vo photo wali ladki
vo photo wali ladki

Best Hindi Story: मैं लौट रहा था वापिस अपने गांव उसके दिए हुए सभी प्रेमपत्र और उपहार अपने साथ लिए। जाते समय उससे मिल भी ना सका, जानता हूं मैंने ठीक नहीं किया। प्यार किया था और करता हूं उससे बेइंतहा। तभी तो जा रहा हूं उसका शहर छोड़ कर।

खिड़की से बाहर पेड़ों को भागते देख रहा था, मैं भी तो भागता ही रहा हूं इन्हीं पेड़ों की तरह हमेशा। जानता हूं पेड़ तो वहीं हैं वो नहीं भाग रहे, यह ट्रेन दौड़ रही है और उसके साथ मैं भी अपने प्यार से दूर जा रहा हूं। अचानक मेरी तंद्रा भंग हुई जब टीटी ने मेरा नाम पुकारा…

‘हैलो मिस्टर सावंत मिश्रा आप ही हैं, कब से आवाज लगा रहा हूं मैं आपको, और आप हैं कि दूसरी ही दुनिया में खोए हुए हैं। चलिए टिकट दिखाइए।
‘जी सर…
मैंने अपने जैकेट की जेब में रखे वॉलेट को निकाल उसमें से टिकट निकाली तो उसके साथ ही कुछ गिरा, मैंने झुककर उठाया। प्रिया की पासपोर्ट साइज फोटो ठीक मेरे पैरों के बीचों-बीच गिरी थी जो मैं हमेशा अपने साथ रखता हूं। उसे झुककर मैंने उठाया तो लगा वो मेरे पैर पकड़ कर मुझे रोक रही है।

‘मत जाओ सावंत मुझे छोड़कर। उस फोटो पर उसके हस्ताक्षर प्रियंका ठाकुर काले पेन से अभी भी चमक रहे थे। मैंने फोटो को अपनी कमीज की आस्तीन से साफ किया और उसे चूमे बिना नहीं रह सका। दूर जा रहा था मैं उसकी जिंदगी से पर उसकी यादों और उसकी खुशबू को सीने से लगाए।

टीटी जा चुका था। बगल वाली सीट में बैठे लोग मुझे अजीब नजरों से देख रहे थे जैसे मैं दूसरे ग्रह का प्राणी हूं। हफ्ते भर से अन्न का निवाला मुंह में नहीं लिया था, जब से उससे दूर होने का फैसला किया। मैं उसे वो जिंदगी नहीं दे सकता जिसकी वो हकदार हैं, सिर्फ प्यार से पेट नहीं भरता, यह अच्छे से जानता हूं। जिंदगी में और भी
बहुत सी जरूरतें होती हैं जो मैं पूरी नहीं कर पाऊंगा। वो शहर में पली-बढ़ी है। मैं उसके काबिल नहीं हूं। मैं खुद को कोस रहा था।
क्यों मैं दोबारा उससे मिला, जब हम एक हो ही नहीं सकते थे। यह समाज यह दुनिया हमें कभी एक-दूसरे का होने ही नहीं देगी। क्यों उसके मन में दोबारा प्रेम पनपा। वो तो मेरा चेहरा इन चौदह सालों में भूल ही गई थी, एक मैं कभी उसके चेहरे को भूल ही नहीं पाया।

पहली बार जब हम मिले थे अपने ननिहाल में तो मैं तेरह साल का और वो ग्यारह साल की ही तो थी। वो छह महीने उसके साथ जो बिताए, उस समय प्यार क्या होता है नहीं जानता था। वो भी तो बिल्कुल अनजान थी, प्यार शब्द से। बस खेल-खेल में हमेशा कहता तुझसे शादी करूंगा तो वो मेरा हाथ अपने सिर पर रखकर कहती, ‘प्रॉमिस करो मुझसे शादी करोगे।

‘अच्छा मेरी प्रिया…पक्का प्रॉमिस। पर सोच ले तुझे इंतजार करना होगा जब तू अठारह साल की और मैं इक्कीस साल का हो जाऊंगा तब हम शादी करेंगे।’ वो खुश हो जाती थी। किशोरावस्था में होते शारीरिक बदलाव हम
दोनों को एक-दूसरे के पास ला रहे थे। मुझे वैसा नहीं करना चाहिए था जैसा उस दिन किया था जब उसकी जिद्द पर मैं उसे तालाब में तैरना सिखा रहा था और उसकी फ्राक का बटन खुल गया था जिसे बंद करते
वक्त उसे अपनी बाहों में समेट लिया था। फिर तो रोज हम इसी तरह एक-दूसरे के साथ समय बिताते।

एक-दूसरे से बातें करते-करते अपने भविष्य को लेकर कितने सपने सजाने लगे थे हम। उसके मम्मी पापा उसे उसके मामा गांव में छोड़ आए थे जो कि मेरी मम्मी का ननिहाल था। मैं भी अपनी मम्मी के साथ आया था पर जिद्द करके वहीं रुक गया था। जब मेरे पापा जबरदस्ती मुझे वहां से अपने साथ ले जाने लगे तो मैं बहुत रोया था। ‘लड़के रोते नहीं हैं।’ मुझसे कहा और दरवाजे के पीछे जाकर खूब रोई थी वो।
उसकी सिसकियां अपने साथ ले गया था। पापा के साथ घर आने के बाद पढ़ाई में बिलकुल मन नहीं लगता था। दिन भर उसका चेहरा और उसके साथ बिताए हर पल मेरी आंखों के सामने घूमते रहते।

मैं अपने अतीत में विचर रहा था और इस बात से अनजान था कि कब से वो लड़का जो मेरे पास ही बैठा था, मेरे हाथ में रखी मेरी प्रिया की फोटो को घूर रहा था। मेरे कंधे पर हाथ रखकर बोला, ‘कौन है भाई यह लड़की, जिसकी फोटो को एकटक देख रहे हो।’

मन किया उसे जोरदार चांटा मारूं, पर मुठ्ठी भींच कर रह गया। फोटो को वापस वॉलेट में रखा और वॉलेट को अपनी जेब में। उसने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘मेरा नाम सुशांत सिंह है, मैं दिल्ली में रहता हूं और अपनी बहन से मिलने उसके ससुराल जा रहा हूं।’
वो लड़का अपने बारे में बताए जा रहा था और मेरा किसी से बात करने का बिलकुल भी मन नहीं कर रहा था।
वो मेरी बगल में बैठा लड़का लगातार मुझसे बात करने की कोशिश में लगा हुआ था।
‘बड़े भाई आप अकेले हैं, कहां जा रहें हैं?’
मैं अपनी मन:स्थिति पर काबू पाने की भरसक कोशिश कर उससे बात करने लगा। ‘गया जा रहे हैं हम अपने घर, अपने माता-पिता के पास। ‘चलिए अच्छा है रास्ता आसानी से कट जाएगा। माफ कीजिएगा अगर मेरी कोई बात बुरी लगे तो, असल में मैं चुप रह ही नहीं सकता।

मैंने खिड़की से नजर हटा उसके चेहरे की तरफ देखा, बीस-इक्कीस साल का होगा, गोरे चेहरे पर हल्की काली मूंछें जंच रही थी। सभी चिंताओं परेशानियों से मुक्त लग रहा था। उसे देखकर लग रहा था कि प्रेम
का बुखार उसे अभी तक चढ़ा नहीं है। चाय…गरम चाय… की आवाज सुन उसने चाय वाले को पुकारा और दो कप चाय ली। एक कप मेरी तरफ बढ़ाई, मैंने मना किया पर उसने जबरदस्ती मेरे हाथ में पकड़ा
दिया।
‘भाई आपको चाय की जरूरत है अभी, यह आपको देखकर लग रहा है। मैंने चाय की एक घूंट पी तो लगा निष्प्राण शरीर में जान आ गई।
उसने चाय पीने के बाद अपनी पॉकेट की जेब से सिगरेट का पैकेट निकाला और मेरी तरफ बढ़ाया, ‘हर गम को धुंए में उड़ा दीजिए भाइजी।

हाथ से सिगरेट के लिए नहीं का इशारा किया। मैंने खुद से प्रण किया नशे से दूर रहना है। मैंने अपनी आस्तीन से आंसू पोंछे तो वो मुस्कुरा दिया। ‘आप रोते हैं भाई, लड़का होकर।
उसके यह शब्द प्रिया की याद दिला गया, ऐसे ही तो वो मुझे बोलती थी, जब भी मुझे रोता देखती। मेरी वो रोने की आदत अभी तक नहीं छूटी। उसकी याद में बहुत रोया हूं और शायद जिंदगी भर रोता ही रहूंगा। थोड़ी देर बात करने के बाद, अपने साथ लाया हुआ खाना खाया, जबरदस्ती मुझे भी खिलाया। फिर स्लीपर की
सीट खोलकर वो गहरी नींद में सो गया। नींद मुझसे कोसों दूर थी। सारे यात्री सो रहे थे और मैं जाग रहा था, मैंने इधर- उधर देखा कोई मुझे घूर तो नहीं रहा और प्रिया की फोटो निकाल उसे देखने लगा।

और वो दिन याद करने लगा जिस दिन यह फोटो उसने मुझे दी थी। उसके उस एडमिट कार्ड में लगी थी यह फोटो जो एक सरकारी नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षा देने के लिए वो घर से आई थी और सारा दिन मेरे साथ पार्क में रही। मुझे दिन भर बताया ही नहीं कि मेरे साथ समय बिताने के लिए उसने वो परीक्षा नहीं दी। शाम को
जाते वक्त अपने बैग से एडमिट कार्ड निकाल यह फोटो उसमें से निकाल कर मुझे देते हुए बोली, ‘मेरे इंतजार की परीक्षा का परिणाम मिल गया, तुम लौट आए मेरे जीवन में दुबारा। अब किसी परीक्षा की जरूरत नहीं है। अब हमेशा इसे अपने पास रखना।’

शाम को पार्क से निकल वो मुझे पीरागढ़ी के उस प्रसिद्ध काली मंदिर पर ले गई जहां से गुजरते वक्त वो हमेशा मेरी सलामती और वापसी की प्रार्थना करती थी। वहीं पीपल के पेड़ पर उसने मन्नत का धागा बांधा था। अपने हाथ फैलाकर मंदिर में चढ़ाने के लिए मुझसे पैसे मांगे। मैंने उसे कहा भी था हम शादी कर लेते हैं इस मंदिर पर। लेकिन वो नहीं मानी। बड़ी हो गई थी और समझदार भी। शादी परिवार वालों की मर्जी से ही करेंगे। मैं जानता था उसके परिवार वाले कभी हमारी शादी के लिए हां कर ही नहीं सकते। मैं सातवीं फेल और वो इंग्लिश में एम ए पास और दूर के रिश्ते में मेरी मौसी लगती थी।

पापा के साथ घर आने के कुछ दिन बाद जब पढ़ाई में मन नहीं लगता था और अपनी वार्षिक परीक्षा में फेल हो गया तो पिताजी ने बहुत मारा और मैं उस रात घर से भाग गया अपनी प्रिया से मिलने के लिए। गांव गया
तो पता चला प्रिया दिल्ली चली गई है अपने घर।

गांव से मैं सीधा रेलवे स्टेशन गया और दिल्ली जाने वाली ट्रेन में बैठ गया। घर से निकलते वक्त पापा की जेब से सौ का नोट रख लिया था अपने पास। दिल्ली बिना टिकट के ही जैसे तैसे पहुंच गया, यहां आकर क्या करूंगा कहां जाऊंगा कुछ पता नहीं था। प्रिया के भाई का टैंट हाउस है बस इतना ही जानता था, उसके भाई को कभी देखा भी नहीं था। इतनी बड़ी दिल्ली में कहां ढूंढूंगा प्रिया को। खुद पर गुस्सा आ रहा था कि कभी उससे उसके घर का पता क्यों नहीं मांगा। दिल्ली स्टेशन पर उतरने के बाद समझ ही नहीं आ रहा था किधर जाऊं। साढ़े तेरह साल का ही तो था मैं तब, जिस उम्र में बच्चे स्कूल और खेलकूद में अपना जीवन बिताते हैं, मुझे काम की तलाश करनी पड़ी। वो डेढ़ सौ रुपये और मम्मी की नानी का दिया हुआ खाना तीन दिन ही चला। प्रिया को ढूंढना है उसके पास जाना है उसके लिए जिंदा रहना जरूरी था और खाने का इंतजाम करना भी जरूरी था।
स्टेशन से पैदल चलते-चलते ही बंगला साहिब गुरुद्वारे पहुंच गया जहां मथा टेककर लंगर खाया। दिन के दो समय का खाने का इंतजाम हो गया। गुरुद्वारे में साफ सफाई भी करता।

उम्मीद थी कि कभी तो प्रिया इस गुरुद्वारे में आएगी। आई थी अपने परिवार के साथ, मैंने उसकी एक झलक देखी और उसके बाद वो भीड़ में खो गई। सभी चेहरों में मैं उसे ढूंढता।

गुरुद्वारे में हमेशा तो रहा नहीं जा सकता था सब मुझसे मेरे परिवार वालों के बारे में पूछते। कई बार मुझे पुलिस के हवाले करने की धमकी मिली तो वहां से भी भागना पड़ा और काम की तलाश में दिल्ली से कभी हरियाणा तो कभी पंजाब। कभी किसी चाय की टपरी पर काम किया तो कभी किसी टैंट हाउस में वेटर का काम किया। बोझा ढोया, मजदूरी की और गाड़ी चलानी भी सीखी। उसके प्यार ने मुझे जीना सिखा दिया था। एक दिन उसे पा कर रहूंगा मन में विश्वास था। यह दुनिया गोल है, कभी ना कभी तो वो मुझे मिलेगी ही।
समय बीतता रहा मैं वापस दिल्ली आया। एक दिन दिल्ली युनिवॢसटी के पास से गुजर रहा था, प्रिया को उसकी सहेलियों के साथ देखते ही पहचान गया। इतने सालों बाद देखा था उसे, उसका पीछा किया और
उसके घर का पता आखिर मुझे मिल ही गया।

फिर एक दिन मैं उसके घर पहुंच ही गया, उसकी मम्मी बहुत खुश हुई मुझे देखकर। मैं सालों पहले घर से भाग गया था यह खबर उन्हें भी मिली थी। मुझे सही सलामत देखकर उनके खुशी के आंसू नहीं रुक रहे
थे। उनको देखकर मुझे अपनी मां की याद आ गई। वो भी तो कितना रोती होंगी मेरे लिए। प्रिया उस समय घर पर नहीं थी। मैं काफी देर बैठा रहा, फिर लगा आज भी नहीं मिल पाऊंगा पर उसके घर का पता मिल गया था और उसकी मम्मी का मन जीत लिया था तो कभी भी आ जाऊंगा सोचकर निकल ही रहा था कि वो सांवली सी वो लड़की बिल्कुल वैसी ही जैसी पहले थी, बस कद बढ़ गया था उसका। यौवन का निखार चेहरे और शरीर पर झलक रहा था। कंधे पर बैग टांगे और हाथ में फाइल थामे मुझसे टकराई।

Best Hindi Story
Wo photo wali ladki

‘ऊफ्फ, देखकर नहीं चल सकता, पता नहीं भईया के वर्कस को अक्ल कब आएगी। कैसे-कैसे लोगों को काम पर रख लेते हैं।’
मैं संभलते हुए जमीन पर बैठ गया था और उसे देखे जा रहा था और वो मुझे डांटती जा रही थी। तभी उसकी मम्मी ने मुझे जमीन पर से उठाया और प्रिया पर हाथ उठाते हुए बोली, ‘तुझसे कितनी बार कहा है बाहर का गुस्सा बाहर छोड़कर आया कर।’ ‘गलती मेरी नहीं इसकी है।’ ‘जानती है कौन है यह जिस पर तू चिल्ला
रही है। शांति का बेटा सावंत है जिसे सालों से उसके मम्मी पापा ढूंढ रहे थे। आज पहली बार अपने घर आया है। अभी तेरे बारे में ही पूछ रहा था और तूने आते ही चिल्लाना शुरू कर दिया।
प्रिया ने कान पकड़ कर उठक-बैठक की और माफी मांगने लगी। अपनी मम्मी के वहां से जाते ही मेरे गले लग गई फिर मेरे सीने पर घूंसो की बौछार कर दी। ‘कहां चले गए थे। हम सब कितना परेशान थे तुम्हारे लिए। हर
मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे पर तेरी सलामती की दुआ मांगी है।

‘हम सब परेशान थे, यानी तू भी, याद हूं मैं तुझे। ‘भूल जाऊंगी, तुझे ऐसा हो ही नहीं सकता था। पर रियली सॉरी
आज भी काली मंदिर में जब तेरी सलामती के लिए प्रार्थना कर रही थी तो बहुत गुस्सा आ रहा था, कोई देवी-देवता मेरी पुकार नहीं सुन रहे।’
‘कैसे नहीं सुनी, देख आज तेरे सामने हूं। बस तूने पहचाना नहीं।’ मैंने फिर मिलने का वादा किया और चला
तो गया वहां से पर उसकी आंखों में अपने लिए प्यार देख लिया था। तब रोज वो मुझसे मिलने के बहाने ढूंढती,
हम घंटों युनिवॢसटी के आसपास घूमते, पार्क में बैठते।

उसने मुझे खूब डांटा जब मैंने बताया कि पढ़ाई छोड़कर भागा था और दुबारा कभी स्कूल में एडमिशन लिया ही नहीं।

‘तुमसे बहुत प्यार करती हूं सावंत। तुम्हारे साथ हर हाल में खुश रहूंगी। तुमने गलत कदम उठाया था घर छोड़कर पर अब भी तुम्हारे परिवार वाले तुम्हारा इंतजार कर रहे होंगे। तुम्हें एक बार उनके पास जाना चाहिए।’
मैं साल भर उसकी बातों को टालता रहा कि तुझे ब्याह कर ही ले जाऊंगा। उसके भाई को पता चल गया था कि वो मुझसे प्यार करती है, पार्क में एक साथ हमें देख लिया था उसने। उसे वहां से खींचते हुए अपनी गाड़ी में बिठा दिया और मेरी खूब पिटाई की।

‘उसकी जिंदगी से हमेशा के दूर रहना वरना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।’ मुझे मार का डर नहीं था, अपनी मौत से भी नहीं डरता था पर प्रिया को मेरे कारण घर में कैद कर दिया और उसकी शादी की बात चल रही है। उसने उस दिन के बाद कई बार मुझसे फोन पर कहा, ‘सावंत भाग चलते हैं यहां से। हम किसी दूसरे शहर चले
जाएंगे जहां कोई हमें नहीं जानता होगा।’ मैंने नहीं मानी उसकी वो बात, क्योंकि जानता हूं उसने इतने साल अपनी पढ़ाई में बहुत मेहनत की है। उसके माता-पिता ने उसकी पढ़ाई-लिखाई पर बहुत खर्च किया है। मैंने अपने माता-पिता को कष्ट दिया अब प्रिया के भागने से उसके परिवार की बदनामी होगी, साथ ही मेरी प्रिया बदनाम हो जाएगी। प्यार किया है उससे, उसे बदनाम नहीं कर सकता। मैं तो भागता ही रहा हूं अकेले और अभी भी भाग रहा हूं। बीस साल बाद, वो मुझे ढूंढते हुए अपने ननिहाल आ गई है। मेरे बारे में सबसे पूछ रही है। मैं वहीं हूं उसे देख रहा हूं उसकी बातें सुन रहा हूं, पर वो मुझे अब नहीं देख सकती। उसके माथे पर चमकती लाल बिंदी और सिंदूर बता रहा है कि वो शादीशुदा है। मैं देख रहा हूं वो लाल साड़ी पहने तालाब
के किनारे बैठी कंकड़ फैंक रही है। मैं भी उसके पास आकर बैठ गया। शायद उसे एहसास हो गया, वो बुदबुदा रही है, सावंत कहां हो तुम।

मैं यहीं हूं प्रिया तुम्हारे पास। तुम किसी और की हो अब पर मैं तुम्हारे सिवाय हो ही नहीं सका किसी का।
‘सावंत तुम जहां भी हो, क्या सुन रहे हो मुझे, मेरे तन पर चाहे मेरे पति का अधिकार है पर मन पर आज भी तुम्हारा ही अधिकार है। पर अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों से भागना प्रेम है क्या? मैं जब घर पहुंचा तो मेरे मम्मी पापा बहुत खुश हुए थे उनकी खुशी को देखते हुए उनकी मर्जी से शादी भी कर ली थी मैंने पर कभी उसे पत्नी के रूप में स्वीकार ही नहीं पाया था। अपनी खुशियों का गला तो पहले ही घोंट दिया था और एक रात जब पत्नी सवाल पर सवाल कर रही थी कि जब संबंध बनाना ही नहीं था तो शादी क्यों कि और मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी। मैंने उसी रात मौत को गले लगा लिया। मेरी आत्मा आज भी मम्मी के ननिहाल में भटक रही है।
प्यार करने वाले कभी मरते नहीं। सिर्फ फिल्मों में होता है।

Hindi Kahani
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मेरी प्रिया अपने जीवन में खुश रहे और मेरी भटकती इस रूह को मुक्ति मिले। वो अपनी सभी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को पूरा करती रहे। हम इस जन्म भले एक ना हो सके पर शायद अगले जन्म तुम मेरी हो
जाओ। तुम्हारी तस्वीर तो मेरी आत्मा में बसी है जिसे कोई मुझसे नहीं छीन सकता।

समय बीतता रहा मैं वापस दिल्ली आया। एक दिन दिल्ली युनिवॢसटी के पास से गुजर रहा था, प्रिया को उसकी सहेलियों के साथ देखते ही पहचान गया। इतने सालों बाद देखा था उसे।