vachansiddh khaki maharaj
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

गरांबडी गांव में रामगोधा के नाम के मानो सिक्के पडते थे। रामगोधा आहीर याने सिरफिरा आदमी। पैसे के मामले में समृद्ध। नास्तिक था और बुद्धि में भी थोडी-बहुत दुष्टता थी। दुर्गुणों के इस भंडार रामगोधा के यहां सम्पत्ति और स्त्री और नेतृत्व आदि था लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी। खुद को कोई वस्तु पसंद आ जाये तो कुछ भी करके प्राप्त करने वाला रामगोधा संतान के लिए तो किसके ऊपर जुल्म करें? जो भगवान उसे कहीं मिल जायें तो उसे भी सजा कर उसके पास से भी पुत्र प्राप्त कर ले…!

राम गोधा ने अपनी शक्ति से हो सके इतने प्रयास कर देखे। लेकिन ललाट पर लिखी हुई रेखाएं किसी भी तरह से वह भंस न सका तब उसे यह दर्द असह्य हो गया। हताश हुए राम गोधा को एक बार किसी ने कहा-” कटाव में एक खाखी महाराज रहेते है। वे वचनसिद्ध पुरुष है। तुम्हारी इच्छा वे पूर्ण करेंगे।

रामगोधा को लगा कि यह उपाय भी आजमा लिया जाए। और वह कटाव जाने को तैयार हुआ। खाखी महाराज आंखें बंद कर घंटों तक गहरे ध्यान में उतर जाते, उस वक्त अनेक लोग उनकी सेवा में बैठ कर उनके आशीष की प्रतीक्षा करते रहते। महाराज के दर्शन कर कृतार्थ हुए लोगों को महाराज के मौन मुखारविंद से आशीर्वाद मिले। कभी-कभार महाराज उपदेश भी दे। बातचीत भी करे। लेकिन ज्यादातर वे मौन रहना ही पसंद करते।… रामगोधा भी नियमित रूप से वहां आने-जाने लगा। महाराज की सेवा भी करने लगा। लेकिन महाराज से संतान मांगने की हिम्मत उससे नहीं होती थी। रामगोधा जैसा बुरा आदमी भी महाराज का भक्त बन गया। यह देखकर सभी लोग आश्चर्य का अनुभव कर रहे थे। रामगोधा हर रोज महाराज के दर्शन करने आता था और महाराज की सेवा करता रहता था। स्वयं महाराज को भी आश्चर्य होता था। एक बार राम गोधा जब दर्शन कर चले गये तब महाराज ने पास में बैठे हुए मेघराज पटेल से पूछा- “रामगोधा मेरी इतनी सेवा करता है, इसका क्या कारण है?” खाखी महाराज हिंदी में ही बोलते थे। उनका वतन अयोध्या था। अयोध्या से वे ढीमा धरणीधर भगवान के दर्शन करने आये थे और पास ही के जंगल में बैठ पर बरसों तक तप किया था। और मौन ही रखा था। अभी थोडे से बरसों से वे थोडा-सा बोल लेते थे और वह भी उपदेश के आशय से। मेघराज पटेल ने बताया- “राम गोध नी को पुत्र नहीं है। इसीलिए वह आपकी सेवा करता है।”

  • “मुझे भी लगा। ऐसा स्वार्थी मनुष्य बिना किसी मतलब के इतनी सेवा नहीं कर सकता।”

उधर उपस्थित लोगों ने भी मेघराज पटेल की बात का समर्थन किया। हर रोज सुबह-शाम महाराज के दर्शन के लिए आने वाले रामगोधा अगले दिन जब आया, तब महाराज के मुंह पर स्मित आ गया। स्वार्थी मनुष्य स्वार्थ की पूर्ति के लिए कैसा कैसा करता है। इतना प्रयास तो अगर भगवान के लिए करें तो?…उसने आहिस्ता से रामगोधा से कहा- “भाई! मैंने सुना है आपके पुत्र नहीं है?” योगीराज के मुंह से अपने अंतर की बात सुनकर यह देख कर रामगोधा का हृदय आनंद से पुलकित हो गया।

– “हां महाराज! इस पापी के पुत्र नहीं है। अगर आपकी कृपा हो जायें तो..!”

खाखी महाराज ने हंसते हुए कहा-“किसी पुण्य से अगर तुम्हें पुत्र की प्राप्ति हो जाये तो तुम क्या करो?”

“तो महाराज, आप जो आज्ञा करो उस मुताबिक करने को तैयार हूं।” खुशी से झूम कर रामगोधा ने कहा।

  • “मतलबी मनुष्य मतलब पूरा हो जाने पर अपना वचन पूरा नहीं करता!” खाखी महाराज ने कहा।
  • “अरे, अरे बापू! आप भी मुझे दूसरे लोगों की तरह नीच समझते हो?” लेकिन.. मैं आपकी आज्ञा के वश रहूंगा।”
  • ” तो… फिर मैं जो बात कहूंगा, उसका दृढ़तापूर्वक पालन करोगे?”
  • “हां… सच में!” रामगोधा ने विश्वास दिलाया। खाखी महाराज ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा- “आज से दस महिनों के बाद तुम्हें पुत्रदर्शन का सुख प्राप्त होगा। लेकिन जिस दिन पुत्र का जन्म हो, उस दिन ही हमारे भगवान को निवास करने के लिए एक मंदिर बनवा देना।” रामगोधा के हर्ष का ठिकाना न रहा। बारम्बार उसने महाराज के चरणस्पर्श किये और यह शुभ समाचार घर तक पहुंचाने के लिए वह दौडा। जाते-जाते खाखी महाराज ने उसे याद दिलाया- “देखो रामा! नियमपूर्वक पति और पत्नी नित्य ही एक घण्टा प्रभुनाम कीर्तन करना। और मैंने जो बात कहीं वह न भुलना। यदि मेरी बातों का उल्लघंन किया तो उसका परिणाम तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।”

ऐसा वचन सत्य है कि देव और ऋषियों की वाणी कभी भी व्यर्थ नहीं जाती। ठीक दशवे महिने में रामगोधा आहिर के यहां चांद का टुकडा जैसा पुत्र पैदा हुआ। पुत्रजन्म की खुशी में रामगोधा ने अपने गांव में सभी को मिठाई खिलायी। लेकिन वह खाखी महाराज वाली बात तो भूल ही गया। हर रोज महाराज के दर्शन के लिए आता था। एक दिन महाराज ने हंसते हुए कहा- “क्यों! तुम्हें पुत्र प्राप्ति तो हो गई लेकिन तुमने अपनी बात अभी तक पूरी नहीं की। क्या वह बात भूल गये?”

  • “नहीं ..नहीं.. महाराज! ऐसी बात भुलायी जा सकती है क्या? कल सुबह ही आपकी बात पूर्ण करने के लिए हाजिर हो जाऊंगा!” रामगोधा ने कहा।

दूसरे दिन रामगोधा एक बूढ़ी गाय और छः रुपिया लेकर महाराज के पास हाजिर हुआ। यह देख कर महाराज को बड़ा ही आश्चर्य हुआ। उन्होंने तीक्ष्ण दृष्टि से देखते हुए पूछा- “क्यों? तुम अपना वचन भूल गये?”

मंह पर बनावटी अनजानापन ओढ कर दो हाथ जोड़ कर रामगोधा ने कहा- “महाराज! मैं कुछ भूला नहीं! मैंने कहा था कि एक गाय और सौ रूपिया आपकी सेवा में अर्पण करुंगा। ये लेकर आया हूं!”

खाखी महाराज विचारमग्न हो गये। फिर बोले-“हां, तुमने अच्छी युक्ति निकाली है। अंतर्यामी प्रभु से भी चोरी? तुम तो इस तरह ठेंगा दिखा कर आज रास्ते से निपटना चाहते थे, परंतु तुम्हारे स्वार्थ ने ही आज सर्वनाश कर डाला है। अफसोस के साथ कहना पडता है कि तुम्हारा पुत्र इस वक्त कुशल नहीं है।”

खाखी महाराज की बात सुन कर रामगोधा के मानो होश ही उड़ गये। वह कांपने लगा। घबराता हुआ घर पहुंचा। देखा तो सच में ही उसके पुत्र की हालात हरेक क्षण बिगड़ती जा रही थी। वह उसी पल वापिस कटाव आया और खाखी महाराज के चरणों में पड़ कर माफी मांगी। और रोते हुए बोला“महाराज! संसार की माया में फंसे हम सभी पामर जीव अपना हित कहां है, वह भी कहां जानते है? एक पुत्र के लिए मैंने हजारों रुपये खर्च कर दिए है लेकिन आज मेरे दुर्भाग्यवश मेरे से ये हीन हरकत हो गई है। स्वामीजी! आप तो दयालु हैं। मेरे अपराध का कठोर दंड मुझे मत दो। आप कृपा कर ये पांच गायें और सवा सौ रुपये स्वीकार कर मुझे संकट से मुक्त करो।”

महात्माओं का हृदय दयामय होता है। रामगोधा का वेदनामय आर्तनाद सुन कर वे पिघल गये। उन्होंने रामगोधा को आश्वासन देते हुए कहा“राम गोधा! जिस अपराध को अपराधी सोच समझ कर करता है, वह अपराध भी वैसा ही है फिर भी तू प्रभु के चरणों में साष्टांग गिरकर अपने पापों के लिए आर्त दिल से क्षमा मांग ले तो प्रभु जरूर दया करेंगे।”

खाखी महाराज ने उसे आशीष और सांत्वना देते हुए उसे विदाई दी। घर जाकर उसने देखा कि पुत्र की स्थिति एकदम सुधर गई थी। खाखी महाराज की दी हुई तुलसी दास की प्रसादी रात-दिन सेवन करने के बाद उसका पुत्र सम्पूर्ण स्वस्थ हो गया। खाखी महाराज ने उसका नाम बद्रीका प्रसाद रखा था। अपने जीवन के उत्तरार्ध में रामगोधा प्रभु का पूर्ण भक्त बन गया।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’