Yamraj kee maut
Yamraj kee maut

Hindi Katha: पूर्वकाल में श्वेत नामक एक तपस्वी ब्राह्मण हुए, जो महर्षि गौतम के प्रिय मित्र थे। वे गौतमी गंगा के तट पर निवास कर भगवान् शिव के ध्यान में मग्न रहते थे। इस प्रकार, उनकी आयु शिवजी के ध्यान में बीत गई। यमदूत उन्हें ले जाने के लिए आए, किंतु वे उनके आश्रम में प्रविष्ट नहीं हो सके। जब उनकी मृत्यु का समय बीत गया, तब चित्रगुप्त ने मृत्युदेव को श्वेत के घर भेजा।

वहाँ उन्होंने देखा कि यमदूत आश्रम के द्वार पर खड़े हैं। उन्होंने इसका कारण पूछा तो वे भयभीत होकर बोले – “स्वामी ! श्वेत भगवान् शिव द्वारा रक्षित है। हम उसकी और आँख उठाकर भी नहीं देख सकते। जिस पर भगवान् महादेव प्रसन्न हो जाएँ, उन्हें भला किसी का भय रहता है । ” तब मृत्युदेव ने हाथ में फंदा लेकर स्वयं श्वेत के आश्रम में प्रवेश किया। श्वेत भक्तिपूर्वक भगवान् महादेव की पूजा कर रहे थे। उन्हें मृत्यु के आने का पता तक नहीं चला।

पाशधारी मृत्यु को खड़े देखकर श्वेत की उन्हें लौट जाने के लिए कहा। किंतु मृत्युदेव बोले इसलिए मैं इसे लेने आया हूँ। इसे लिए बिना कहकर उसने श्वेत पर फंदा फेंका। तब भैरव ने क्रुद्ध होकर दण्ड से मृत्युदेव पर प्रहार किया। वे भूमि पर गिर पड़े। दूतों ने भाग कर यमराज को सारी बात बताई।

सारी बात सुनकर यमराज बड़े क्रोधित हुए और अपने सैनिकों के साथ श्वेत के आश्रम पर पहुँच गए। उन्हें देखकर कार्त्तिकेय के नेतृत्व में शिव-पार्षद भी श्वेत की रक्षा में वहाँ आ डटे। शीघ्र ही दोनों पक्षों में युद्ध छिड़ गया। फिर देखते-ही- देखते कार्त्तिकेय ने यमराज को उनके सैनिकों सहित काल का ग्रास बना दिया। उनके मरते ही तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। शीघ्र ही वहाँ भगवान् विष्णु, ब्रह्माजी, इन्द्र, सूर्य आदि देवगण आ पहुँचे। जब उन्होंने यमराज को प्राणहीन देखा तो वे भयभीत होकर भगवान् शिव की स्तुति करते हुए बोले

-“भगवन् ! भक्त आपको सदा ही प्रिय हैं। किंतु भगवन् ! यमराज सभी देहधारियों पर नियंत्रण रखते हैं। आपने ही इन्हें धर्म और अधर्म की व्यवस्था में नियुक्त किया था। ये लोकपाल थे, अपराधी अथवा पापी नहीं। अतः आप प्रसन्न होकर इन्हें पुनर्जीवित करें। “

तब भगवान् शिव प्रकट हुए और बोले – “देवगण ! जो प्राणी मेरे अथवा भगवान् विष्णु के भक्त हैं और जो गौतमी गंगा (गोदावरी) का सेवन करते हैं, वे तत्काल लोक-परलोक के भय से मुक्त हो जाते हैं। उन पर मृत्यु का वश नहीं चलता। किंतु तुमने श्रद्धापूर्वक मेरी स्तुति की है, इसलिए मैं यमराज को पुनर्जीवित करता हूँ। नंदी ! तुम गौतमी का जल यमराज और उनके सैनिकों पर छिड़को ।

” नंदी ने उन पर गौतमी का जल छिड़का। इससे वे पुनर्जीवित हो गए । फिर यमराज भगवान् शिव की स्तुति कर अपने लोक लौट गए।

यमराज जहाँ मृत होकर गिरे थे, वह स्थान मृत्यु तीर्थ कहलाने लगा। इस तीर्थ में स्नान और दान करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है।