Digital Defense Tips: अकसर लड़कियों को प्रोफाइल लॉक करने के लिए कहा जाता है लेकिन इतना ही पर्याप्त नहीं है। वॉट्स-अप मैसेज हो या इंस्टा चैट, लड़कियों के लिए डिजिटल डिफेंस बहुत जरूरी है। आइए जानते हैं, क्या है यह डिजिटल डिफेंस और किस तरह आप अपनी बेटी को इसकी बारीकियां समझा सकते हैं। आइए समझते हैं डिजिटल डिफेंस के बारे में-
रजनी पहली कक्षा में पढ़ती थी, तभी उसकी मम्मी ने उसे कराटे क्लास में भर्ती करा दिया था। यह सोच कर कि बेटियों को सेल्फ डिफेंस तो आना ही चाहिए। आज वह 16 साल की है। कराटे में उसके पास ब्लैक बेल्ट है। उसका आत्मविश्वास भी काफी बढ़ गया है। सेल्फ डिफेंस आने के बावजूद उसकी मां की चिंता कम नहीं हुई है। दरअसल, एकतरफा प्यार में लड़कियों के साथ होने वाले अपराधों को देख कर आज हर माता-पिता अपनी बेटी के भविष्य को लेकर चिंतित रहते हैं।
बच्चों पर रखें नजर
माता-पिता अपनी बेटियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उन पर पाबन्दी लगा देते हैं। कुछ अभिभावक अपने बच्चों के सोशल मीडिया के एकाउंट डिलीट करा देते हैं, ताकि कोई उन्हें ब्लैकमेल न कर सके। कुछेक बेटी के मोबाइल और उसके दोस्तों पर पैनी नजर रखनी शुरू कर देते हैं। इन सब चीजों के बीच एक बात साफ है कि माता-पिता का अविश्वास बेटी पर नहीं बल्कि दुनिया पर ही अधिक है।
डिजिटल डिफेंस है जरूरी

एक दशक पहले तक माता-पिता बेटे और बेटी की सहेलियों और दोस्तों पर नजर रखते थे। स्कूल में उनके साथ पढ़ने वाले लड़कों और लड़कियों की पूरी सूची उनकी जुबान पर रहती थी। ट्यूशन क्लास में या एक्स्ट्रा क्लास में लड़का या लड़की किस के साथ आता-जाता है, उस पर भी उनकी नजर बाज की तरह होती थी। अब हर किसी के पास अपना मोबाइल फोन है। सोशल मीडिया पर अपने एकाउंट हैं इसलिए इस समय माता-पिता बच्चों दोनों को ‘डिजिटल डिफेंस’ सिखाना जरूरी है।
चैटिंग का तरीका सिखाएं

हमें लड़कियों को यह समझाना पड़ेगा कि जब आप बोल कर बात करती हैं तब आप जो कहना चाहती हैं, उसमें उसके हावभाव मिले होते हैं, पर जब आप चैटिंग करती हैं तो लिख कर बात करती हैं। तब आप के एक ही वाक्य के अनेक अर्थ हो सकते हैं। मान लीजिए कि किसी लड़की ने कैजुअली किसी लड़के को चैट में ‘हाऊ आर यू?’ लिखा तो जरूरी नहीं कि वह लड़का ‘हाऊ आर यू?’ का अर्थ कैजुअली ही ले। उसे इस ‘हाऊ आर यू?’ में कोई नई शुरुआत भी दिखाई दे सकती है और उसके लिए लगाव भी।
हमें लड़कियों को यह समझाना पड़ेगा कि आप जो बात जिस अर्थ में कहना चाहती हैं, सामने वाले व्यक्ति को उसी अर्थ में समझाना चाहिए। हमने एकदम कैजुअली ‘हाऊ आर यू?’ पूछा है तो सामने वाले व्यक्ति की यह समझ में आना चाहिए कि यह ‘हाऊ आर यू?’ एक शिष्टाचार मात्र है। उसे यह भी समझाना पड़ेगा कि आप एकदम कैजुअल हैं। सामने वाला व्यक्ति आप को कैजुअली नहीं ले रहा, यह कड़वी वास्तविकता है और समस्या भी यहीं से शुरू होती है।
लंबी चैट से बचने की दें सलाह

लड़कियों द्वारा की गई चैट को लड़के आमंत्रण, फीलिंग्स या रिलेशनशिप की शुरुआत मान लेते हैं। हमें लड़कियों को यह साफ-साफ समझाना होगा कि उनके साथ पढ़ने वाला या जिसके साथ ट्यूशन आती-जाती है और जिसके साथ चैट कर रही हैं, उस लड़के के बारे में वह अपने मन में जो विचार रखती है, वह लड़का उस बात को समझ रहा है या नहीं? लंबी चैट करने के बाद अगर लड़की यह कह दे कि ‘मैंने तो केवल बात ही की थी’ तो यह ठीक नहीं है क्योंकि उसकी खाली बात को लड़के ने कुछ अलग ही अर्थ में लिया है। लड़की के मन में भले ही कुछ न हो लेकिन उसकी चैट से उस लड़के के मन में लड्डू फूटने लगे हैं। उसके बाद लड़की अपनी बात समझाने में असफल रहती है। इस तरह लड़की भी इस अपराध में आधे की हिस्सेदार है क्योंकि उसका बातचीत साफ नहीं था। हमें लड़कियों को यह समझाना पड़ेगा कि जब उन्हें सामने वाले व्यक्ति में किसी भी तरह की रुचि नहीं है तो सामने वाले व्यक्ति को यह बात साफ-साफ बता दें। सामने वाले व्यक्ति को भी यह बात साफ-साफ पता होनी चाहिए कि उसे उसमें कोई रुचि नहीं है। कम्युनिकेशन पूरा और स्पष्ट होना चाहिए।
बातचीत स्पष्ट होनी चाहिए

जिस तरह लड़कियों को स्पष्ट बातचीत करने के बारे में बताना और समझाना जरूरी है। उसी तरह लड़कों को भी साफ बातचीत के बारे में पहचानने के बारे में बताना जरूरी है। लड़के को भी यह समझाना जरूरी है कि कोई लड़की उससे पूछती है कि वह क्या करता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह उसमें रुचि ले रही है। लड़की हो या लड़का, हम उसे सोशल मीडिया से दूर नहीं रख सकते। पर हमें उन्हें सोशल मीडिया के नियम-कानून से वाकिफ जरूर कराना चाहिए।
जितना जरूरी शारीरिक सुरक्षा है, उतनी ही जरूरी मानसिक सुरक्षा भी है। अकसर हम कम्युनिकेशन की स्किल से बहुत कुछ छोड़ देते हैं। अगर हम अपने बेटे या बेटी को कम्युनिकेशन स्किल में माहिर करें तो सोशल मीडिया पर एक लक्ष्मण रेखा निश्चित खींच सकेंगें।
बेटी के साथ बेटों के लिए भी सबक
बाकी एक बात हमें भी समझने की जरूरत है कि अब बेटे-बेटी में कोई फर्क नहीं रखा जाता और रखना भी नहीं चाहिए। हालांकि, दोनों की देखभाल और पालन-पोषण एक जैसा नहीं होता। बेटी को दी जाने वाली सीख, समझ और संस्कार बेटे को दिए जाने वाले संस्कारों से अलग होती है। बेटों को अगर महिलाओं का सम्मान देना सिखाया गया है तो बेटियों को बातचीत करने का ढंग भी सिखाना जरूरी है, जिससे वह जो कहना चाहती है, बिलकुल वही का वही सामने वाले व्यक्ति तक पहुंचा। ठ्ठ
लड़की हो या लड़का, हम उसे सोशल मीडिया से दूर नहीं रख सकते। पर हमें उन्हें सोशल मीडिया के नियम-कानून से वाकिफ जरूर कराना चाहिए। जितना जरूरी शारीरिक सुरक्षा है, उतनी ही जरूरी मानसिक सुरक्षा भी है।