देश में अब तक 90 से ज्यादा शो कर चुकी फॉज़िया पहली महिला दास्तांगो हैं। फॉज़िया का मानना है कि यदि घर में बच्चों को दादा-दादी के साथ रहकर कहानी सुनने का मौका नहीं मिल रहा तो, उन्हें दास्तांगोई अनुभव करने का मौका जरूर दें क्योंकि इससे बच्चे अच्छे श्रोता बनते हैं। फॉज़िया हैं आज की हमारी गृहलक्ष्मी ऑफ द डे।

रहा कल्पना की दुनिया से अनोखा लगाव

लगभग विलुप्त होती दास्तांगोई की कला को फिर से लोगों के बीच पहुंचाने के लिए फॉज़िया जी जान से इस क्षेत्र में जुट गई हैं। वो जानती हैं कि एक दास्तांगो को सफल होने के लिए अपनी कला को कितना समय देना पड़ता है और इसलिए उन्होंने शादी भी नहीं की। फॉज़िया ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें हमेशा से ये पता था कि कल्पना की दुनिया से जो लगाव उन्हें है उसका वो कुछ रचनात्मक उपयोग जरूर करेंगी।

उर्दू साहित्य के लिए की उर्दू की पढ़ाई

अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए शुरूआत में फॉज़िया नें स्कूल में बच्चों को पढ़ाया। उन्होंने हिन्दी में एम ए किया और फिर एक एन जी ओ में  बतौर प्रोजोक्ट मैनेजर जॉइन किया, लेकिन उनको जल्दी ही समझ आ गया कि उनका दिल यहां नहीं, दास्तांगोई करना चाहता है। बस फिर क्या था दास्तांगोई के लिए उन्होंने फुल टाइम जॉब छोड़ दी। और उनके इस निर्णय में उनके परिवार ने भी उनका साथ दिया।
फॉज़िया ने स्कूल में उर्दू की पढ़ाई की थी और हमेशा उर्दू से इसलिए जुड़ी रही क्योंकि वो उर्दू साहित्य की शौकीन थी।

थी कई चुनौतयां

  • शुरूआत में बिना पर्दा किए जब स्टेज पर जाती तो लोगों को अजीब लगता।
  • बतौर दास्तांगो, पुरुष दास्तांगो से मिला कॉम्पिटीशन।
  • समाजिक दबाव का भी करना पड़ा सामना।
  • कभी शो में बहुत कम लोंगो के आने से भी होती थी पीड़ा।

 

 

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