Pitru Paksha Puja: हिंदू धर्म में श्राद्ध या पितृ पूजा का विशेष महत्व है। ये पूजा अपने पितरों को प्रसन्न करने के लिए की जाती है। माना जाता है कि इस 15 दिन के अंतराल में हमारे पितृ मृत्यु लोक से हमसे मिलने के लिए आते हैं। इसलिए उन्हें तृप्त करने और सम्मान देने के लिए पितृ पूजा की जाती है। सामान्यतौर पर पितृ पूजा घर का बेटा करता है लेकिन जिन लोगों के घरों में बेटा नहीं है तो क्या वह बेटी से पूजा करवा सकते हैं। क्या बेटी अपने पिता या मां का श्राद्ध कर सकती है। जी हां, गरुण पुराण के अनुसार बेटी किसी विशेष परिस्थिति में अपने पूर्वजों की पूजा कर सकती है। लेकिन इसके कुछ नियम हैं, जिसका ध्यान रखना बेहद जरूरी है। तो चलिए जानते हैं इसके बारे में।
सीता माता ने की थी पूजा

हिंदू धर्म में बताया गया है कि माता सीता ने भी अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान किया था। शास्त्रों के अनुसार किसी पुरुष के उपस्थित न होने की स्थिति में माता सीता ने सीता कुंड के पास अपने ससुर का पिंड दान किया था। उस वक्त वहां मौजूद फूल, गाय, नदी और वृक्ष को माता सीता ने साक्षी बनाया था।
बेटियां कब कर सकती हैं पूजा
गरुण पुराण के अनुसार यदि किसी व्यक्ति के पुत्र संतान नहीं है तो ऐसी स्थिति में बेटी या महिलाएं अपनी मां या पिता का श्राद्ध कर सकती हैं। इसके अलावा पुत्र के साथ यदि पुत्री भी पिता का श्राद्ध करना चाहती है तो वह पूरी विधि-विधान से कर सकती है। वहीं यदि श्राद्ध या पिंडदान के वक्त घर में बेटा मौजूद नहीं है तब भी बेटी पूजा कर सकती है। इससे पितृ प्रसन्न होंगे और आर्शीवाद देंगे। धार्मिक ग्रंथों जैसे गरुण पुराण, मार्कंडेय पुराण और धर्मसिंधु ग्रंथ में बेटियों को तपर्ण करने का अधिकारी बताया गया है।
बेटियां इन नियमों का रखें ध्यान

– पूजा के दौरान बेटियों को सफेद या पीले रंग के कपड़े ही धारण करने चाहिए।
– पितृ पक्ष के दौरान बेटियों को अपने बाल और नाखून काटने से बचना चाहिए।
– इस दौरान महिलाओं को केवल सात्विक भोजन ही ग्रहण करना चाहिए। तामसिक भोजन करने से पितृ नाराज हो सकते हैं।
– पितृ पक्ष के दौरान ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए।
– इन दिनों गरीब और जरूरतमंदों को भोजन और वस्त्रों का दान करना चाहिए।
– इस दौरान किसी भी मांगलिक कार्य को करने की मनाही होती है।
– महिलाएं यदि किसी प्रकार का व्रत रखती हैं तो इस दौरान किए गए व्रत का लाभ नहीं मिलता।
– बेटियों को पिता या माता की आत्मा को शुद्धि के लिए ब्राह्मण को दान देना चाहिए।
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श्राद्ध की विधि
श्राद्ध का अर्थ है अपने पूर्वजों को दान करके तृप्त करना। इस पूजा के दौरान पितरों को जौ या चावल के आटे से गोलाकार पिंड तैयार किए जाते हैं। इसके अलावा पितृ पक्ष में भोजन के पांच अंश को अपने पितरों के तर्पण के लिए निकाला जाता है। माना जाता है कि इस दौरान हमारे पितृ कौआ, चींटी, कुत्ता या गाय के रूप में अपना भोजन करने आते हैं।
