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गृहलक्ष्मी की कहानियां : गुमराह बच्चे

सुबह के नौ बजे थे। स्कूल के गेट के पास चार-पांच लड़कियां सजी धजी सी खड़ी थी और बार बार सड़क की तरफ देख रही थी मानो किसी की राह देख रही हों। आज स्कूल में बच्चों की छुट्टी थी और बच्चों को स्कूल नहीं आना था। इतने में उन्होंने मैडम की गाड़ी आती देखी तो इधर उधर छुपने लगी। मैडम ने उन्हें देख लिया था।

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मज़ाक  – गृहलक्ष्मी कहानियां

विनय आठवीं कक्षा का विद्यार्थी था। वह बहुत तेज तर्रार और शरारती लड़का था। सदा कुछ न कुछ शरारत करता ही रहता था, परन्तु कभी भी पकड़ा नहीं जाता था। उल्टा उसके कारण दूसरों को डाट पड़ जाती थी। एक दिन उसने अपने एक मित्र सुरेश की साइकिल के टायर में पिन चुभो दिया।

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वीरा या प्रेरणा – गृहलक्ष्मी कहानियां

सुबह शायद चार बजे थे वीरा को नींद नहीं आ रही थी । बार बार सोने की कोशिश करती, पर नींद थी कि उसका दूर दूर तक कहीं पता न था । मन में अनेक संकल्प चल रहे थे कि उठ कर कुछ पढ़ लूं या कुछ व्यायाम ही कर लूं। वीरा को सुबह सुबह प्राणायाम करने की आदत थी । पिछले तीस सालों से यह सिलसिला चालू था । पर अभी तो रात के दो ही बजे थे। इतनी सुबह उठ गयी तो दिन भर थकावट लगती रहेगी । यही सोच बिस्तर पर पिछले एक घंटे से करवटें बदल रही थी ।