी तुरंत हो जाते हैं और तुरंत किसी के बात से इंस्पायर होकर भी किस्से सुनाने लगते हैं।
बचपन की लाइफ का एक ही मंत्र होता है- हम किसी से कम नहीं।
यह एक लाइन जवानी तक उनकी इंजन का कार्य करती है।

3) हमलोगों का एक ग्रुप था जिससे पूरा स्कूल डरता था, क्या तुम्हारे स्कूल में भी ऐसा कोई ग्रुप है?
इस सवाल को सुनकर तो आपका बच्चा सबसे पहले ठिठक जाएगा। लेकिन एक बार सवाल करने के बाद आप उनसे दोबारा कभी ये सवाल नहीं पूछेंगी और हमेशा अपने ग्रुप के किस्से बताते रहेंगी तो कुछ समय के बाद आपका बच्चा भी अपने स्कूल ग्रुप की शैतानियों के बारे में बताने लगेगा।
4)हमलोग यह खेल खेलना पसंद करते थे, तुमलोग क्या खेलते हो आजकल ?
बच्चों के पसंदीदा खेल से भी बच्चों के व्यक्तित्व के बारे में बहुत कुछ पता लगाया जा सकता है। इसलिए पता करने की कोशिश करें कि आपके बच्चे आजकल क्या गेम खेल खेलते हैं। खासकर तो अगर बच्चे ऑनलाइन ज्यादा रहते हैं तो उनसे उनकी पसंदीदा गेमिंग के बारे में जरूर पूछें। यह सवाल इस तरह से करें कि आप वह गेम खेलना चाहती हैं। क्योंकि बच्चों को बड़ों को सीखाना बहुत अच्छा लगता है। तो आपका बच्चा ये मौका अपने हाथ से जाने नहीं देगा और आपको अपने नए-नए गेम के बारे में सीखाएगा। आप इस सवाल के जरिए उनके गेमिंग पार्टनर भी बन सकती हैं।

5)मुझे तो स्कूल में कई लोग पसंद करते थे क्या तुम्हे भी?
अगर आपको ऐसा लग रहा है कि आपके बच्चे की लव लाइफ शुरू हो गई है तो आप उससे डायरेक्ट इस बारे में बात ना करें। पहले तो इस बात को नजरंदाज करें। अगर बात गंभीर होती नजर आए तो उन्हें अपने स्कूल लाइफ के हल्के-फुल्के किस्से सुनाए। वह भी कुछ दिनों के बाद अपने बारे में बताने लगेगा। क्योंकि लव पीरियड ऐसा समय होता है जब इंसान उसी के बारे में बात करना चाहता है, उसी के साथ रहना चाहता है और हमेशा मुस्कुराना चाहता है। तो इस एक्सपीरियंस को शेयर करवाने में आपको ज्यादा मेहनत नहीं लगेगा।
यह तो कुछ सामान्य से सवाल और तरीके हैं जिनके जरिए आप अपने बच्चे की दोस्त बन सकेंगी और उन्हें हर किस्से को शेयर करने के लिए मजबूर कर देंगी। केवल आपको इस बात का ख्याल रखना है कि इस दौरान किसी भी किस्से पर एग्रेसिव ना हो और उन्हें गलत ना कह दें। दोस्त कभी गलत नहीं कहते हैं, वे केवल एक-दूसरे का साथ देते हैं और अकेले में समझाते हैं कि वह क्यों गलत है? तो आप भी ऐसा करें।