भगवान गणेश की महिमा
bhagwan ganesh ki mahima

Ganesh Glory: सबकी मनोरथ पूर्ण करने वाले गजानन, गणेश जी अनेक नामों से जानें जाते हैं। गणेश जी की महिमाओं का बखान करती कथाओं को आइए जानते हैं लेख से।

जब भी हम किसी शुभ कार्य की शुरुआत करते हैं तो सर्वप्रथम हम गणेश जी की पूजा अर्चना करते हैं।
बहुत ही पवित्र हृदय से हम प्रार्थना करते हैं-

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वक्रतुण्ड महाकाय: सूर्यकोटि समप्रभ:।
निर्विघ्रं कुरुमेदेव सर्वकार्येषु सर्वदा:॥

अब प्रश्न ये उठता है कि सर्वप्रथम हम गणेश जी की पूजा ही क्यों करते हैं?
एक पौराणिक कथा है एक बार सभी देवताओं में प्रतियोगिता हुई कि कौन श्रेष्ठï है, हुआ ये कि जो भी धरती और आकाश की पहली परिक्रमा कर लेगा उसे ही श्रेष्ठï घोषित किया जायेगा।
सभी देवता परिक्रमा करने चल दिये, गणेश जी ने ये विचार किया कि माता की तुलना धरती से ही की गई है और पिता की तुलना आकाश से की गई है, क्यों न मैं इन्हीं की परिक्रमा कर लूं और इन्होंने शंकर और पार्वती जी की परिक्रमा कर ली, विष्णु और ब्रह्मïा जी ने ये निर्णय दिया कि गणेश ही श्रेष्ठï हैं। इन्हें विघ्र विनाशक भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि सर्वप्रथम पूजन होने से ये मार्ग की सभी बाधाओं को दूर करते हैं।
अब प्रश्न ये उठता है कि गणेश शब्द का अर्थ क्या है?
‘गणानां जीवजतानां या ईश: स्वामी स गणेश:
अर्थात जो समस्त जीव-जाति के प्राणिमात्र ईश यानी स्वामी है।
गणेश पुराण के अनुसार जब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर से संग्राम के लिए प्रस्थान किया तब गणेश जी को पुत्र समझकर भगवान शिव ने दैवीय व्यवस्था का उल्लंघन किया तब इन्हें विघ्रों से पीड़ित होना पड़ा, यदि भगवान गणेश चाहते तो अपने माता-पिता के साथ पक्षपात कर सकते थे पर शिव-शक्ति ने गणपति पद की अनदेखी की थी इसलिए गणपति को अपने माता-पिता के विरुद्ध नियम भंग किये जाने पर कार्यवाही करनी पड़ी, गणपति ने पुत्र के रूप में अपयश अपने सिर पर ले लिया पर वे अपने कर्तव्य का पालन करने से कभी नहीं चूके।
ब्रह्मïवैवर्त पुराण में भगवान विष्णु ‘गणेश’ शब्द की दार्शनिक व्याख्या करते हुए कहते हैं-
‘ज्ञानार्थवाचको गश्च णश्च निर्वाणवाचक:।
तयोरीशं परब्रह्मïा गणेशं प्रणामाम्यह्मï॥

अर्थात ‘ग’ ज्ञानार्थवाचक और ‘ण’ निर्वाणवाचक हैं। इन दोनों (ग,ण) के जो ईश हैं उन पर ब्रह्मï गणेश को मैं प्रणाम करता हूं। संस्कृत में गण शब्द समूहवाचक माना गया है-
गण शब्द: समूहस्य वाचक: परकीर्तित:।
अत: गणपति शब्द का अर्थ हुआ ‘समूहों का पालन करने वाला परमात्मा।
एक अन्य किवदन्ती के अनुसार
‘गणानां पति गणपति:’
अर्थात देवताओं के अधिपति को गणपति कहते हैं।
एक अन्य उक्ति भी है-
‘निर्गुण- सगुण ब्रह्मïणगानां पति गणपति:।
अर्थात जो निर्गुण और सगुण दोनों रूपों में व्यस्त ब्रह्मï का अधिपति है वह परमेश्वर गणपति हैं।
ऐसा विश्वास है कि सारे संसार के नियन्ता पर ब्रह्मï परमात्मा ही गणपति हैं यह गणपति निर्गुण निराकार रूप में प्रणव (ऊं) तथा सगुण साकार रूप में गजमुख है।
गोस्वामी तुलसीदास जी ‘श्री रामचरित मानस में लिखते हैं-
‘मुनि अनुसासन गनपतिहि पूजेऊ संभु भवानि।
कोऊ सुनि संसय करै जानि अनादि जिय जानि।।

अर्थात विवाह के समय ऋषि मुनियों की आज्ञा से शिव जी और पार्वती जी ने गणेश जी का पूजन किया लेकिन गणेश जी शिव और पार्वती के पुत्र हंै तो उनका माता-पिता का परिणय से पूर्व आवाहन कैसे संभव है?
इसका उत्तर यही है कि गणेश अनादि पुरुष हैं।
शिव पुराण के अनुसार पार्वती पुत्र गणेश जी की उत्पत्ति उनकी देह में लगे उबटन से हुई थी।
ब्रह्मïवैवर्त पुराण के अनुसार-माता पार्वती को गणेश जी पुत्र के रूप में पुण्यकव्रत के फलस्वरूप प्राप्त हुए थे।
कारण जो भी हो शिव पार्वती का पुत्र बनने से पूर्व श्री गणेश निराकार प्रणव के रूप में थे।
मान्यताओं के अनुसार गणेश जी ऋद्धि-सिद्धि के पति हैं और शुभ-लाभ इनके पुत्र हैं।
सृष्टिï के पालन में जब-जब आसुरी शक्तियां संकट उत्पन्न करती हैं तब-तब श्रीगणेश उसके निवारण के लिए उपस्थित होते हैं।
गणेश जी अहंकार के शत्रु हैं-
देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर को अपने पास संचित अकूत धन-संपदा का अभिमान हो गया इस अहंकार से प्रेरित होकर वे भगवान शिव के पास पहुंचे और उनसे निवेदन करने लगे ‘महादेव’ मैं एक भव्य भोज का आयोजन कर रहा हूं उसमें देव, यक्ष, गांधर्व, किन्नर सभी लोग आमंत्रित हंै यदि आप और मां पार्वती भी वहां आयें तो अच्छा रहेगा, भगवान शिव कुबेर के मंतव्य को भांप गये और बोले हमारा प्रतिनिधत्व गणेश कर लेंगे।
निर्धारित समय पर गणेश जी पहुंचे उन्होंने पहुंचते ही कुबेर से कहा ‘मुझे भूख लगी है कृपया भोजन करा दें। कुबेर ने भोजन परोसना प्रारंभ किया पर गणेश जी सारे व्यंजन एक के बाद एक समाप्त करते गये। देखते-देखते कुबेर का कोष समाप्त होने लगा तो उन्होंने घबराहट में गणेश जी को भोजन परोसना बंद कर दिया। गणेश जी क्रोध में बोले कैसा दरिद्रों का भोज है? यहां एक का पेट नहीं भर सकता तो इतने सारे व्यक्तियों को आमंत्रित क्यों किया?
कुबेर का अहंकार चूर-चूर हो गया, उसने अपने पूर्व व्यवहार के लिए क्षमा मांगी।
सतयुग में गणेश जी ने विनायक नाम से अवतार लिया तब उनकी दस भुजाएं थीं और उनका वाहन सिंह था, सिंह ध्वज विनायक ने काशी जाकर नरांतक और देवांतक का वध करके संसार का कल्याण किया। त्रेतायुग में षडभुजी गणेश मयूर को अपना वाहन बनाने के लिए मयूरेश कहलाये इन्होंने कमलासुर तथा महादैत्य पति सिंधु को उसके असुरों सहित मार डाला।
द्वापरयुग में गजानन गणेश चतुर्भुज थे तथा मूषक उनका वाहन बना, मूषकध्वज गजानन ने सिंदूरासुर का संहार किया और राजा वरेण्य को गणेश गीता का उपदेश दिया।
भगवान गणेश को गजमुख के रूप में पूजा जाता है जो उनके निराकार परब्रह्मï स्वरूप का प्रतीक है।
गणेश जी को लम्बोदर कहा जाता है इनका बड़ा पेट उदारता और पूर्णस्वीकृति का प्रतीक है। अभय मुद्रा में उठा हाथ संरक्षण का प्रतीक है कि परेशान न हो मैं तुम्हारे साथ हूं उनका दूसरा हाथ नीचे की तरफ है और हथेली बाहर की ओर जो कहती है वे निरंतर हमें दे रहे हैं। गणेश जी का एक ही दांत है जो कि एकाग्रचित्त होने का प्रतीक है वे अपने हाथों में अंकुश लिये हुए हैं जो कि सजगता का प्रतीक है और पाश नियंत्रण का प्रतीक है। गणेश जी की सवारी मूषक है। मूषक बंधन को काटने का प्रतीक है। मूषक उस मंत्र की भांति जिस अज्ञान के बंधन ने हमें जकड़ कर रखा है यह उसे कुतर-कुतर कर समाप्त कर देता है और उस परमज्ञान की ओर ले जाता है जिसका प्रतिनिधित्व गणेश जी करते हैं।
गणेश जी संयम के देवता हंै वे मौन हैं, महाभारत की रचना करनी थी तो व्यास जी ने गणेश जी से पूरी महाभारत लिखवायी जब महाभारत पूर्ण हुआ तो व्यास जी ने गणेश जी से पूछा महाराज! मैंने चौबीस लाख शब्द बोलकर लिखवाये लेकिन आश्चर्य है कि इस बीच आप एक शब्द भी ना बोले धन्य है आप एवं आपकी लेखनी।
गणेश जी बोले हे नारायण! प्राणशक्तिरूपी तेल सभी के पास होता है पर बाती उसी की जलती है जो संयमपूर्वक उसका उपयोग करता है संयम का प्रथम सोपान है-मौन अर्थात वाकसंयम, बहुत बोलने वाली जिह्वïा अनावश्यक भी बोलती है मैं तो मौन का उपासक हूं और यह लेखनी की साधना का कारण बन सकी है।

गणेश जी को लम्बोदर कहा जाता है इनका बड़ा पेट उदारता और पूर्णस्वीकृति का प्रतीक है। गणेश जी का एक ही दांत है जो कि एकाग्रचित्त होने का प्रतीक है वे अपने हाथों में अंकुश लिये हुए हैं जो कि सजगता का प्रतीक है और पाश नियंत्रण का प्रतीक है। गणेश जी की सवारी मूषक है।