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सुख के रिश्ते

Happy Relationship: बच्चा नहीं प्यारा, बच्चे से जो सुख मिलता है, वह प्यारा है। मकान नहीं प्यारा, उस मकान से जो सुख मिलता है, वह सुख प्यारा है। पति-पत्नी, मां-बच्चा ये जितने रिश्ते हैं, ये सब इन रिश्तों की वजह से प्यारे नहीं हैं, ये ‘मुझ’ को सुख देते हैं, इसलिए प्यारे हैं। पत्नी, पत्नी […]

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सत्य कभी नहीं बदलता

Life Lesson: परमात्मा कोई मान्यता नहीं है कि आज तुम मानो और कल तुम न मानो। परमात्मा एक सत्य सनातन सत्ता है, वह तुम्हारे मन की कल्पना नहीं है। परमात्मा का स्वरूप सत्ïचित्त आनंद व्यापक है। मन की कल्पनाओं के जाल में व्यक्ति इतना जकड़ा हुआ है कि उसे यह भी होश नहीं है कि […]

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स्वयं को जानें: Spiritual Thoughts

Spiritual Thoughts: तुम्हारे पास हजारों चीजें हों, लेकिन अगर तुम्हारे पास ज्ञान नहीं, अपने स्वरूप का बोध नहीं, तो तुम्हारा चित्त कभी भी क्लेश मुक्त नहीं होगा। हमेशा क्लेशों से उत्पीड़ित रहेगा। मैं कौन हूं इसका विचार कभी तो करो। मानव का बच्चा मानव ही होगा, जानवर का बच्चा जानवर ही होगा, पक्षी का बच्चा […]

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जोड़ने के चक्कर में मत पड़ो

Anandmurti Gurumaa : कहते-जोड़े जा रहा है, जोड़े जा रहा है और मूर्ख! मूर्ख इतनी बात नहीं समझता है जिंदगी एक पल की है। एक पल को तू थोड़े में भी गुजारा करना सीख जाए, थोड़े से भी राजी होना सीख जाए। जैसी भी दशा है उसमें रहना सीख जाए तो बोले- क्या कमी है […]

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सुख के रिश्त – आनंदमूर्ति गुरु मां

Anandmurti Gurumaa : जिसको अपना जीवन बिगाड़ना है न, वह बिगाड़ेगा ही! जो समझाने से समझ नहीं रहा हो, उसे बिगड़ने के बाद ही खुद से खुद को अकल आएगी, तो आएगी। नहीं तो, मरते दम तक भी नहीं आती कइयों को अकल! पति-पत्नी, मां-बच्चा ये जितने रिश्ते हैं, ये सब इन रिश्तों की वजह […]

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सुख की अनुभूति – आनंदमूर्ति गुरु मां

वो जरा सा सेकेंड निर्विकल्पता का। वह जो भीतर निर्विकल्पता होती है सबसे प्यारी होती है क्योंकि उसमें हम अपने मन में अपना प्रतिबिंब नहीं देख रहे, मन ही को उड़ा दिया है, सीधे-सीधे अपने आपको देख रहे हैं।

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मन की कल्पना के जाल – आनंदमूर्ति गुरु मां

सीमा में जो होगा, उसकी स्मृति हम कर सकते हैं, परमात्मा हर देश में, परमात्मा हर काल में, हर वस्तु में अनुगत है, तो एक दफे उसका बोध हो जाने पर चूंकि दूरी फिर नहीं होती तो स्मृति नहीं होगी।

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चित्त की महत्ता – आनंदमूर्ति गुरु मां

वृक्ष की जड़ को जब तक न काटा जाए वृक्ष के सिर्फ पत्ते और शाखाएं निकाल देने से वृक्ष का अन्त नहीं होता। इसी तरह जब तक मनुष्य अपने स्वरूप के मूल तक नहीं पहुंचता, ‘मैं कौन हूं इसका ज्ञान प्राप्त नहीं करता, तब तक ना अज्ञान दूर होगा और ना ही परमात्मा की प्राप्ति होगी।

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