प्राण! योगी ने रेचन क्रिया करके अपने प्राण बाहर स्थित कर दिए। अब उसका शरीर जड़ हुआ कि चेतन? प्राणायाम से योगी ने शरीर से प्राण निकाले और बाहर स्थित कर दिए। हमने मात्र इतना बोला है कि चेतन की व्याख्या क्या है? जो कभी नहीं सोता हमेशा जागता है वो चेतन है। जागृत, स्वप्न सुषुप्ति, जीवात्मा तीन ही अवस्थाओं में रहती है। जड़ प्रकृति में बाहर ये जो तुम जड़ संसार, पेड़, पत्थर, पौधे देख रहे हो, इनकी भी स्वप्न ही स्वप्न है, जागृत इनका नहीं है। पत्थर की, पेड़ की, पौधों की, जमीन की भी इन सबकी सुषुप्ति ही सुषुप्ति चल रही है। ये सोये ही सोये हैं और आदमी कभी सोया है तो कभी जगा है।
मन-बुद्धि का प्रयोग तुम कभी करते हो और कभी नहीं करते हो। नींद में कहां करते हो मन-बुद्धि का प्रयोग, कोई प्रयोग नहीं हो रहा है। और जब मन-बुद्धि का प्रयोग कर रहे हो तो शरीर चेतन जैसा लगता है। अब तुमको बताते हैं कि क्या जड़ है और क्या चेतन? तुक्के चल गए हैं, आधे-अधूरे तीर भी चले हैं, पर चलाने वाले को पता नहीं ये तीर है। बिना लक्ष्य को बांधे हम तीर चलायें, लक्ष्य नहीं बांधा और तीर चला दिया, लगेगा कैसे? लक्ष्य को बेधना है।
अर्जुन को मछली की आंख को बेधना है, मछली की आंख को लक्ष्य न बनाये और तीर चलाता जाये, बोलो कहां लगेगा। ये भी हो सकता है कि बिना लक्ष्य बांधे चलाते-चलाते कोई न कोई तो लग ही जाये। पर स्वयंवर में ये शर्त नहीं थी कि चलाते जाओ मूर्खों की तरह। मात्र एक तीर चलाना है बस। कितने तीर। एक तीर और यहां कोई दो चला रहा है, कोई तीन चला रहा है और लक्ष्य बेधा नहीं। क्यों लक्ष्य किसी ने साधा नहीं है। ज्ञान अनुमान नहीं है, ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण होता है। और प्रत्यक्ष प्रमाण तब होता है जब उसको शब्द रूपी बाण दिया जाए। शब्द रूपी बाण नहीं दिया जायेगा तो तुम्हारे अनुमान अनुमान ही रह जाएंगे। तब वो कभी प्रत्यक्ष अनुभव नहीं बन सकेंगे। जो कभी जड़ और कभी चेतन हो, कभी जड़ चेतन जैसा लगे और कभी चेतन जड़ जैसा लगे वो जड़-चेतन की व्याख्या में नहीं आ पाएंगे। पूर्ण परिभाषा जिसको समझने से चेतन की अनुभूति भी हो। जड़ किसको कहते हैं- जो न अपने आपको जाने, न अपने से भिन्न दूसरे को जाने और जिसे जानने के लिए किसी तीसरे की आवश्यकता हो वो जड़ है।
जड़ क्या है? जो न अपने को जाने, न अपने से भिन्न दूसरे को जाने जिसे जानने के लिए किसी तीसरे की आवश्यकता हो वो जड़ है। और चेतन- जो अपने को भी जाने, अपने से भिन्न दूसरे को भी जाने और जिसे जानने के लिए कोई दूसरा समर्थ नहीं है। वो हुआ चेतन।
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