Mahakumbh 2025: कुंभ मेला हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण और विशाल धार्मिक समागम है जो बारह साल में एक बार होता है। यह मेला चार प्रमुख स्थानों – हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन में आयोजित किया जाता है। इनमें से नासिक और उज्जैन में हर साल कुंभ मेला लगता है, जबकि महाकुंभ बारह साल में एक बार इन चारों स्थानों पर बारी-बारी से होता है। लाखों श्रद्धालु इस मेले में भाग लेते हैं और पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। पिछला महाकुंभ 2013 में प्रयागराज में हुआ था और अगला महाकुंभ 2025 में होने वाला है।
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बृहस्पति और महाकुंभ का संबंध
महाकुंभ का आयोजन हर बारह साल में होने के पीछे एक खगोलीय कारण है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यह ग्रहों की विशिष्ट स्थिति पर निर्भर करता है। विशेषकर बृहस्पति ग्रह, जो धार्मिक ग्रह माना जाता है, लगभग बारह वर्षों में राशि चक्र का एक चक्कर पूरा करता है। जब बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है और साथ ही सूर्य मेष राशि में होता है, तो यह खगोलीय संयोग महाकुंभ के आयोजन का संकेत देता है। यह खगोलीय घटना बारह वर्षों में एक बार घटित होती है, इसीलिए महाकुंभ भी बारह वर्षों के अंतराल पर मनाया जाता है।
समुद्र मंथन और कुंभ मेले का संबंध
कुंभ मेले का गहरा संबंध हिंदू पौराणिक कथाओं के समुद्र मंथन से है। देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था। इस मंथन के दौरान अमृत के साथ-साथ विष भी निकला था। अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों पर गिर गई थीं – हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन। मान्यता है कि इन स्थानों पर गिरी हुई अमृत की इन बूंदों के कारण ही इन स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित होता है। इस पौराणिक कथा के अनुसार, अमृत के लिए देवताओं और असुरों के बीच बारह दिव्य दिनों तक युद्ध हुआ था, जो मनुष्यों के बारह वर्षों के बराबर माना जाता है। इसीलिए कुंभ मेला बारह साल में एक बार आयोजित होता है और इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है।
कुंभ मेले का 12 वर्ष का चक्र
कंभ मेले का आयोजन 12 वर्षों के अंतराल पर होने के पीछे 12 अंक का विशेष महत्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान अमृत प्राप्ति के लिए देवताओं और असुरों के बीच 12 दिव्य दिनों तक संघर्ष हुआ था। यह काल मनुष्यों के 12 वर्षों के बराबर माना जाता है। इस अवधि के दौरान नदियाँ अमृत से भर गईं थीं, जिसके कारण ये स्थान पवित्र हो गए। मान्यता है कि कुंभ मेले के दौरान इन नदियों में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए, संख्या 12 को कुंभ मेले में अत्यंत पवित्र और शुभ माना जाता है।
कुंभ मेले के चार पवित्र स्थान
पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिरी थीं। ये बूंदें चार स्थानों – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक पर गिरीं। इन स्थानों को अत्यंत पवित्र माना जाता है और यहीं पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। यह मान्यता है कि इन स्थानों पर स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। कुंभ मेला न केवल भारत बल्कि दुनिया भर के लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। यह धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व श्रद्धालुओं को पवित्रता, साधना और अमरता की प्राप्ति के लिए एक मंच प्रदान करता है।
