"बिन तेरे"-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Bin Tere

Grehlakshmi Story: माँ के जाने के बाद आज पहली दफा पीहर आना हुआ। टैक्सी से उतर जैसे ही नजर उठाई, हमेशा की तरह इंतजार करती माँ की जगह खाली थी…स्कूल हो कॉलेज या नौकरी जब कहीं से लौटती.. हमेशा छत पर बनी बालकनी की रेलिंग में खड़ी होकर माँ इंतजार किया करती।
” इतनी देर कर दी ?”
“कहाँ माँ दस मिनट ही तो ऊपर हुए हैं ।कभी कोई मिल जाता है या ट्रैफिक….आप भी ना..।”
भरी आँखों व मन से सामान ले ऊपर जाने लगी तो देखा पापा फुर्ती से इनकी मदद करने पहुँच गए हैं।
“जाओ हाथ मुँह धो लो!चाय चढ़ाता हूँ…
“नहीं पापा परेशान मत होइए ।हमने रास्ते में पी ली थी।”
“ओह!मैं तो इंतजार में बैठा था तुम आओगे तो साथ ही पीएंँगे।”
पापा का मन भाँप बोली,”पी ली तो क्या, आपके साथ फिर पी लेंगे ।”माँ सी मुस्कुराहट लिए पापा चाय बनाने लगे।
“लाइये मैं बनाती हूंँ।”
“नहीं बेटा तू बैठ ये तो रोज का काम है।”
गहरा अर्थ लिए पापा का वाक्य अंदर तक झकझोर गया।कैसे माँ ने सब समेटा हुआ था ।एक अकेली औरत ने घर, पापा,बच्चे, रिश्ते और व्यवहार सब बांँधे हुए थे।सच ही तो है ईश्वर ने हर का अपना वजूद बनाया है। औरत से घर है ये शाश्वत सत्य है।

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थोड़ी देर में बिटिया ने रोना शुरू कर दिया।सारे दिन से चिड़- चिड़ करने में लगी थी देखा तो बदन अभी भी बुखार से तप रहा था।ना पतिदेव के पास जाती न पापा के….

पापा से विदा ले सोने चली आई।किसे कहती थोड़ा कंधा दबा दो,सिर में तेल डाल दो उसकी थकान महसूस करने वाली माँ तो आज साथ थी ही नहीं।उनसे घंटो बतिया कर सारी थकान दूर हो जाती थी। बहुत देर बाद बिटिया को नींद आई ।

सुबह उठी तो अंग-अंग दुख रहा था।लगा बदन बुखार से टूट रहा है।पापा को भी चाय पिलाने की मंशा से हिम्मत कर उठ खड़ी हुई। जैसे ही पहली घूँट गिटकी बिटिया ने रोना शुरू कर दिया ।पतिदेव और पापा एक स्वर में बोले।

“सब छोड़ उसपर ध्यान दो! बिचारी-बच्ची! कल से परेशान है”

सुनकर मन में आया कह दे मैं भी तो कल से परेशान हूँ एक पल भी सुकून से नहीं बीता। रात भर बुखार में तप रही थी लेकिन जानती थी ये व्यर्थ की बातें हैं।

चाय छोड़ भरे मन से उठ खड़ी हुई।आज माँ की बहुत याद आ रही थी वो होतीं तो मुझे आराम देने के लिए बच्ची की एक आवाज़ सुनकर ही उसे कमरे से बाहर ले जातीं।
कैसे एक बार अपने जमाई से तुनक कर बोली थी,”मेरी बेटी को कभी कोई कष्ट न होने पाए।इस गलती की मेरे पास माफी भी नहीं।इसको हमेशा खुश रखना।”
“ओह माँ!”कहते हुए बिलख पड़ी।

…बिटिया को रोता देख उसे गोदी में उठा माथा चूमा। मम्मी की बात जहन में घूम रही थी।
“जब बच्चे परेशान होते है ना तो अपनी तकलीफ महसूस भी नहीं होती।जब माँ बनोगी तब समझोगी।”

आँसू गिरते रहे क्योंकि उनकी कद्र और कीमत एक वो ही पहचानती थी उनकी फोटो के पास जाकर उन्हें निहारती रही….” माँ मुझे बच्चा ही रहना था।”