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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

मांस और मदिरा का त्याग कर के राजा के मन में विचार की आंधी उठ रही थी। एक और पुत्र प्राप्ति की तीव्र इच्छा। और दूसरी और अपनी खाने की और पीने की चीज का त्याग! क्या किया जाए? राजाजी विचार के अंतिम बिंदु तक पहुंच नहीं पा रहे थे। यदि वो मांस और मदिरा का त्याग करें तो खाखी महाराज उन्हें पुत्र प्राप्ति का शुभ आशीष दे सकते थे। स्वाभाविक रूप से ही राजा जी के घर में सुख और साहयबी की तमा नहीं थी। लेकिन इतनी बड़ी जागीर को संभालने के लिए वारिस तो चाहिए था। अपनी इकहतर पीढ़ी के क्या पाप होंगे कि थरा के राजा को कारावास में डालने के लिए कोई वारिसदार ही नहीं था?

राजा ने दौरे-धागे-मंत्र-तंत्र सब कुछ कर डाला था। हर एक पत्थर को भगवान की मूरत मानकर पूजा था लेकिन पत्थर में से प्रभु नहीं प्रगट हुए, न तो कोई आशीष मिला। न तो नसीब में कुछ फर्क आया। अन्यायी भगवान पर महाराज को क्रोध आ गया और वे नास्तिक बन गये। देवी-देवताओं को खुलेआम गाली-गलौज करने लगे और इस धरती के सिरजनहार को फांसी देने की मानो तजवीज करने लगे। उस वक्त किसी शुभचिंतक ने उन्हें उपाय सुझाया- “कटाव में खाखी महाराज रहते हैं। वे बड़े चमत्कारी है। वे आपकी इच्छा जरूर पूर्ण करेंगे। राजा ने पहले तो इस बात को कान ही नहीं दिए। लेकिन भीतर में पड़ी हुई पुत्र की लालसा ने उन्हें खाखी महाराज को मिलने के लिए विवश कर दिया। अपना कुटुम्ब साथ में लेकर वे खाखी महाराज की निश्रा में पहुंच गए। महाराजजी से प्रणाम कर उन्होंने आसन ग्रहण किया। लेकिन वे अपने आगमन का कारण बता नहीं सके। लेकिन एक फायदा जरूर हुआ। महाराज के दर्शन से राजा की बिल्ली के टोप की तरह फूट पड़ी गलत। नास्तिकता नदारद हो गई और वे बारंबार कटाव आने-जाने लगे। खाखी महाराज रसपूर्वक इस आवागमन को देख रहे थे। एक दिन उन्होंने राजा जी से पूछा- “क्यों जी तुम लोग राजसी प्रकृति के जीव हो। तुम लोगों को तो प्रभु भजन और साधु संगम अच्छा नहीं लगता है। तब फिर क्या कारण है कि तुम लोग कुछ दिनों से मेरे आश्रम पर दौड़-धूप लगा रहे है?”

राजा ने खाखी महाराज को प्रणाम कर जवाब दिया- “प्रभु! हम तो राजसिक और तामसी जीव है। हम तो माया और मोह में फंसे हुए पामर लोग हैं। आपके दर्शन और सदुपदेश से मन थोड़ा बहुत प्रभु की ओर झुक रहा है परंतु भगवान पर पूर्ण विश्वास तो संभव ही नहीं।”

  • “तो क्या आपको प्रभु पर पूरा विश्वास नहीं है?”
  • “जी नहीं! पहले तो मुझे भी धर्म और ईश्वर पर बहुत विश्वास था। लेकिन मैंने पुत्र प्राप्ति के लिए अनेक धार्मिक और शास्त्रीय उपचार किए लेकिन जब मुझे निष्फलता मिली तब मेरा विश्वास डिग गया।” खाखी महाराज ने राजा की बात सुनकर कहा- “यह तुम्हारी मान्यता है। पैसों के पुजारी पंडित पुरोहित नामधारी जड़ जीव यथार्थ विधि-विधान करना जानते नहीं है, इसका मतलब यह नहीं कि ईश्वर झूठ है।”
  • “लेकिन महाराज मुझे तो अब तभी विश्वास होगा जब मुझे पुत्र प्राप्त होगा, नहीं तो मेरा मायावी मन कभी भी ईश्वर और धर्म पर विश्वास के लिए तैयार नहीं होगा।”
  • “खाखी महाराज ने विचार किया कि यह अर्ध नास्तिक तो है ही अगर पुत्र नहीं मिलेगा तो पूरा नास्तिक बन जाएगा और भगवत कृपा से इसे अगर पुत्र प्राप्ति हो जाए तो सम्भव है कि वह ईश्वर पर पूर्ण श्रद्धा रखे। ऐसा विचार कर उन्होंने कहा- “राजन! यदि आपको पुत्र प्राप्ति हो जाए तो प्रभु पर पूर्ण विश्वास हो जाएगा?”
  • “हां, जरूर!” राजा ने कहा।

खाखी महाराज ने प्रेम सहित उन्हें कहा- “राजन! क्यों फोकट के झंझट में पड़ते हो। प्रभु का भजन करो। पुत्र प्राप्ति करके आप क्या करेंगे? मैं जानता हूं कि लोगों के मुंह से मेरे विषय में कुछ बातें सुनकर तुम पुत्र प्राप्ति के लिए ही मेरे पास आते-जाते रहते हो, परंतु यह बात आप अच्छी तरह समझ लो कि किसी की देन से किसी को पुत्र नहीं होता। यह तो भाग्य की बात है। अच्छा यह तो बताओ, आप कभी मांस मदिरा खाते-पीते हो या नहीं?

योगीराज के मुंह से ऐसी बात सुनकर राजा नि:शब्द बन गए। उन्हें पहले तो ऐसी इच्छा हुई कि कह दे कि वे कुछ खाते-पीते नहीं है, लेकिन महाराज जान लेंगे तो? राजा दुविधा में पड़े! ना जाने क्या बोलना वह सूझ नहीं रहा था। आखिर उन्होंने हाथ जोड़कर कुछ संकोच से कहा- “महाराज! माफ करना इस दूषण से मै मुक्त नहीं हूं। क्या करूं? संगत ही कुछ ऐसी है और राजा आगे बोलते हुए अटक गए। राजा के शब्द सुनकर योगी जी को राजा पर और उनके शब्दों पर घृणा पैदा हुई। वे एकदम से खड़े हो गए और कुछ भी बोले बिना अंदर के कक्ष में चले गए और भीतर से राजा और उनकी रानी को जाते हुए देख रहे।

राजा और रानी कुछ खिन्नता के साथ वाव वापिस आ पहुंचे। उनकी इच्छा का भंग हो गया। खाखी महाराज के पास जाने के लिए मांस और मदिरा का त्याग करना पड़ेगा। राजा के स्वार्थी मतलबी साथीदार उन्हें समझाते थे कि-

  • “राजा साहब! जाने दो ना! बाबा के पास जाकर भी क्या करेंगे? यह तो सब बातें हैं! उनके आशीर्वाद से कैसे आशा पूरी हो सकती है? राजा भी शंका-कुशंका में अटक गया था। दिन-रात विचारों में खोए रहते थे। आखिर उन्होंने निर्णय किया कि मांस और मदिरा को वे त्याग देंगे। दृढ़ निश्चय के साथ राजा फिर एक बार खाखी महाराज के पास पहुंचे और करुणा भरं शब्दों में महाराज से पुत्र की प्राप्ति के लिए आशीर्वाद पाने की विनती की। खाखी महाराज ने कहा- “यदि आपको पुत्र प्राप्ति की प्रबल लालसा है तो आज से ही मांस-मदिरा सर्वथा परित्याग कर दो। जो तुम ऐसा करोगे तो तुम्हें इस वर्ष के पूरे होते ही पुत्र सुख की प्राप्ति अवश्य होगी परंतु जिस दिन आपने या रानी ने मांस-मदिरा का सेवन किया। उसी दिन आपका और आपके पुत्र का मरण अवश्यंभावी है।”

राजा ने खाखी महाराज के द्वारा सूचित की गई हर बात स्वीकार ली। बाबा ने अंतर से आशीर्वाद दिया और उनकी कृपा से ही एक ही बरस में राजा के यहां एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ। राजा और रानी ने शराब और मांस का सर्वथा त्याग किया था। राजा की श्रद्धा भी अब प्रभु पर पूर्ण रूप से स्थिर हो चुकी थी।

थरा से पाटण काफी नजदीक है। राजा को बारंबार काम के लिए पाटण जाना पड़ता था। एक बार अपने साथियों के साथ वे पाटण गए। जब अपना काम पूरा कर वह वापस आ रहे थे, तब बीच में एक गांव आया जहां वे रुक गए। रात को राजा और उनके साथियों के लिए खाने का प्रबंध किया गया। सब लोग खाने को बैठे। तब राजा के साथियों को मांसाहार की चीजें खाने को दी गई। जबकि राजा को शाकाहारी चीजें दी गई। इससे कुछ साथियों को जरा आश्चर्य-सा हुआ। कुछ लोगों ने तो राजा की थाली देखकर ही बोल दिया-” ओ हो राजाजी! आपने यह सब कब से शुरु कर दिया?” राजा केवल हंसे, कुछ बोले नहीं।

– “महाराज! आप कोई बैरागी के फंदे में फंस गए हैं। ऐसे साधु पर ध्यान दोगे तो अपना राज्य खत्म हो जाएगा।”

साथियों ने राजा को खूब समझाया और वे ना-ना करते रहे, फिर भी उनकी थाली में थोड़ा-सा मांस परोस ही दिया। राजा भय के मारे और संकोच के कारण मांस नहीं खा सकते थे। लेकिन बचपन से जो मांस की आदत पड़ी थी, इसके कारण भीतर पड़ी हुई लोलुपता प्रबल होने लगी और और उनके मुंह में पानी आ गया और अपनी आदत से मजबूर होकर राजा ने मांस भक्षण किया।

उस रात को राजा का मस्तक घूमने लगा और आशंका से उनके शरीर की हर एक नस में मानो कांटे चुभने लगे। राजा की नींद भी गायब हो गई। उनकी सारी रात करवट बदलने में ही बीती। वे दिक्कत में पड़ गए थे। कुछ अमंगल होगा। ऐसी भीति उन्हें सताने लगी थी। उनके हृदय में दावानल जल रहा था। महा प्रयास से रात बीती और सुबह में राजा अपनी घोड़ी पर बैठ कर थरा जाने को निकले। तेजी से दौड़ती हुई घोड़ी पर बैठे हुए राजा जब बनास नदी के निकट पहुंचे उसी वक्त घोड़ी के पैर फिसल पड़े। इसके साथ ही घोडी के प्राण-पखेरू उड़ गए। राजा भी घोड़ी पर से गिर पड़े थे। थोड़ी देर ही मे राजाजी के भी प्राण चले गये। उधर महल में भी एक दुर्घटना घटी। जिस रात को राजा ने मांस खाया था। उस रात को दो बिल्लियां लड़ती लड़ती आई और राजकुमार के पालने पर गिरी और उधर भी लड़ती रही। बिल्लियों के नाखून और दातों से राजा का कुंवर घायल हुआ और उसके साथ उसकी भी मृत्यु हो गई।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’