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तलाश आनंद की – आनंदमूर्ति गुरु मां

मन चाहता है आनंद की प्राप्ति और आनंद की तलाश में कहां-कहां भटकता है। हर आगंतुक इच्छा इसी आनंद की पूर्ति के लिए तो करता है लेकिन वो बात अलग है कि इच्छा तो पूरी हो जाती है, पर आनंद नहीं मिलता।

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सुख की अनुभूति – आनंदमूर्ति गुरु मां

वो जरा सा सेकेंड निर्विकल्पता का। वह जो भीतर निर्विकल्पता होती है सबसे प्यारी होती है क्योंकि उसमें हम अपने मन में अपना प्रतिबिंब नहीं देख रहे, मन ही को उड़ा दिया है, सीधे-सीधे अपने आपको देख रहे हैं।

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जो जन्मा है सो मरेगा – आनंदमूर्ति गुरु मां

हम जीने का इतना इंतजाम कर रहे हैं। हम खाने का इतना इंतजाम कर रहे हैं। पर हम अपनी मौत के विषय में कभी भी नहीं सोचते हैं। कौन बचा है मौत से? जो जन्मा है सो मरेगा।

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मन की कल्पना के जाल – आनंदमूर्ति गुरु मां

सीमा में जो होगा, उसकी स्मृति हम कर सकते हैं, परमात्मा हर देश में, परमात्मा हर काल में, हर वस्तु में अनुगत है, तो एक दफे उसका बोध हो जाने पर चूंकि दूरी फिर नहीं होती तो स्मृति नहीं होगी।

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सतोगुणी होने के लिए यत्न करना होगा – आनंदमूर्ति गुरु मां

जिसे तुम छू न सको, जो शब्द से तुम्हें सुनायी न देगा। अदृश्यम्ï जो कभी दृश्य बनकर तुम्हारी आंखों के सामने आने वाला नहीं है। ऐसा सूक्ष्म, अति सूक्ष्म परमात्मा की सत्ता के बोध के लिए, अनुभव के लिए संन्यास है।

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चित्त की महत्ता – आनंदमूर्ति गुरु मां

वृक्ष की जड़ को जब तक न काटा जाए वृक्ष के सिर्फ पत्ते और शाखाएं निकाल देने से वृक्ष का अन्त नहीं होता। इसी तरह जब तक मनुष्य अपने स्वरूप के मूल तक नहीं पहुंचता, ‘मैं कौन हूं इसका ज्ञान प्राप्त नहीं करता, तब तक ना अज्ञान दूर होगा और ना ही परमात्मा की प्राप्ति होगी।

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जीवन का लक्ष्य – आनंदमूर्ति गुरु मां

जिसे तुम छू न सको, जो शब्द से तुम्हें सुनायी न देगा। अदृश्यम्ï जो कभी दृश्य बनकर तुम्हारी आंखों के सामने आने वाला नहीं है। ऐसा सूक्ष्म, अति सूक्ष्म परमात्मा की सत्ता के बोध के लिए, अनुभव के लिए संन्यास है।

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जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि – आनंदमूर्ति गुरु मां

संत से सुना ज्ञान। ज्ञान को ठीक से श्रवण कर लिया तो तुम्हारे मन में बैठे इन राक्षसों की हत्या की जाएगी तो फिर संत भी कौन हो गया? मुरारी। क्योंकि तुम्हारे अन्दर वाले मुर को उसने मारा।

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ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण है – आनंदमूर्ति गुरु मां

प्रत्यक्ष प्रमाण तब होता है जब उसको शब्द रूपी बाण दिया जाए। शब्द रूपी बाण नहीं दिया जायेगा तो तुम्हारे अनुमान अनुमान ही रह जाएंगे। तब वो कभी प्रत्यक्ष अनुभव नहीं बन सकेंगे।

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‘संत और सिपाही’ गुरु गोबिंद सिंह

सिखों के दसवें एवं अंतिम गुरु गुरु गोबिंद सिंह की जयंती हर्षोल्लास के साथ पूरे भारत में मनाई जाती है। बिहार के पटना साहिब में जन्में गुरु गोबिंद सिंह की स्मृति में यहां एक भव्य गुरुद्वारा भी स्थापित है, जहां सभी धर्मों के लोग दर्शन के लिए आते हैं।

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