अंततः वह उठी और योग मुद्रा में बैठ गयी । ब्रह्म मुहूर्त का समय था । बहुत ही अच्छा  लग रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वह स्वयं भगवान की ही गोद में बैठी हो और भगवान स्वयं उसका माथा सहला रहे हों । वह सोच रही थी कितनी भाग्यशाली हूं मैं कि परम पिता परमात्मा की  गोद में विश्राम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । जिस ईश्वर को सब ढूंढते हैं मैं उनके साथ हूं। इससे अधिक सौभाग्य मेरे लिए क्या हो सकता है।

वीरा एक सरल प्रकृति की महिला थी। बचपन से ही उसमें सेवा स्नेह के संस्कार थे । अच्छे संस्कार उसे अपने माता पिता से विरासत में मिले थे । यही कारण था कि वह सभी रिश्तेदारों अवं मित्र समुदाय में अत्यंत प्रिय थी । भगवान ने शायद उसे सेवा के लिए ही इस धरती पर भेजा था ।

व्यवसाय से भी वह एक शिक्षिका थी और अपने विद्यार्थियों से वह माता सामान स्नेह करती थी । तन मन धन से उनके काम आना ही उसके जीवन का ध्येय था। ईश्वर की भी उस पर असीम कृपा थी। उसके मन में आये हर संकल्प को भी वह पूरा करते थे । कभी किसी प्रकार का आभाव नहीं था । जब भी कोई उससे मिलता वह बड़े ही उत्साह से मिलती थी। हर कोई कहता आपसे मिलकर तो बहुत ही शांति और ख़ुशी अनुभव होती है। आपके घर आ कर ऐसा लगता है मानो किसी अपने प्रिय के घर आये हों। प्रायः लोग उससे उसकी इस निश्चिंतता का रहस्य पूछते तो मुस्कुरा कर कहती मैं किसी भी स्थिति में क्यूं नहीं कहती। मानती हूं कि जो भी होता है बस अच्छा ही होता है। हर बात में कल्याण होता है. हमारी हर समस्या हमें सिखाती है और मजबूत बनाती है। मुश्किलें जीवन गति को रोकने के लिये नहीं अपितु और कर्मठता से बढ़ने के लिए आह्वान देती हैं।

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