सत्य कभी नहीं बदलता
satya kabhi nahi badalta

Life Lesson: परमात्मा कोई मान्यता नहीं है कि आज तुम मानो और कल तुम न मानो। परमात्मा एक सत्य सनातन सत्ता है, वह तुम्हारे मन की कल्पना नहीं है। परमात्मा का स्वरूप सत्ïचित्त आनंद व्यापक है। मन की कल्पनाओं के जाल में व्यक्ति इतना जकड़ा हुआ है कि उसे यह भी होश नहीं है कि जिस बात को वह सच मान रहा है, वह सिर्फ मन की मान्यता है। मान्यताओं और सच में बड़ा फर्क है। हम कोई चीज आज मान लेते हैं, कोई चीज कल मान लेते हैं, कोई चीज फिर मान लेते हैं। मान्यतायें रोज बदलती हैं, सत्य कभी नहीं बदलता। संसार के प्रति भी हमारी कुछ मान्यता है।

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एक समय में मान्यता थी कि जब-जब बादल गरजते हैं, बिजली कड़कड़ाती है, मतलब इंद्र देवता प्रसन्न है। लेकिन इस विज्ञान के युग मेें यह मान्यता नहीं रह गई। आज वह मान्यता हो गई है जो वैज्ञानिक तर्क से कहते हैं कि कोई देवता नहीं है, यह सब पाकृतिक नियम है, जिसके तहत वर्षा होती है, बिजली कड़कती है, बादल गरजते हैं, इसमें कोई भी देवता की करामात या चमत्कार नहीं है।
तुम जब तक हिंदू हो तब तक लगता है हिंदू धर्म सच है। पर किसी मुसलमान से पूछकर देखो, कहेंगे, इनसे ज्यादा काफिर और कोई नहीं है, पत्थरों को पूजते-फिरते हैं। ये तो आखिर में कयामत के रोज नर्क में जलाये जायेंगे, जो आज बुतपरस्ती करते हैं। लेकिन याद रखना इस बात को, परमात्मा कोई मान्यता नहीं है कि आज तुम मानो और कल तुम न मानो।
परमात्मा एक सत्य सनातन सत्ता है, वह तुम्हारे मन की कल्पना नहीं है। साढ़े पांच सौ साल से ऊपर गुरु नानक देव जी नहीं आए थे, कबीर नहीं थे, रविदास, मीरा जैसे लोग हुए तब इसके बाद इनकी रचनायें, इनके संप्रदाय इनके मानने वाल चल पड़े हैं। कबीर पंथी संप्रदाय, रविदासी संप्रदाय, नामदेव का संप्रदाय कितने संप्रदाय हैं।
परमात्मा से मान्यता का कोई लेना-देना नहीं है।
मान्यता से परमात्मा को कोई संबंध नहीं है। परमात्मा का स्वरूप सत्ïचित्त आनंद व्यापक है। और परमात्मा को हम अपनी मन की कल्पना से तो नहीं जान सकते। याद रहे मन किसकी कल्पना कर सकता है? और मन उसी की कल्पना कर सकता है जिसको अपनी इंद्रियों के द्वारा देखा हो, सुना हो, चखा हो, सूंघा हो, छुआ हो। किसकी कल्पना करेगा?