एक बार एक अनुभवी न्यायाधीश के पास चोरी के एक आदी युवक को लाया गया। न्यायाधीश ने उसकी अल्पवय को देखते हुए उसे कैद में डालने या कोई और सख्त सजा देने की बजाए यह सजा दी कि वह भविष्य में सिर्फ सच ही बोलेगा। युवक बहुत खुश हुआ और इस सजा को भुगतने को तैयार हो गया क्योंकि वह बंदीगृह जाने से बच गया था।
उसी रात को अंधेरे में वह फिर से चोरी करने के लिए घर से निकला। लेकिन घर के बाहर कदम रखते ही उसे विचार आया कि यदि वह फिर से चोरी करते पकड़ा गया या फिर किसी ने उसे रात में रास्ते में देख लिया और पूछ लिया कि तुम क्या करने निकले हो, तो उसे तो सिर्फ सच और सच ही बोलना है, और ऐसे में वह यह बोल कर पकड़ा जाएगा कि वह चोरी करने जा रहा है।
वह चोर युवक न्यायाधीश के दिए दंड का पालन पूरी ईमानदारी से करना चाहता था और इससे उसकी चोरी करने की आदत ही खत्म हो गई।
सारः कई बार गैरपरंपरागत दंड अधिक कारगर सिद्ध होते हैं।
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