University mein Raging
University mein Raging

Social Story in Hindi: शाम के साढ़े सात बजे थे और घर की घंटी बजी। मम्मी ने दरवाज़ा खोला तो पापा ऑफिस से आए थे। “ये लो गरमा गरम समोसे लाया हूं” पापा ने मम्मी को पैकेट देते हुए कहा। “शाश्वत कहां है?” मम्मी ने बताया, “ जब से  काॅलेज से आया है तब से अपने कमरे में पढ़ रहा है”। पापा खुश होकर बोलते हैं, “बढ़िया! हिंदुस्तान के टॉप कॉलेजों में से एक है उसका कॉलेज। मैं उसे बुला कर लाता हूं।” मम्मी कामवाली की मदद से चाय नाश्ता लगाती हैं। पापा शाश्वत के कमरे का दरवाज़ा खटखटाने लगते ही हैं तो वह थोड़ा सा पहले से ही खुला था। “ लगता है ज़्यादा काम मिलने लग गया है रोज़ कॉलेज से। देर तक पढ़ता रहता है…” पापा सोचते हुए शाश्वत के पास पहुंचते हैं तो वह मानव शरीर के बारे में कंप्यूटर पर पढ़कर कुछ नोट्स बना रहा था। पापा को बहुत ताज्जुब हुआ पर शाश्वत जितनी तल्लीनता से पढ़ाई कर रहा था उन्होंने उसे कुछ नहीं कहा और बाहर आ गए। वहीं से आवाज़ लगाकर शाश्वत को नाश्ते के लिए बुलाया। जब वह नाश्ता कर रहे थे तब पापा ने पूछा, “ तुम वह क्या पढ़ाई कर रहे थे?”  “जी!!!” शाश्वत सकपका कर बोला, “ आपने देख लिया था?” “ हां लेकिन तुमने बताया नहीं क्यों”। “क्या हुआ?”  मम्मी ने पूछा, “ कुछ गलत पढ़ रहा था क्या?” पापा ने शाश्वत की तरफ़ देखा और कहा, “गलत तो कुछ नहीं पढ़ रहा था पर जो पढ़ रहा था उससे इसका कोई मतलब नहीं है।”

फिर वह मम्मी की तरफ़ देखकर बोले, “कॉमर्स का बच्चा अगर मानव शरीर के बारे में पढ़ेगा तो सोचने वाली बात है ना।” “क्या!!” मम्मी अचंभित होकर बोली, “तू मानव शरीर के बारे में क्यों पढ़ रहा था?” माता-पिता के अचंभित चेहरे को देखकर शाश्वत ने मुस्कुराकर ठंडी सांस लेकर कहा, “ परसों मेरी रैगिंग का आखिरी दिन है।” “ रैगिंग!!” दोनों मां-बाप साथ में बोले, “ तू ठीक है ना? हम शिकायत करते हैं।” शाश्वत बोला, “अरे रुक जाओ परेशान होने वाली कोई बात नहीं।” शाश्वत बताता है कि पिछले एक हफ़्ते से उसकी रैगिंग चल रही है जिसमें……

जैसे-जैसे वह बताता जा रहा था पापा की आंखों में एक अलग से चमक आती चली गई। उन्होंने पूछा, “सीनियर का नाम मालूम है क्या?” “ जी आरव। उसके पापा यहां दिल्ली के बहुत बड़े कपड़ा व्यापारी हैं।”  “मेरठ से क्या कोई लेना-देना है उसका?” पापा कुछ जानने के लहज़े में पूछते हैं। “ जी हां, एक बार उसके मुंह से मेरठ की बात निकली थी।”

पापा टेबल से उठते हुए कहते हैं, “ कल मैं तुम्हारे साथ कॉलेज चलूंगा।”  “पर क्यों पापा?” राघव बिना कुछ कहे उठकर अपने कमरे में चले जाते हैं ।

अगले दिन राघव और शाश्वत कॉलेज पहुंचते हैं। थोड़ी देर बाद सामने से एक लंबा खूबसूरत लड़का आता दिखाई देता है। राघव शाश्वत से कहते हैं, “ यही आरव है ना।” शाश्वत चौंक कर पूछता है, “ आपने कैसे पहचाना पापा?”  राघव कुछ कहते नहीं और मुस्कुरा कर खंबे के पीछे चले जाते हैं। शाश्वत उधेड़बुन में था.. तभी आरव उसके पास आकर कहता है, “ क्यों श्री शाश्वत जी चलें आज के कार्यक्रम पर।” कहते हुए आरव मुड़कर आगे चलने लगता है। शाश्वत खंबे की तरफ़ देखता है तो उसके पिता वहां नहीं थे। वह असमंजस चारों तरफ देखता है तो राघव कॉलेज के गेट के बाहर जाते हुए नज़र आते हैं।

अपने पिता का व्यवहार शाश्वत की समझ से परे था। शाम को जब शाश्वत घर आता है तो राघव उसे अपने साथ चलने के लिए कहते हैं। “ कहां जा रहे हैं पापा?” शाश्वत पूछता है। “तू चल तो..” वह दोनों शहर की एक बड़ी सोसाइटी में जाते हैं। वहां एक घर के बाहर जाकर पापा दरवाज़े की घंटी बजाते हैं। 

शाश्वत का अचंभा एक दर्जा और बढ़ जाता है जब आरव दरवाज़ा खोलता है। आरव का उलझन से भरा चेहरा देखकर राघव रौबदार आवाज़ में कहते हैं, “अपने पिता को बुलाओ”। आरव की शक्ल उतर जाती है और वह सकपका कर अपने पिता को बुलाता है। राघव और शाश्वत अंदर आते हैं। तभी आरव अपने पिता के साथ डरता हुआ बाहर आता है। दोनों के पिता की नज़र मिलती है। आंखों का गुस्सा होंठों की मुस्कुराहट और फिर गर्म जोशी से हंसते हुए गले मिलने पर खत्म होता है। 

दोनों बच्चों की शंका से भारी शक्ल देखकर राघव और शेखर ज़ोर से हंसने लगते हैं। “यह सब क्या है पापा” दोनों बच्चे एक साथ पूछते हैं। राघव कहते हैं, “ तेरी रैगिंग का किस्सा सुनकर मुझे काफ़ी हद तक समझ में आ गया था कि वह शेखर का बेटा आरव हो सकता है। कॉलेज में उसे देखते ही मैं उसे पहचान गया था।” “लेकिन मेरी रैगिंग से आपने कैसे समझा और आप लोग कैसे जानते हैं दूसरे को?” शेखर बताते हैं, “हम दोनों कॉलेज के जिगरी दोस्त हैं। राघव मुझसे एक साल सीनियर था और हमारी दोस्ती की नींव रैगिंग ही थी जो इसने मेरी की थी।” “क्या!!”  दोनों बच्चे चौंकते हैं…. “लेकिन ऐसा क्या खास है इस रैगिंग में। यह तो बहुत लोगों ने बहुतों की करी है।”

तब राघव कहते हैं, “चलो आज तुम्हारे बहाने कॉलेज के दिन याद करते हैं। पूरी कहानी सुनकर तुम खुद समझ जाओगे कि मैं तुम्हारी रैगिंग से कैसे समझ गया था आरव के बारे में।” 

“कॉलेज में शेखर का पहला दिन था। मैंने अपने दोस्तों के साथ इसे उसी दिन पकड़ लिया था। पता चला यह तो कॉमर्स का बंदा है और इसका सपना बड़ा व्यापार करने का है। अगले दिन हम इसे एक क्लास में ले ग‌ए और एक लिस्ट दी जिसमें विज्ञान, आर्ट, म्यूज़िक को मिलाकर करीब आठ विषय थे। हमने उसे उन विषयों से जुड़े हुए मुश्किल प्रसंग दिये और कहा कि अगले दिन से इसको उन विषयों को बच्चों को पढ़ाना होगा।‌ वह भी बाकायदा नोट्स बनाकर अच्छे से… कामचलाऊ काम नहीं चलेगा।” 

शेखर हंसते हुए किस्सा आगे बढ़ाते हैं, “ इन लोगों ने जो मेरी हालत करी….बाप रे!!!। मैं घर आता, अपना काम तो करना ही था उससे कहीं ज़्यादा मुश्किल उन विषयों की पढ़ाई जो मेरे सर के ऊपर से जाते थे। भाई! मैं दिन रात काम करता था और सुबह काॅलेज जाकर पढ़ता भी और पढ़ाता भी। सबसे ज़्यादा भगवान का नाम यह बोल कर लेता कि प्रभु कोई बच्चा इधर-उधर के सवाल ना पूछ ले। लेकिन यह लोग इतने शातिर थे कि बच्चों से कह दिया था कि हर बात पर सवाल पूछें। अब सोचता हूं तो हंसी आती है लेकिन तब मेरी तो आवाज ही कांप जाती थी। पेड़ पौधों के सवाल में मैं कब चित्रकला के जवाब देता था पता ही नहीं चलता था। यह सब और बच्चे हंसते हुए पागल हो जाते थे। मैं बुद्धु सी शक्ल बना देखता रहता। एक बार इन लोगों ने बच्चों से कह दिया कि वह मुझसे इंसान के दिल का रेखा-चित्र बनवाएं। बच्चों ने मुझसे क्लास में बोला, “सर जी आज इंसान के दिल का रेखा-चित्र बनाओ।” अब भाई मैं ड्राइंग के मामले में सबसे नीचे पीछे वाला इंसान, वह भी दिल का। मैंने तो वही बना दिया जैसे मैं पिक्चरों में देखता था। एक दिल बना और बीच में तीर निकलता हुआ दिखा दिया; इंजन कैसे काम करता है मुझे यह बताना था तो मैंने भी 3 इडियट वाला ‘रूम ब्रूम ब्रूम’ वही करके दिखा दिया। समझ ही नहीं आया कि कैसे इंजन चलता है। मुझे क्या करना है भाई, गाड़ी स्टार्ट करो चले जाओ।”

किस्से बताते और सुनते हुए चारों जने हंसते जा रहे थे। राघव कहते हैं, “ मज़ा तो सबसे ज़्यादा तब आया जब शेखर उसी क्लास में पढ़ाने गया जिसमें वह लड़की थी जो इसे पहले दिन से अच्छी लगने लगी थी। उसके सामने विषय के बारे में तो यह भूल ही गया था लेकिन इसने जो उस दिन संगीत को विषय बना कर उस लड़की के लिए गाना गाया… वह लड़की तो मंत्रमुग्ध हो गई थी। झेंप कर यह क्लास छोड़कर भाग लिया था। हमने भी लेकिन इसे छोड़ा नहीं और रैगिंग का अपना कोटा पूरा करवाया।” 

“ वह लड़की कौन थी पापा?” आरव ने पूछा।  पीछे से शेखर की पत्नी कहती हैं, “तेरी मां!!”  सब लोग खूब ज़ोर से हंसने लगते हैं।

शेखर कहते हैं, “लेकिन उस दिन के बाद से राघव ने कईं जगह मेरी मदद करी और धीरे-धीरे हम अच्छे दोस्त बनते चले गए।” दोनों बच्चे उत्साहित होकर कहते हैं, “वाह! पापा क्या बात है।”

राघव आगे बताते हैं, “मज़े की बात यह है की सारे  विषय और प्रसंग आरव ने बिल्कुल वही दिए जो हमने शेखर को दिए थे। सब कुछ बिल्कुल ही एक जैसा होना ज़रा नामुमकिन सा था। फ़िर एक तो यह नया मज़ेदार तरीका था जो हमने उसके पहले किसी से ना सुना था ना उसके बाद कभी हमने किसी के मुंह से उसके बारे में सुना। शाश्वत ने जब आरव के बारे में बताया तो मैं समझ गया था कि जो इसकी रैगिंग कर रहा है वो शायद शेखर से जुड़ा है।” 

शेखर ज़ोर से हंसते हुए बताते हैं, “लेकिन मुझे तो पता था कि शाश्वत तेरा बेटा है। मैं एक दिन कुछ काम से कॉलेज गया था। तब मैंने शाश्वत को एडमिशन कराते वहां देख लिया था। इसीलिए मैंने आरव को पहले ही बताया था कि इस लड़के की रैगिंग करना और ऐसे ही करना। क्यों आरव.. अब तुझे समझ में आया कि मैंने खास तौर से इस लड़के के लिए क्यों कहा था।”

        “क्यों भाई शाश्वत कल की आखिरी क्लास बाकी है। वो तो तेरी पूरी होकर रहेगी। क्या पता तुझे भी मेरी मम्मी की तरह कोई मिल जाए!!!” बोलते हुए आरव ने शाश्वत को गले लगाया और हाथ बढ़ाकर बोला, “हमेशा के लिए अब हम सबसे अच्छे दोस्त अपने पापा की तरह।”