Mahakumbh 2025: ऐसी मान्यता है कि कुम्भ में स्नान करने के बाद आपके समस्त दु:ख दूर हो जाते हैं, यहां तक कि जन्म-मृत्यु के फेर से भी आप बच जाते हैं। आइए जानते हैं कि आखिर 2025 में लगने वाला महाकुंभ क्यों इतना खास है।
कुंभ मेला भारतीयों की आस्था से जुड़ा एक पर्व है। इस पर्व में देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग
शामिल होने आते हैं। महाकुंभ हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है। ये प्रयागराज में लगता है। कुंभ मेले का हिंदू धर्म में धाॢमक और सांस्कृतिक महत्व है। 30-45 दिनों तक चलने वाला ये मेला भारत के लिए काफी मायने रखता है। पूरे 12 सालों के बाद एक बार फिर ये मेला प्रयागराज में साल 2025 में लगने जा रहा है। इस मेले से कई तरह की मान्यताएं जुड़ी हैं। मान्यता है कि कुंभ मेले में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी पाप भी नष्ट हो जाते हैं। आइए आज आपको बताते हैं कुंभ मेले का महत्व और इससे जुड़े जरूरी
तथ्य। आखिर किन लोगों के लिए महाकुंभ सबसे उत्तम समय है?
कितने प्रकार के होते हैं कुंभ
1. कुंभ मेला मुख्य तौर पर चार तरह का होता है। किसी भी कुंभ मेले का आयोजन ग्रहों की स्थिति के आधार पर किया जाता है।
2. कुंभ: यह सबसे सामान्य प्रकार का कुंभ है जो हर 12 साल में एक बार चार पवित्र नदियों- गंगा, यमुना, गोदावरी और कावेरी के संगम पर आयोजित किया जाता है।
3. अर्धकुंभ: यह कुंभ हर 6 साल में एक बार आयोजित होता है और यह कुंभ और महाकुंभ के बीच का एक मध्यवर्ती आयोजन होता है।
4. पूर्णकुंभ: यह कुंभ हर 144 साल में एक बार आयोजित होता है और इसे सबसे पवित्र माना जाता है।
5. महाकुंभ: यह कुंभ भी हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है लेकिन यह कुंभ विशेष रूप से प्रयागराज में गंगा और यमुना के संगम पर होता है।
महाकुंभ 2025 तिथि
साल 2025 में महाकुंभ का आयोजन होने वाला है, जिसकी तैयारी जोरो-शोरों के साथ शुरू हो चुकी है। इस साल पौष पूर्णिंमा यानी कि 13 जनवरी 2025 से महाकुंभ मेले का आयोजन शुरू होगा। 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के पर्व के साथ इस उत्सव का समापन होगा। भारत के इस खास मेले की मान्यता को देखते हुए
यूनेस्को ने कुंभ को मानव की अमृत सांस्कृतिक विरासत की विश्व धरोहर की मान्यता भी दी है।
12 साल में 1 बार ही क्यों लगता है महाकुंभ
महाकुंभ का मेला 12 सालों में एक बार लगता है। क्या आपने कभी सोचा है भला ये मेला 12 सालों में एक बार ही क्यों लगता है? दरअसल इसके पीछे कई धार्मिक मान्यताएं हैं। इससे जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा के अनुसार, कुंभ की उत्पत्ति समुद्र मंथन की कहानी से जुड़ी है। कथा के अनुसार, देवता और असुरों के बीच अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन युद्ध हुआ था। ये युद्ध 12 दिनों तक चला था। कहा जाता है युद्ध के ये 12 दिन पृथ्वी के 12
सालों के बराबर है। इसी कारण कुंभ का मेला 12 सालों में एक बार लगाया जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान अमृत के 12 छींटे गिर गए थे। इसमें 4 छींटे धरती पर गिरे थे। इन्हीं 4 स्थानों पर कुंभ का आयोजन किया जाता है। वहीं, कई ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार, बृहस्पति ग्रह 12 साल में 12
राशियों का चक्कर लगाता है। इसके पूरे होने पर ही महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। बृहस्पति ग्रह जब किसी विशेष राशि में होता है, तब महाकुंभ लगता है।
महाकुंभ में शाही स्नान का महत्व
महाकुंभ मेले में शाही स्नान का अपना एक विशेष महत्व है। धाॢमक मान्यताओं के अनुसार, महाकुंभ के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस मेले के दौरान पवित्र नदियों का जल अमृत समान हो जाता है। ऐसे में इस जल में स्नान करने से देवी-देवताओं का विशेष आशीष मिलता है। प्रयागराज में लगने
वाले महाकुंभ का सबसे विशेष महत्व है। यहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदी मिलती है, जिस कारण इस संगम में स्नान करने का अपना विशेष महत्व है। इस दौरान संगम में स्नान करने से पाप कम होते हैं।
महाकुंभ मेले पर बनेगा ये शुभ संयोग
इस बार महाकुंभ में रवि संयोग बन रहा है। मेले के पहले दिन सुबह 7 बजकर 15 मिनट से होगा और सुबह 10 बजकर 38मिनट पर इसका समापन होगा। इसी दिन भद्रावास योग भी बनने वाला है। इस योग
में विष्णु जी की पूजा करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं।
महाकुंभ किन लोगों के लिए है समय अति उत्तम
1. महाकुंभ साधुओं के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र आयोजन होता है। यह उनके लिए एक ऐसा अवसर होता है जब वे दुनिया भर से एकत्रित होते हैं और अपने आध्यात्मिक अनुभवों को साझा करते हैं। मान्यताओं के अनुसार, महाकुंभ मेले में देश-दुनिया के कई ऐसे साधक शामिल होते हैं, जो बाकी के समय दुनिया से बिल्कुल दूर रहते हैं। वे लोग मनुष्यो के संपर्क में नहीं आते। ऐसे साधक विशेष तौर पर महाकुंभ मेले में शामिल होने के लिए आते हैं।
2. महाकुंभ साधुओं के लिए अपनी आध्यात्मिक साधना को गहरा करने का एक अनूठा अवसर
होता है। वे यहां विभिन्न प्रकार की साधनाओं में लिप्त होते हैं, जैसे कि ध्यान, योग और तपस्या।
3. महाकुंभ में विभिन्न संप्रदायों के साधु एक साथ आते हैं। यह उनके लिए एक-दूसरे से ज्ञान और अनुभव साझा करने का एक मंच प्रदान करता है।
4. महाकुंभ में पवित्र नदी में स्नान का विशेष महत्व होता है। साधु मानते हैं कि इस स्नान से उनके पाप धुल जाते हैं और उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है।

महाकुंभ 2025 शाही स्नान कब होगा

13 जनवरी 2025, पौष पूॢणमा- पहला
शाही स्नान
14 जनवरी 2025, मकर संक्रांति- दूसरा
शाही स्नान
29 जनवरी 2025, मौनी अमावस्या-तीसरा शाही स्नान
3 फरवरी 2025, बसंत पंचमी- चौथा
शाही स्नान
12 फरवरी 2025, माघ पूॢणमा- पांचवा
शाही स्नान
26 फरवरी 2025, महाशिवरात्रि- छठवां
और आखिरी शाही स्नान
