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जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि – आनंदमूर्ति गुरु मां

संत से सुना ज्ञान। ज्ञान को ठीक से श्रवण कर लिया तो तुम्हारे मन में बैठे इन राक्षसों की हत्या की जाएगी तो फिर संत भी कौन हो गया? मुरारी। क्योंकि तुम्हारे अन्दर वाले मुर को उसने मारा।

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सवाल सिर्फ भावना का है – आनंदमूर्ति गुरु मां

ज्ञान किसको मिले? जो श्रद्घाभाव से शरणागत हो और अपना आप समर्पित करके कहे कि ‘गुरुदेव! ज्ञान दीजिए!’ ‘उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं’ तो ही गुरु उपदेश दे। ‘ज्ञानिन: तत्त्वदर्शिन: तो ही तत्त्व का दर्शन तुमको होता है।

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ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण है – आनंदमूर्ति गुरु मां

प्रत्यक्ष प्रमाण तब होता है जब उसको शब्द रूपी बाण दिया जाए। शब्द रूपी बाण नहीं दिया जायेगा तो तुम्हारे अनुमान अनुमान ही रह जाएंगे। तब वो कभी प्रत्यक्ष अनुभव नहीं बन सकेंगे।

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स्वयं को जानों – आनंदमूर्ति गुरु मां

भक्ति मार्ग सारा जीवोऽहं के भाव पर चलता है और तत्त्वज्ञान सारा शिवोऽहं के भाव पर चलता है, आत्मोऽहं के भाव पर चलता है। सीधे शिवोऽहं की समझ न आती हो, तो आत्मोऽहं के भाव पर चलता है।

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