raja shwet
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Hindi Katha: सत्युग में श्वेत नामक एक प्रसिद्ध और प्रतापी राजा हुए। वे बड़े बुद्धिमान, धर्मज्ञ, शूरवीर और सत्य – प्रतिज्ञ थे। उनके राज्य में प्रजा सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करती थी।

एक बार कपाल गौतम नामक एक धर्मात्मा ऋषि का पुत्र दैववश दो वर्ष की आयु में ही काल का ग्रास बन गया। वे उसे लेकर राजा श्वेत के पास आए और बोले .” राजन ! राजा का कर्त्तव्य अपनी प्रजा के दुःख का अंत करना होता है। इस समय पुत्र की मृत्यु से मैं अत्यंत शोकातुर हूँ, इसलिए आप मेरे इस दुःख का अंत करें। यह मेरा एकमात्र आश्रय था। आप कृपया इसे पुनर्जीवित करने का कोई उपाय करें, अन्यथा मैं यहीं प्राण त्याग दूँगा।”

श्वेत बोले -“मुनिवर ! आप निश्चित रहें। मैं अपना कर्त्तव्य भली-भाँति पूर्ण करूँगा। मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि यदि मैं इस बालक को सात दिन के भीतर पुनर्जीवित न कर सका तो चिता में प्रवेश कर प्राण त्याग दूँगा । “

इसके बाद श्वेत ने एक लाख नील-कमलों द्वारा भगवान् महादेव की पूजा कर उनके मंत्र का जप आरम्भ कर दिया । उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान् महादेव भगवती पार्वती के साथ साक्षात् प्रकट हुए और श्वेत से इच्छित वर माँगने को कहा।

श्वेत बोले – “प्रभु ! मैंने इस ब्राह्मण – बालक को पुनर्जीवित करने की प्रतिज्ञा की है । यदि आप मुझे वर देना चाहते हैं तो इस बालक को जीवन प्रदान करें।” उनकी बात सुनकर भगवान् शिव बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने काल को आदेश देकर उस बालक को पुनर्जीवित कर दिया। इसके बाद वे श्वेत को आशीर्वाद देकर अंतर्धान हो गए। तदंतर श्वेत ने हज़ारों वर्षों तक शांतिपूर्वक राज्य किया।

एक बार भगवान् विष्णु की आराधना करने का निश्चय कर वे दक्षिण दिशा में पुरुषोत्तम क्षेत्र में गए। वहाँ उन्होंने भगवान् जगन्नाथ के निकट ही एक श्वेत शिला द्वारा भगवान् श्वेतमाधव की प्रतिमा स्थापित कर ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दी। फिर निराहार रहकर भगवान् विष्णु की आराधना करने लगे ।

उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान् श्रीहरि साक्षात् प्रकट हुए। तब राजा श्वेत ने उन्हें प्रणाम किया और बोले भगवन् ! मैं जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर आपके परमधाम को प्राप्त करना चाहता हूँ। कृपया आप मेरी यह इच्छा पूर्ण करें। “

भगवान् विष्णु बोले ” राजन ! देवगण और बड़े-बड़े ऋषि-मुनिगण भी जिस पद को प्राप्त नहीं कर सकते, मेरी कृपा से वह तुम्हें अवश्य प्राप्त होगा । वत्स श्वेत ! तुमने यहाँ श्रद्धापूर्वक भक्ति कर मेरे दर्शन प्राप्त किए हैं, इसलिए यह स्थान श्वेतगंगा नाम से प्रसिद्ध होगा और मैं इस स्थान पर सदा निवास करूँगा। जो भी व्यक्ति यहाँ स्नान करेगा, उसे मेरा परम धाम प्राप्त होगा । ” यह कहकर भगवान् विष्णु अंतर्धान हो गए।

उनकी कृपा से राजा श्वेत को मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त हुआ।